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Chaitra Navratri 2022, Kanya Pujan Significance: नवरात्रि में कन्या पूजन मात्र कोई रीति नहीं, जीवन में आने वाले इन बड़े बदलावों का है संकेत

क्या आप जानते हैं कि अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन सिर्फ कोई रीति नहीं बल्कि आपके जीवन में आने वाले बड़े बदलावों का संकेत है? अगर नहीं, तो चलिए आज आपको कन्या पूजन के महत्व के साथ साथ उन संकेतों के बारे में भी बताते हैं.

क्या आप जानते हैं कि अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन सिर्फ कोई रीति नहीं बल्कि आपके जीवन में आने वाले बड़े बदलावों का संकेत है? अगर नहीं, तो चलिए आज आपको कन्या पूजन के महत्व के साथ साथ उन संकेतों के बारे में भी बताते हैं.

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Gaveshna Sharma
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नवरात्रि में कन्या पूजन जीवन में आने वाले इन बड़े बदलावों का है संकेत

नवरात्रि में कन्या पूजन जीवन में आने वाले इन बड़े बदलावों का है संकेत ( Photo Credit : Social Media)

Chaitra Navratri 2022, Kanya Pujan Significance: आज यानी कि 9 अप्रैल को दुर्गा अष्टमी है. आज अष्टमी के दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है. अष्टमी तिथि को कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि कन्या पूजन से अष्टमी के दिन मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन सिर्फ कोई रीति नहीं बल्कि आपके जीवन में आने वाले बड़े बदलावों का संकेत है? अगर नहीं, तो चलिए आज आपको कन्या पूजन के महत्व के साथ साथ उन संकेतों के बारे में भी बताते हैं. 

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कंजक पूजा की परंपरा हमारे समाज में कई सालों से चली आ रही है. मान्यता है कि बिना कंजक पूजा के नवरात्रि का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है और माता की कृपा भी अधूरी रह जाती है. कंजक पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं को बैठाकर उनको दुर्गा स्वरूप मानकर पूजन किया जाता है. इसी परंपरा को कुमारी पूजन के नाम से भी जाना जाता है.

पुराणों में ये है उल्‍लेख
स्कंद पुराण के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ती, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को कालिका, 7 वर्ष की कन्या को चंडिका, 8 वर्ष की कन्या को शांभवी और 9 वर्ष की कन्या को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. वहीं 10 वर्ष की आयु की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है. कंजक पूजन में कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. कंजक पूजन में एक छोटे लड़के को बटुक भैरव या लंगूरा कहा जाता है. मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ पर एक-एक भैरव को रखा है, उसी तरह कन्या पूजन में भी एक बालक को रखना जरूरी है. इसलिए कंजकों में एक भैरव को बैठाया जाता है.

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कन्या पूजन से जीवन में आते हैं ये बदलाव 
कन्या पूजन करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है. मान्यता है कि बिना कन्या पूजन के नवरात्र का पूरा फल नहीं मिलता है. इससे माता रानी प्रसन्न होती हैं और सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. कन्या पूजन करने से परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और सभी सदस्यों की तरक्की होती है. 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या की पूजा करने से व्यक्ति को अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है. जैसे कुमारी की पूजा करने से आयु और बल की वृद्धि होती है. त्रिमूर्ति की पूजा करने से धन और वंश वृद्धि, कल्याणी की पूजा से राजसुख, विद्या, विजय की प्राप्ति होती है. कालिका की पूजा से सभी संकट दूर होते हैं और चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है. शांभवी की पूजा से विवाद खत्म होते हैं और दुर्गा की पूजा करने से सफलता मिलती है. सुभद्रा की पूजा से रोग नाश होते हैं और रोहिणी की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं.

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