नवरात्रि 21 सितंबर से शुरू हो गए हैं (फाइल फोटो)
21 सितंबर से नवरात्र की शुरुआत हो रही है। नौ दिनों तक मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा और अराधना की जाती है। मंदिर में मां के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन भारत में शक्तिपीठों का अलग ही महत्व है। भारत में अलग-अलग जगहों पर शक्तिपीठ स्थापित हैं। देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठ हैं तो भागवत में 108 और गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। हम आपको भारत के 7 प्रमुख शक्तिपीठों के बारे में बताने जा रहे हैं।
भगवान शिव और पार्वती (फाइल फोटो)
शक्तिपीठ की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार माता दुर्गा ने राजा प्रजापति दक्ष के घर में सती के रूप में जन्म लिया। भगवान शिव से उनका विवाह हुआ। एक बार ऋषि-मुनियों ने यज्ञ आयोजित किया था। जब राजा दक्ष वहां पहुंचे तो महादेव को छोड़कर सभी खड़े हो गए। यह देख राजा दक्ष को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपमान का बदला लेने के लिए फिर से यज्ञ का आयोजन किया। इसमें शिव और सती को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया। जब माता सती को इस बात का पता चला तो उन्होंने आयोजन में जाने की जिद की। शिवजी के मना करने के बावजूद वो यज्ञ में शामिल होने चली गईं।
यज्ञ कुंड में कूद गई थीं माता सती (फाइल फोटो)
यज्ञ स्थली पर जब माता सती ने पिता दक्ष से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो उन्होंने महादेव के लिए अपमानजनक बातें कहीं। इस अपमान से माता सती को इतनी ठेस पहुंची कि उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। वहीं, जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और पूरे भूमंडल में घूमने लगे। मान्यता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे, वो शक्तिपीठ बन गया। इस तरह से कुल 51 स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। वहीं, अगले जन्म में माता सती ने हिमालय के घर माता पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: प्राप्त कर लिया।
कालीघाट मंदिर (फाइल फोटो)
कोलकाता (कलकत्ता) में स्थित कालीघाट मंदिर कालिका नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता के अनुसार, इस जगह पर सती मां के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थी। इसी वजह से इस जगह को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां काली मां की विशालकाय मूर्ति है। जानकारी के मुताबिक, यह मंदिर 1809 के आसपास बनाया गया था।
महालक्ष्मी का मंदिर (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र के कोलाहपुर में महालक्ष्मी मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में कर्णदेव ने कराया था। मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी की विशालकाय मूर्ति है, जो 7 हजार साल पुरानी है। वहीं, मंदिर करीब 27 हजार फीट में फैला हुआ है। यहां पर मां सती के त्रिनेत्र गिरे थे।
अंबाजी मंदिर (फाइल फोटो)
अंबाजी का मंदिर भारत का सबसे पुराना और पवित्र तीर्थ स्थान है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले में पहाड़ियों पर अंबाजी का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि ये मंदिर करीब 1200 साल पुराना है। यहां पर मां सती का हृदय गिरा था।
महाकाली का मंदिर (फाइल फोटो)
उज्जैन का महाकाली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर को हरसिद्धि के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सती मां का बायां हाथ और होंठ यहां पर गिरे थे।
ज्वाला देवी का मंदिर (फाइल फोटो)
ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। यहां माता सती की जीभ गिरी थी। मान्यता है कि मां आज भी भगवान शिव के साथ यहां निवास करती हैं। इस मंदिर में सदियों से बिना किसी तेल के प्राकृतिक रूप से ज्वाला जल रही है।
नैना देवी मंदिर (फाइल फोटो)
नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है। मानयता है कि यहां सती मां के नेत्र गिरे थे। ये मंदिर समुद्र तल से 11 हजार मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ों में स्थित है।
कामाख्या देवी मंदिर (फाइल फोटो)
कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में नीलांचल पर्वत पर है। मान्यता है कि माता सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे। जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई।