Chhath 2020: जानें महापर्व छठ पूजा का महत्व और पौराणिक कथा
18 नवंबर से छठ पूजा (Chhath Puja 2020) का महापर्व शुरू हो रहा है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से शुरू होने वाले इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है.
नई दिल्ली:
18 नवंबर से छठ पूजा (Chhath Puja 2020) का महापर्व शुरू हो रहा है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से शुरू होने वाले इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है. वहीं इसमें व्रती महिलाएं 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखती है और पारण के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ही भोजन करती हैं. कई जगह पुरुष भी छठ का व्रत रखते हैं.
बिहार के अलावा यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी धूमधाम से छठ का त्योहार मनाया जाता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो कि पारण तक चलता है. इस साल छठ 18 नवंबर से शुरू हो रहा है और 21 नवंबर को समाप्त होगा.
और पढ़ें: Chhath 2020: इस दिन से शुरू हो रहा है छठ का महापर्व, जानें नहाय खाय और खरना की तारीख
छठ में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है, इसलिए इस दिन व्रत करने वाले को साफ सुथरे और धुले कपड़े ही पहनने चाहिए. पौराणिक मान्यता के मुताबिक, छठी मईया, सूर्य देव की बहन हैं. उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना और उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे छठ की पूजा की जाती है. वहीं षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और इसलिए छठ पूजा की जाती है.
छठ व्रत से मिलता है फल-
- छठी पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
- छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं.
- छठ पूजा करने से सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है.
- परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है.
- छठी मैया की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
1. द्रौपदी ने की सूर्य देवता की उपासन
पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिवार के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए नियमित तौर पर सूर्य पूजा किया करतीं थीं. कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने सूर्य भगवान की आराधना की और छठ का व्रत रखा. सूर्य देव के आशीर्वाद से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई .
2. राजा प्रियंवद को मिला संतान सुख
राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया . राजा ने रानी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. इसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. प्रियंवद अपने मृत्य पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान गया और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगा. तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई. उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. हे राजन तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो. राजा ने पुत्र इच्छा से सच्चे मन से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी. तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत करते हैं.
3. इसलिए पानी में खड़े होकर की जाती है छठ की पूजा
मान्यता के मुताबिक छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. इस पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण के सूर्य देव की पूजा के साथ शुरू हुई थी. कर्ण हर दिन घंटों तक कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे. उनके महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य की कृपा थी. आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है.
4. पांडवों को मिला आशीर्वाद
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, जब पांडव अपना सारा राज-पाठ कौरवों से जुए में हार गए, तब दौपदी ने छठ व्रत किया था. इस व्रत से पांडवों को उनका पूरा राजपाठ वापस मिल गया था. छठ व्रत करने से परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Maa Lakshmi Puja For Promotion: अटक गया है प्रमोशन? आज से ऐसे शुरू करें मां लक्ष्मी की पूजा
-
Guru Gochar 2024: 1 मई के बाद इन 4 राशियों की चमकेगी किस्मत, पैसों से बृहस्पति देव भर देंगे इनकी झोली
-
Mulank 8 Numerology 2024: क्या आपका मूलांक 8 है? जानें मई के महीने में कैसा रहेगा आपका करियर
-
Hinduism Future: पूरी दुनिया पर लहरायगा हिंदू धर्म का पताका, क्या है सनातन धर्म की भविष्यवाणी