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Ram Navami 2022, Shri Ramashtak and Aarti: राम जी की ये आरतियां गाने से मिलता है रामायण के 108 अखंड पाठ के बराबर फल, रामाष्टक और इन 3 आरतियों के साथ संपन्न करें राम नवमी की पूजा

Ram Navami 2022, Shri Ramashtak and Aarti: इस बार राम नवमी 10 अप्रैल 2022 को पड़ रही है. ऐसे में राम जी पूजा उनकी इन तीन अद्भुत और चमत्कारिक आरतियों और श्री रामाष्टक पाठ के बिना अपूर्ण है.

Updated on: 01 Apr 2022, 01:27 PM

नई दिल्ली :

Ram Navami 2022, Shri Ramashtak and Aarti: इस बार राम नवमी 10 अप्रैल 2022 को पड़ रही है. इस दिन भगवान राम की पूजा विशेष रूप से की जाती है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार ये पर्व भगवान राम के जन्मदिवस की खुशी के तौर पर मनाया जाता है. कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान राम का जन्म हुआ था. इस दिन भगवान राम के साथ माता सीता, भगवान हनुमान और लक्ष्मण जी की भी पूजा होती है. माना जाता है कि कोई भी पूजा बिना आरती के अधूरी मानी जाती है. ऐसे में हम आपको राम जी की तीन विशेष आरतियों के बारे में बताने जा रहे हैं. राम जी की पूजा उनकी इन तीन अद्भुत और चमत्कारिक आरतियों और श्री रामाष्टक पाठ के बिना अपूर्ण है. शास्त्रों के अनुसार, राम जी की इन तीन आरतियों को रामायण के 108 अखंड पाठ से मिलने वाले फल के बराबर फलदायी माना गया है.

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राम जी की पहली आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंजलोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कंजारुणं।। 
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन।
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं।।

सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।
आजानुभुज शर चाप धर सग्राम जित खरदूषणमं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं।
मम हृदय कंच निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं।।

मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।।

दोहा
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

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राम जी की दूसरी आरती
आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं।।

भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।
देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।
कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।

देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।
आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।

धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।

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राम जी की तीसरी आरती 
आरती कीजै रामचन्द्र जी की। हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला। काली नाग नाथ लाये गोपाला॥

दूसरी आरती देवकी नन्दन। भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे। रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥

चौथी आरती चहुं युग पूजा। देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे। रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

श्री रामाष्टक
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव । गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते । बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् । वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् । पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।