Bakrid 2025 Namaz Timing: इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए बकरीद का पर्व काफी खास होता है. मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए ईद उल अजहा साल का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. इस दिन बकरे के अलावा कुछ विशेष जानवरों का कुर्बानी दी जाती है. ईद उल-फितर के बाद बकरीद को इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, जिसे मुसलमान उत्साह और खुशी के साथ मनाते हैं. बकरीद इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के अनुसार जुल-हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. भारत में 7 जून, शनिवार को बकरीद मनाई जाएगी. इस्लामिक कैलेंडर में 12 महीने होते हैं और इसका धुल्ल हिज इसका अंतिम महीना होता है और इसी महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व मनाया जाता है. इस साल ज़ु अल-हज्जा महीना 30 दिन का है. इस दिन अनुयायी नमाज अदा करने के साथ बकरे की कुर्बानी देते हैं.
शहर के अनुसार बकरीद की नमाज का समय
दिल्ली: सुबह 6:00 से 6:20 तक
मुंबई: सुबह 6:15 से 6:35 तक
लखनऊ: सुबह 5:55 से 6:15 तक
बेंगलुरु- सुबह 6:10 से 6:30
आगरा – शाही ईदगाह सुबह 6.45 से
लखनऊ- ऐशबाग ईदगाह में सुबह 10 बजे
मुरादाबाद- ईदगाह में सुबह 7:00 से 7:30
रांची- ईदगाह में सुबह 9 बजे
कुर्बानी देने के पीछे की कहानी
बकरीद से कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर मुस्लिम समुदाय के लोग घर ले आते हैं और उसे रोजाना खाना-पीना कराते हैं. उसका पालन पोषण बिल्कुल अपने बच्चे की तरह करते हैं. इसके पीछे कारण है कि आप जब कुछ दिन पहले बकरे को ले आते हैं, तो उसका लालन-पालन करने से आपके अंदर उसके प्रति प्रेम जाग जाता है. जिस तरह हज़रत इब्राहीम का अपने बेटे के प्रति प्रेम था. फिर बाद में दुआ पढ़कर अल्लाह का नाम लेकर ज़बह कर देते हैं. बकरीद का पर्व हजरत इब्राहिम की सुन्नत की याद में मनाया जाता है.
कैसे मनाते हैं बकरीद का पर्व?
देश सहित पूरी दुनिया में बकरीद का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन स्नान आदि करने के बाद अल्लाह को याद करने के साथ नमाज अदा करते हैं. इसके बाद कुर्बानी की सभी रस्में अदा करके बकरे या अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है और इसके तीन हिस्से किए जाते हैं. पहला हिस्सा स्वयं के लिए, दूसरा हिस्सा दोस्त या रिश्तेदार के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब या फिर जरूरतमंद को दिया जाता है. इसके साथ ही लोग अल्लाह को आभार व्यक्त करते हैं और एर-दूसरे सो बकरीद की शुभकामनाएं देते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)