logo-image

Ashadha Gupt Navratri 2022 Argla Stotra: दुर्गा सप्तशती के साथ साथ मां दुर्गा के इस स्तोत्र का पाठ दिलाएगा शत्रुओं पर विजय, हर काम में भी मिलने लगेगी सफलता

Ashadha Gupt Navratri 2022 Argla Stotra: नवरात्रि के दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ साथ अर्गला स्तोत्र का स्तोत्र का जाप जरूर करना चाहिए. यह पाठ करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और कार्यों में सफलता मिलती है.

Updated on: 30 Jun 2022, 04:03 PM

नई दिल्ली :

Ashadha Gupt Navratri 2022 Argla Stotra: आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ आज 30 जून गुरुवार से हुआ है. आज पहले दिन कलश स्थापना के साथ 10 महाविद्याओं का पूजन प्रारंभ हो गया है. माना जाता है की नवरात्रि के दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ साथ अर्गला स्तोत्र का स्तोत्र का जाप जरूर करना चाहिए. यह पाठ करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और कार्यों में  सफलता मिलती है. मां दुर्गा की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. संकटों का नाश होता है और कष्ट से भी मुक्ति मिलती है. अर्गला स्तोत्र का पाठ दो प्रहर में करना सर्वोत्तम माना जाता है या पहला सुबह के समय में और दूसरा मध्य रात्रि के समय में. ध्यान रहे कि, सुबह का पाठ सात्विक रूप में होता है तो वहीं, रात्रि का पाठ तामसिक तौर पर जाना जाता है. इस पाठ को करने से पहले मां चामुंडा देवी का ध्यान करना होता है. 

यह भी पढ़ें: Chawal Ke Totke: आर्थिक तंगी से लेकर पितृ और शनि दोष तक को करें नष्ट, चावल के अचूक उपाय हैं जबरदस्त

अर्गलास्तोत्रं
ऊं जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।1।।

जय त्वं देवी चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणी।
जय सर्वगते देवी कालरात्रि नमोSस्तु ते।।2।।

मधुकैटभविद्रावि विधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।3।।

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।4।।

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।5।।

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।6।।

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।7।।

अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।8।।

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।9।।

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।10।।

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।11।।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। 12।।

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमयच्चकैः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।13।।

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।14।।

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।15।।

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।16।।

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।17।।

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।19।।

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।20।।

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।21।।

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।22।।

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।23।।

भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।24।।

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतींसंख्या वरमाप्नोति सम्पदाम्।।ॐ।। 25।।