Chaitra Navratri 2023: जानें क्या है अखंड ज्योति का महत्व और नियम, यहां है पूरी जानकारी
चैत्र माह के शक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है.
नई दिल्ली :
Chaitra Navratri 2023 : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है. यह दिनांक 22 मार्च दिन बुधवार यानी कि आज से शुरु हो गई है. नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है. इस दिन इनकी पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. हर साल मां दुर्गा का आगमन विशेष वाहन पर होता है. जिसका बहुत ही खास महत्व है. इस दिन अखंड ज्योत प्रज्जवलित जाती है. जिसक कुछ नियम भी होते हैं. अगर उन नियमों का पालन किया जाए, तो व्यक्ति को खास आशीर्वाद की प्राप्ति होती है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में अखंड ज्योति के महत्व के बारे में बताएंगे,साथ ही अखंड ज्योति जलाने के नियम क्या हैं.
जानें क्या है अखंड ज्योत जलाने का महत्व
ऐसी मान्यता है कि घर में कलश स्थापना करने के बाद अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है. इसका मतलब यह होता है कि ऐसा ज्योत, जो खंडित न हो. अखंड ज्योत जलाने से घर में खुशहाली आती है मां के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. ऐसा बताया जाता हा कि नवरात्रि में अखंड ज्योति का बुझना बहुत अशुभ होता है. समय-समय पर तेल डालना चाहिए और उसे हवा से बचाकर रखना चाहिए.
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जानें क्या है अखंड ज्योत के नियम
नवरात्रि में अखंड ज्योत प्रज्जवलित करने का पहला नियम यह है कि उसके देखरेख में कोई ना कोई होना चाहिए. ज्योत प्रज्जवलित करने का मतलब होता है कि नौ दिन मां दुर्गा आपके घर विराजमान हैं. अखंड ज्योत जलाने से पहले मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए. ज्योति प्रज्जवलित करने के लिए कलश या फिर चौकी रखें.
अगर आप ज्योति प्रज्जवलित कर रहे हैं, तो लाल कपड़ा बिछाएं और अगर आप कलश के ऊपर ज्योति प्रज्जवलित कर रहे हैं, तो उसके नीचे गेहूं रखें. अखंड ज्योति को रक्षासुत्र से बनाना चाहिए. ज्योति जलाने के लिए घी या फिर सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए. अखंड ज्योति मां दुर्गा के दाईं ओर रखना चाहिए. अगर ज्योति में सरसों का तेल डाला गया है तो उसे बाईं ओर रखें.
अखंड ज्योति प्रज्जवलित करने से पहले भगवान गणेश, मां दुर्गा की अराधना करनी चाहिए. दुर्गा मां के इस मंत्र का जाप करें.
‘ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते’
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