शवों के साथ अघोरी रात भर करते हैं ये काम, नागा साधु से होते हैं इतने अलग

भारत साधु-संतों के लिए जाना जाता है. वहीं भारत में अलग-अलग प्रकार के साधु-संत है. जो कि अविवाहित होते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. आज हम आपको नागा साधु और अघोरी के बीच का फर्क बताएंगे.

भारत साधु-संतों के लिए जाना जाता है. वहीं भारत में अलग-अलग प्रकार के साधु-संत है. जो कि अविवाहित होते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. आज हम आपको नागा साधु और अघोरी के बीच का फर्क बताएंगे.

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Nidhi Sharma
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अघोरी-नागा साधु

अघोरी-नागा साधु Photograph: (Freepik AI and Social Media)

हिंदू धर्म में साधु-संतों की कई बिरादरियां हैं. इनके जीने का तरीका, भगवान की आराधना करने के तरीके में भी काफी अंतर होता है. कुछ साधु-संत पहाड़ों पर रहते हैं, तो कुछ श्मशान में रहते हैं. साधु-संत अविवाहित होते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं.  साधु-संतों में एक तबका अघोरी साधुओं का होता है. इनकी वेशभूषा ही इन्हें सबसे अलग बना देती है. आइए आपको बताते हैं अघोरी और नागा साधु में क्या फर्क होता है. 

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कौन होते है नागा साधु

नागा शब्द का अर्थः 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं. 'नागा' का अर्थ 'नग्न' रहने वाले व्यक्तियों से भी है. उत्तरी-पूर्वी भारत में रहने वाले इन लोगों को भी 'नागा' कहते हैं.

कौन होते है अघोरी

वहीं अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है 'उजाले की ओर'. साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है. लेकिन अघोरियों को रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं. ज्यादातर अघोरी श्मशान घाट पर रहते हैं. वैसे कई अघोरी गुफाओं और सूनसान इलाकों में भी रहते हैं. नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है. वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है. एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है. अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है. जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है.

अधजली लाशों का खाते हैं मांस 

कई अघोरियों ने मानी है कि वो इंसान का कच्चा मांस खाते हैं. अक्सर ये अघोरी श्मशान घाट की अधजली लाशों को निकालकर उनका मांस खाते हैं, वे शरीर के द्रव्य भी प्रयोग करते हैं. इसके पीछे उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति प्रबल होती है. वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का हिस्सा है.ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है और श्मशान साधना, जहां हवन किया जाता है.

शवों के साथ बनाते है शारीरिक सम्बन्ध

यह बहुत प्रचलित धारणा है कि अघोरी साधु शवों की साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं. यह बात खुद अघोरी भी मानते हैं. इसके पीछे का कारण वो यह बताते हैं कि शिव और शक्ति की उपासना करने का यह तरीका है. उनका कहना है कि उपासना करने का यह सबसे सरल तरीका है, वीभत्स में भी ईश्वर के प्रति समर्पण. वो मानते हैं कि अगर शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान भी मन ईश्वर भक्ति में लगा है तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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