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अपरा एकादशी के व्रत को करने से मिलती है जाने-अनजाने पापों से मुक्ति

अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

Updated on: 06 Jun 2021, 02:32 PM

highlights

  • ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है
  • यह एकादशी बहुत पुण्य प्रदान करने वाली है

नई दिल्ली:

ऐसी मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्री हरि विष्णु मनुष्य के जीवन से सभी दुख और परेशानियों को दूर कर अपार पुण्य प्रदान करते हैं. यह एकादशी बहुत पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. माघ मास में सूर्य जब मकर राशि पर स्थित हों, उस समय प्रयाग में स्नान करने वाले मनुष्यों को जो पुण्य प्राप्त होता है, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, गया में पिंडदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करने वाला पुरुष जिस पुण्य का भागी होता है, वृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करने वाला मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, बदरिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान् केदार के दर्शन तथा बद्री तीर्थ के करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है तथा सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणासहित यज्ञ करके हाथी,घोडा और सुवर्ण करने से जिस फल की प्राप्ति होती है ठीक ऐसे ही अपरा एकादशी का व्रत से भी मनुष्य वैसे ही फल प्राप्त करता है. 'अपरा' को उपवास करके एवं इस महत्व को पड़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है.

ऐसे करें श्री हरि की पूजा

अपरा एकादशी को भगवान वामन या विष्णुजी की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो श्री विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है. इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण को पंचामृत, रोली,मोली,गोपी चन्दन,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतुफल,मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए. श्री हरि की प्रसन्नता के लिए तुलसी व मंजरी भी प्रभु को जरूर अर्पित करें,इस बार रविवार को एकादशी होने के कारण तुलसी पत्र एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें.  'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से आज के दिन बहुत फलदायी है. इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर  रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए .द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें.

क्या कहती है कथा

शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम के एक बड़े ही धर्मात्मा राजा थे पर इनका छोटा भाई वज्रध्वज जो पापी और अधर्मी था. इसने एक रात अपने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी. इसके बाद महीध्वज के मृत शरीर को जंगल में ले जाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया.अकाल मृत्यु होने के कारण धर्मात्मा राजा को भी प्रेत योनि में जाना पड़ा. राजा प्रेत के रुप में पीपल पर रहने लगा और उस रास्ते से आने जाने वालों को परेशान करने लगा. एक दिन सौभाग्य से उस रास्ते से धौम्य नामक ॠषि गुजरे. ऋषि ने जब प्रेत को देखा तो अपने तपोबल से सब हाल जान लिया.ॠषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने का विचार किया और प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया. संयोग से उस समय ज्येष्ठ मास की एकादशी तिथि भी थी. ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत किया और एकादशी के पुण्य को राजा को अर्पित कर दिया. इस पुण्य के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और दिव्य देह धारण करके स्वर्ग चले गए.

बता दे कि ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस बार 6 जून, रविवार को एकादशी की तिथि है. अपरा एकादशी का अर्थ होता है अपार पुण्य. पदम पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उनके वामन रूप में करने का विधान है. अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, अचला एकादशी और भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.