रामायण का अयोध्याकांड
नवरात्रि के मौके पर न्यूज स्टेट के स्पेशल कवरेज में आज आपको बताएंगे रामायाण के अयोध्या कांड के बारे में। वाल्मीकि द्वारा लिखे गये रामायण में सात कांड (बालकांड, अयोध्याकांड अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड, उत्तरकांड) का जिक्र है।
दशरथ ने की राम के राज्याभिषेक की घोषणा
राम और सीता के विवाह के बाद बूढ़े हो चुके राजा दशरथ के सामने सबसे बड़ा सवाल था की अयोध्या की गद्दी पर किसे (राम, लक्ष्मण, भरत या शत्रुघ्न) बैठाया जाए। उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी। लेकिन कैकेयी की एक कुबड़ी दासी मंथरा ने उन्हें भड़का दिया।
दशरथ के फैसले से नाराज कैकेयी
मंथरा ने कहा कि अयोध्या का राजा तो भरत को होना चाहिये। इसके बाद कैकेयी नाराज़ होकर कोप भवन में चली गईं। राजा दशरथ परेशान होकर उन्हें मनाने आए।
कैकेयी ने दशरथ के सामने रखी दो शर्त
कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे, पहला ये कि भरत को अयोध्या की राजगद्दी मिले और दूसरा कि राम को चौदह वर्ष का वनवास।
वनवास को जाते सीता, राम और लक्ष्मण
राम ने राजा दशरथ को अपना वचन पूरा करने का आग्रह किया और वो सन्यासियों का वस्त्र पहन सीता और लक्ष्मण के साथ वन को निकल पड़े। इधर राजा दशरथ सदमे का कारण प्राण त्याग दिये। भरत ने उनकी अन्त्येष्टि की
अयोध्या की गद्दी पर रखा खड़ाऊ
मां से नाराज़ भरत राम को मनाने आए परंतु राम ने उन्हें वापस अयोध्या लौटा दिया। अब भरत राम की खड़ाऊ गद्दी पर रख राजकाज देखने लगे। भरत की नाराजगी से कैकेयी को भी अपने किये पर दुख हुआ।