Gayatri Chalisa: मां गायत्री का ये दिव्य पाठ दिला देता है व्यक्ति को कर्ज से सदैव के लिए मुक्ति, सुंदरता का मिलता है अखंड वरदान
Gayatri Chalisa: जो व्यक्ति मां गायत्री की चालीसा का पाठ मन से करता है उसे न सिर्फ कर्ज के बोझ से मुक्ति मिलती है बल्कि अखंड सौंदर्य का वरदान भी मिलता है.
मां गायत्री का ये दिव्य पाठ दिला देता है व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति( Photo Credit : Social Media)
Gayatri Chalisa: मां गायत्री का रूप सरस, मोहक और अनुपम है, मां की साधना करने से जातक भयमुक्त, चिंतामुक्त, क्रोधमुक्त और कर्जमुक्त हो जाता है. मां गायत्री अपने भक्तों को धैर्य, साहस और ऊर्जावान बनाती हैं. जो व्यक्ति मां गायत्री की चालीसा का पाठ मन से करता है उसे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है. उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और उसे सारे सुख वैभव प्राप्त होते हैं. उसे सतगुणों की प्राप्ति होती है, जिसके जरिए वो प्रगति के शिखर पर आगे बढ़ता है. मां के आशीष से व्यक्ति निरोगी, सुंदर, धैर्यवान और प्रसन्नचित्त बन जाता है.
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अदभुत माया ॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ तुम्हरी महिमा पारन पावें । जो शारद शत मुख गुण गावें ॥ चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥ महामंत्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविघा नासै ॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी । काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥ ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥ तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥ जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई । माता तुम सब ठौर समाई ॥ ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥ सकलसृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ॥ मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित है जावें ॥ दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥ गृह कलेश चित चिंता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥
संतिति हीन सुसंतति पावें । सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥ भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥ घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ॥ जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ॥ सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥ अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी । आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥ बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ । धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥ सकल बढ़ें उपजे सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥
॥ दोहा ॥ यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥