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प्रत्येक वृक्ष का अपना महत्व है. कोई औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है तो कोई भगवान की पूजा के लिए. भारतीय परंपरा में पीपल, बरगद और केले के वृक्ष को विष्णु रूप माना जाता है.
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प्रत्य़ेक धार्मिक कार्य में इन वृक्षों का प्रयोग दिखाई देता है. इनमें से पीपल और बरगद को वृक्ष तथा केले को पादपों की श्रेणी में रखा जाता है. भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है - मैं वृक्षों में पीपल हूं.
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पीपल, आम, बरगद, गूलर एवं पाकड़ के पत्तों को ही पञ्चपल्लव के नाम से जाना जाता है और किसी भी शुभ कार्य में इन पत्तों को कलश में स्थापित करना शुभ माना जाता है.
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वहीं, अगर आपके घर के आस पास कांटेदार वृक्ष है तो उससे धन हानि का संकट बढ़ जाता है. इसके अतिरिक्त कुछ पेड़ों की घर पर छाया पड़ना भी घर वालों को कष्ट देता है.
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घर में यदि पूर्व में पीपल, पश्चिम में बरगद, उत्तर में गूलर और दक्षिण में पकड़ लगाया जाए तो शुभ होता है. इन वृक्षों को घर से इतना दूर लगाना चाहिए कि दिन के दूसरे पहर में इनकी छाया घर पर न पड़े. यहां दूसरे प्रहर का अभिप्राय प्रातः 9 बजे के बाद से है.
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घर में दूध, फल एवं कांटेदार वृक्ष लगाने चाहिए. दूध वाले वृक्षों से धनहानि, फल वाले वृक्षों से संतति क्षय तथा कांटेदार वृक्षों से शत्रु भय होता है. इन वृक्षों की लकड़ी भी घर में शुभ नहीं होती.
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घर के आंगन में उक्त वृक्षों के अतिरिक्त तुलसी, अशोक, चंपा, चमेली, गुलाब एवं केला लगाना भी शुभ फलकारी कहा गया है.
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केले के वृक्ष को सर्वाधिक शुभ कहा गया है. केले की पूजा करने से घर में शांति रहती है और लक्ष्मी का आगमन भी होता है. इसलिए लोग घर में केले का पौधा लगाते हैं.
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केले को साक्षात नारायण का रूप माना जाता है, इसलिए भगवान नारायण के प्रतीक के रूप में केला पूजा, मंडप और विवाह मंडप में लगाया जाता है, केले की पूजा करने से गुरु दोष भी समाप्त होता है.
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अतः घर में पीपल, बरगद और केले की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. कुछ जगह पर घर में अर्थात घर के अंदर केले का पौधा नहीं रखना चाहिए. ऐसा वर्णन मिलता है कि यह गृहस्वामी के उत्थान में बाधक होता है. इसे आंगन में लगाने का विधान है.