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प्रतीकात्मक तस्वीर( Photo Credit : File)
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दिवाली पर्व से जुड़ी 3 और कथाएं हैं जिन्हें बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए जानें दिवाली से जुड़ी इन पौराणिक कथाओं के बारे में ....
प्रतीकात्मक तस्वीर( Photo Credit : File)
इस बार दिवाली (Diwali 2019) 27 अक्टूबर को पड़ रही है और इसको लेकर बाजारों में धूम है. हम सभी जानते हैं कि रोशनी का पर्व दिवाली प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाई जाती है. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इससे जुड़ी सिर्फ यही एक कथा नहीं है. दिवाली पर्व से जुड़ी 3 और कथाएं हैं जिन्हें बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए जानें दिवाली से जुड़ी इन पौराणिक कथाओं के बारे में ....
14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे श्रीराम, दीपों से जगमगा उठी अयोध्या नगरी
रामायण के मुताबिक 14 वर्ष के वनवास के बाद जब श्रीराम, लक्षमण और सीता के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरी नगरी को दीयों से सजाया था. यह अमावस की रात थी. श्रीराम 14 वर्ष के बाद लौटे थे और वह लंकापति रावण का वध करके. साथ में हनुमान और उनकी बानरी सेना भी थी. ऐसे में अमावस्या की काली रात भी दीपक के प्रकाश से जगमगा उठी और मान्यता अनुसार तभी से दिवाली के दिन दिए जलाकर ख़ुशियाँ मनाए जाने की शुरुआत हुई.
भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि दिवाली के एक दिन पहले भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध कर उसे मोक्ष दिलाया था. नरकासुर को मोक्ष दिलाकर भगवान ने उसके आतंक से मुक्त किया था और यही कारण था कि इसके अगले दिन पृथ्वी वासियों ने बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी दिवाली पर्व मनाया.
माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश की पूजन
दिवाली से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलित है. एक राजा ने एक लकड़हारे से खुश होकर उसे चंदन की लकड़ी का एक विशाल जंगल उपहार में दे दिया. इसके बावजूद वह गरीब लकड़हारा चंदन की लकड़ी का महत्व नहीं समझ पाया.
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वह जंगल से चंदन की लकड़ियां काटकर लाता और उन्हें जलाकर भोजन बनाता. यह बात राजा तक पहुंची तो उसे समझ आ गया कि धन का उपयोग केवल और केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि तभी से दिवाली के दिन लक्ष्मी जी के साथ भगवान गणेश जी की पूजा किये जाने का विधान शुरू हुआ.
राजा और साधु की कथा
चौथी कथा के मुताबिक प्राचीन काल में एक बार एक साधु को राजसुख भोगने की इच्छा हुई. इसको पूरा करने की चाह में उस साधु ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या करनी शुरू की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर साधू को मनोवांछित वरदान दिया. वरदान पाकर साधु अहंकारी हो गया और वो सीधा अपने राज्य के राजा के दरबार में पहुंच गया और राजा के सिंहासन पर चढ़कर उसका मुकुट नीचे गिरा दिया.
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मुकुट गिरते ही उसके अंदर से एक सांप निकल कर बाहर की ओर भागा. इस तरह से राजा की जान बची तो वह खुश होकर साधु से कुछ मांगने को कहा. साधु ने राजा समेत सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर निकलने के लिए कहा. राजा वचन दे चुका था इसलिए जैसे ही वह दरबारियों के साथ बाहर निकला, राजमहल खंडहर में बदल गया.
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राजा ने एक बार फिर अपनी और पूरे राजदरबारियों की जान बचने के लिए साधु की प्रशंसा की. इसके बाद साधु को अपनी गलती का पता चला और उसने गणपति को प्रसन्न कर फिर साधु बन गया. माना जाता है कि तभी से माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की परंपरा की शुरुआत हुई.