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Akshay Tritiya Special: अक्षय तृतीया के दिन पढ़ें मां लक्ष्मी के ये खास मंत्र, घर में होगा स्थिर लक्ष्मी का वास

महालक्ष्मी के इन 5 मंत्रों के जाप से कट जाते हैं सारे कष्ट और मिलती है सुख समृद्धि.

Updated on: 07 May 2019, 10:15 AM

highlights

  • ये ग्रह बना रहे हैं अक्षय तृतीया पर शुभ संयोग
  • मां महालक्ष्मी के पांच बेहद खास मंत्र
  • श्री सुक्तम का पूरा पाठ, पढ़ने से प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी

नई दिल्ली:

Akshay Tritiya Special: आज अक्षय तृतीया का दिन है. आज के दिन मां महालक्ष्मी की पूजा करने से मां की विशेष कृपा मिलती है. अक्षय तृतीया के दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त के किया जा सकता है. जिन लोगों को शादी के लिए शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहे हैं, वे इस तिथि पर शादी कर सकते हैं. इस अक्षय तृतीया को कई शुभ संयोग बन रहे हैं.

अगर सालभर दान नहीं किया है तो इस दिन दान जरूर करना चाहिए, इस दान का अक्षय फल मिलता है. आइये जानते हैं कि महालक्ष्मी के किन मंत्रों के जाप से कट जाते हैं सारे कष्ट, और मिलती है सुख समृद्धि.

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आज के दिन बन रहे हैं खास योग-
आज तीन प्रमुख ग्रहों का गोचर उच्च राशि में रहेगा. सूर्य मेष, चंद्रमा वृषभ, शुक्र मीन राशि में रहेंगे. ये तीनों ग्रह अपनी-अपनी उच्च राशि में रहेंगे. सूर्य के साथ बुध की युति होने से बुधादित्य योग बनेगा.

महालक्ष्मी के पांच खास मंत्र-
#1- महालक्ष्मी गायत्री
।। ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।
लक्ष्मी गायत्री मंत्र पढ़ने से मां लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है और धीरे- धीरे धन की परेशानी खत्म होने लगती है.

#2- धनवान बनने के लिए विष्णु लक्ष्मी मंत्र
।। ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम: ।।

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#3- दुर्गा सप्तशती के इस मंत्र का जाप अक्षय तृतीया के दिन करने से सभी बाधाओं का नाश होता है और घर में सुख समृद्धि आती है.

।। ॐ सर्वाबाधा विर्निमुक्तो धनधान्यसुतान्वित:, मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ।।

#4- श्री सुक्तम का पाठ करने मात्र से ही भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मां महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. श्री सुक्तम मां महालक्ष्मी के 16 मंत्रों का संग्रह है.

ॐ हिरण्यवर्णाम हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥

कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारां आद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियंलोके देव जुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥

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आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥

उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्चमणिना सह।
प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥

क्षुत्पपासामलां जेष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥

मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥

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कर्दमेनप्रजाभूता मयिसंभवकर्दम।
श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥

आप स्रजन्तु सिग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥

आर्द्रां य: करिणीं यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥१५॥

य: शुचि: प्रयतोभूत्वा जुहुयाादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥

पद्मानने पद्मउरू पद्माक्षि पद्मसंभवे।
तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥

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अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥

पद्मानने पद्मविपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥

पुत्रपौत्रं धनंधान्यं हस्ताश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसु।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृतहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभामति:।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांसुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवी माधवी माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥

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महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

॥इति श्रीसूक्तं समाप्तम॥

#5- अगर आप किसी बड़े मंत्रों को न पढ़ पाएं तो इस एक छोटे मंत्र के उपयोग करके भी आप मां की कृपा पा सकते हैं.
।। ॐ श्रीं ।।