Bhadrapad Pradosh Vrat 2023 Date: हर महीने प्रदोष के दो व्रत आते हैं एक कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत होता है और एक शुक्ल पक्ष में एकादशी की तिथि को ये व्रत रखा जाता है. मंगलवार के दिन अगर एकादशी तिथि हो तो उस दिन रखा जाने वाला व्रत भौम प्रदोष कहलाता है. अगर आप नहीं जानते तो बता दें कि मंगल देव का दूसरा नाम भौमा ही है. भाद्रपद का महीना त्योहारों का महीना माना जाता है. ऐसे में एक साथ आपको शिव और भगवान हनुमान की आराधना जब एक साथ करने का सौभाग्य मिल जाए तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है. तो आइए जानते हैं कि भाद्रपद का प्रदोष व्रत तिथि कब शुरु हो रही है ये कब तक रहेगी और पूजा का इस दौरान सबसे शुभ मुहूर्त कौन सा होगा.
भाद्रपद भौम प्रदोष व्रत तिथि (Bhadrapad Pradosh Vrat 2023 Date)
पंचांग के अनुसार, 11 सितंबर 2023 को रात 11 बजकर 52 मिनट पर शुरू हो रही है
13 सितंबर 2023 को प्रात: 02 बजकर 21 मिनट तिथि का समापन होगा
भौम प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त - शाम 06.30 - रात 08:49
भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है क्यूंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करते हैं. आइए इसरी पूजा विधि भी जानते हैं.
भौम प्रदोष व्रत दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें
स्वच्छ वस्त्र धारण करके घर के मंदिर में दीप जलाएं और व्रत लेने का संकल्प लें. पूजा के दौरान बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव को अर्पित करें. हनुमान जी की भी इस दिन विशेष पूजा की जाती है.
पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं.
पूजा के शुभ मुहूर्त के दौरान सर्वप्रथम भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें, उन्हें पुष्प अर्पित करें. भौम प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश की भी आराधना करें.
भगवान शिव को पांच फल, पंच मेवा और पंच मिष्ठान का भोग लगाएं. आखिर में भगवान शिव की आरती करें.
पूजा और अभिषेक के दौरान भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहें.
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प्रदोष व्रत का उद्यापन
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उसके बाद ही विधिवत इसका उद्यापन किया जाता है.
- व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें.
- उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं.
- अगलर दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है.
- ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं.
- खीर का प्रयोग हवन में आहूति के लिए किया जाता है.
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं.
- और अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं.