शारदीय नवरात्र 21 सितंबर से शुरू हो चुका है। पर्व के आठवें दिन मां दुर्गा के 'महागौरी' स्वरुप की पूजा की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का भी चलन है। देशभर में और खास कर पश्चिम बंगाल और कोलकाता में महा अष्टमी पर्व की काफी धूम रही।
कोलकाता महानगर तथा पूरा बंगाल दुर्गा पूजा के मूड में रंग गया है। महानगर तथा इसके आसपास के पूजा पंडालों में लोग सुबह से देवी दर्शन के लिए उमड़ने लगते है।
लोगों के आकर्षण का केंद्र बड़े-बड़े पूजा पंडाल बने हैं। इसके अलावा थीम आधारित पूजा पंडाल भी लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियां काफी पहले ही शुरू हो जाती हैं।
पश्चिम बंगाल में पंचमी से दुर्गोत्सव की शुरुआत होती है। महाकाली की नगरी कोलकाता में तो पांच दिनों तक श्रद्धा और आस्था का ज्वार थमने का नाम ही नहीं लेता है।
इन पूजा के चार दिनों में सभी लोग खुशियां मनाते हैं। जिस प्रकार लड़की विवाह के बाद अपने मायके आती है, उसी प्रकार बंगाल में श्रद्धालु इसी मान्यता के साथ यह त्योहार मनाते हैं कि दुर्गा मां अपने मायके आई हैं।
दुर्गोत्सव से पहले तो देवी मां की सुन्दर और मनोहारी मूर्तियां बनाई जाती हैं। प्रमुख रूप से कोलकाता के कुमरतुल्ली नामक स्थान पर कलाकार मूर्तियों बनाते हैं।
बंगाली मूर्तिकार देवी दुर्गा के साथ-साथ लंबोदर गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियां बनाई जाती हैं। देश के बहुत से प्रांतों में बंगाली मूर्तिकारों की खूब मांग रहती है। यहां निर्मित मूर्तियां देश के अन्य स्थानों के साथ ही विदेशों में भी भेजी जाती हैं।
दुर्गा पूजा के लिए कोलकाता में विशाल पंडाल सजाए जाते हैं। शहर और दूर गांवों से आकर शिल्पकार पंडालों का निर्माण करते हैं। इन भव्य पंडालों को बनाने में आने वाली लागत लाखों रुपए में होती है।
फुटपाथ पर लोग सजावट की बहुत सारी सामग्री बेचते हैं। दुकानों से लेकर शॉपिंग मॉल तक हर जगह भीड़ का रेला दिखाई पड़ता है। सभी अपनी-अपनी पसंद की चीजें खरीदते हैं। विजयादशमी के दिन मां का विसर्जन होता है।