19 अगस्त को है बहुला गणेश चतुर्थी, जानें व्रत की कथा व इसकी महिमा
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है.19 अगस्त यानी सोमवार को संकष्टी चतुर्थी भी है
नई दिल्ली:
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है.19 अगस्त यानी सोमवार को संकष्टी चतुर्थी भी है और इस दिन भगवान गणेश (Lord ganesha) की पूजा करने से खास फल मिलता है.वहीं बहुला चतुर्थी व्रत में गौ-पूजन को बहुत महत्व दिया गया है.चन्द्र दर्शन भी बहुत शुभ माना जाता है.इस बार संकष्टी चतुर्थी को मनाई जाएगी.
बहुला चौथ की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माताएं कुम्हारों द्वारा मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय-श्रीगणेश तथा गाय की प्रतिमा बनवा कर मंत्रोच्चारण तथा विधि-विधान के साथ इसे स्थापित करके पूजा-अर्चना करने की मान्यता है.इस तरह के पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं.वहीं इसी तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने गौ-पूजा के दिन के रूप में मान्यता प्रदान की है.अत: इस दिन श्री कृष्ण भगवान का गौ माता का पूजन भी किया जाता है.
बहुला चौथ की कथा
इसके पीछे एक यह लोककथा भी प्रचलित है कि एक बार बहुला नाम की एक गाय जंगल में काफी दूर निकल गई. यहां एक शेर उसे खाने के लिए रोक लेता है.गाय ने शेर विनती की कि अपने भूखे बछड़े को दूध पिलाकर वापस आने दे. इस पर शेर उसे छोड़ देता है.शेर के ऐसा करने मात्र से ही उसे शेर योनि से मुक्ति मिल जाती है तथा वह अपने पूर्व रूप अर्थात गंधर्व रूप में प्रकट होता है.
ऐसे करें बहुला चौथ का व्रत
बहुला चतुर्थी व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है.इस चतुर्थी को आम बोलचाल की भाषा में बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.
जो व्यक्ति चतुर्थी को दिनभर व्रत रखकर शाम (संध्या) के समय भगवान श्री कृष्ण, शिव परिवार तथा गाय-बछड़े की पूजा करता है उसे अपार धन तथा सभी तरह के ऐश्वर्य और संतान की चाह रखने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
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इस दिन चाय, कॉफी या दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि यह दिन गौ-पूजन का होने से दूधयुक्त पेय पदार्थों को खाने-पीने से पाप लगता है.इस संबंध में यह मान्यता है कि इस दिन गाय का दूध एवं उससे बनी हुई चीजों को नहीं खाना चाहिए.
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बहुला व्रत माताओं द्वारा अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है.इस व्रत को करने से शुभ फल प्राप्त होता है, घर-परिवार में सुख-शांति आती है एवं मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.यह व्रत करने से परिवार और संतान पर आ रहे विघ्न संकट तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं.इतना ही नहीं यह व्रत जन्म-मरण की योनि से मुक्ति भी दिलाता है.
संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा
सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहा करता था.एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर पका नहीं. बर्तन कच्चे रह गए. इस तरह से उसे कई बार भारी नुकसान हुआ. उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा.तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर संकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया, लेकिन बालक की माता को बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो उसने गणेश जी से प्रार्थना की.
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सुबह कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था, डरकर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया.राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया.तब राजा ने संकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया.इसके बाद से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है.
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