Chhath 2019: आज डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देते वक्त इन बातों का रखें खास ध्यान
इस दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और रात भर जागकर सूर्य देवता के जल्दी उदय होने की कामना करते हैं
नई दिल्ली:
आस्था के महापर्व छठ का आज तीसरा दिन है. आज यानी 2 नवंबर को व्रती महिलाएं डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देंगी. छठ के व्रत में मानसिक और शारीरिक शुद्धता का विशेष महत्व रखा जाता है. छठ पर्व के तीसरे दिन यानी आज सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है. इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है.
इस दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और रात भर जागकर सूर्य देवता के जल्दी उदय होने की कामना करते हैं. व्रती को सूर्योदय तक पानी तक नहीं पीना होता. इसीलिए इस व्रत को काफी कठिन व्रत माना जाता है. कई सारी चीजें ऐसी होती हैं जो अर्घ्य देते समय लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए. आज हम आपको इन्हीं चीजों के बारे में बताने वाले हैं-
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सूर्य को अर्घ्य देनें से जुड़े नियम
जल में थोड़ा दूध मिलाकर दें सूरज को अर्घ्य
टोकरी में फल और ठेकुआ सजाकर करें सूर्य देव की उपासना
टोकरी को धोकर उसमें ठेकुआ के अलावा नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं
सूप में ही दीपक जलाएं
सूर्य का रंग लाल होने पर दें सूर्य को अर्घ्य
अगर आप अर्घ्य न भी दे सकें तो हाथ जोड़कर प्रार्थना कर लें.
छठ में प्रसाद के रूप में बनने वाले ठेकुआ और चावल के लड्डू उसी चावल व गेहूं से बनेंगे, जो विशेष तौर से छठ के लिए धोए, सुखाए और पिसवाए जाते हैं
ध्यान रहे कि सुखाने के दौरान अनाज पर किसी का पैर न जाए
यहां तक कि कोई पक्षी भी चोंच न मार पाए, क्योंकि फिर उसे जूठा माना जाएगा और ऐसे गेहूं व चावल का इस्तेमाल वर्जित है
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छठी मइया की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम था मालिनी. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और रानी दोनों की दुखी रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं.
लेकिन रानी की मरा हुआ बेटा पैदा हुआ. इस बात से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी. राजा प्रियव्रत इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्म हत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बड़े षष्ठी देवी प्रकट हुईं.
षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से देवी खुश हुईं और तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा.
कौन हैं छठी मइया और क्या है मान्यता?
कार्तिक मास की षष्टी को छठ मनाई जाती है. छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार में आसान भाषा में छठी मइया कहकर पुकारते हैं. मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं. इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं. वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है. छठ मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि जिन छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है. खासकर वो जोड़े जिन्हें संतान का प्राप्ति नही हुई. वो छठ का व्रत रखते हैं, बाकि सभी अपने बच्चों की सुख-शांति के लिए छठ मनाते हैं.
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