'मेरे पास मां है..' से लेकर 'कितने आदमी थे..' तक, हिंदी फिल्मों के फेमस डायलॉग्स
'राजा हरिश्चंद्र' और 'आलमआरा' जैसी बेहतरीन फिल्मों से हमने सिनेमा की दुनिया में कदम रखा था। इसके बाद फिल्मी सफर का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो आज भी बदस्तूर जारी है।
News Nation Bureau | Updated : 14 September 2016, 08:43:47 AM
फाइल फोटो
14 सितंबर को हिंदी दिवस है। भारत में भाषा में विविधता होने के बाद भी हिंदी ने सभी को एक-दूसरे से जोड़ रखा है। साहित्य से लेकर सिनेमा तक हिंदी भाषा की धाक आज भी कायम है। 'राजा हरिश्चंद्र' और 'आलमआरा' जैसी बेहतरीन फिल्मों से हमने सिनेमा की दुनिया में कदम रखा था। इसके बाद फिल्मी सफर का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो आज भी बदस्तूर जारी है। हिंदी की कई ऐसी फिल्में हैं, जिन्होंने आज भी लोगों के दिलों में जगह बनाई हुई है। फिर चाहे बात संगीत को हो या फिर डायलॉग्स की।
हिंदी दिवस के मौके पर हम आपको उन हिंदी फिल्मों के डायलॉग्स बताने जा रहे हैं, जो आज भी हमारी जुबान पर हैं।
फिल्म: चुपके-चुपके
डायलॉग: जिस तरह गोभी का फूल, फूल होकर भी फूल नहीं होता, वैसे ही गेंदे का फूल भी फूल होकर फूल नहीं होता।
फिल्म: बावर्ची
डायलॉग: किसी बड़ी खुशी के इंतजार में, हम ये छोटी-छोटी खुशियों के मौके खो देते हैं।
फिल्म: वक्त
डायलॉग: ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं....हाथ कट जाए तो खून निकल आता है।
फिल्म: मदर इंडिया
डायलॉग: तू मुझे नहीं मार सकती... तू मेरी मां है।
फिल्म: विश्वनाथ
डायलॉग: जली को आग कहते हैं बुझी को राख कहते हैं, जिस राख से बारूद बन जाए, उसे विश्वनाथ कहते हैं।
फिल्म: दीवार
डायलॉग: मेरे पास.. मां है।
फिल्म: आनंद
डायलॉग: बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है, जिसे न आप बदल सकते हैं और न मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथों में है। कब, कौन, कहां उठेगा ये कोई नहीं जानता।
फिल्म: - शहंशाह
डायलॉग: रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं..... नाम है शहंशाह।
फिल्म: शोले
डायलॉग: यहां से पचास कोस दूर गांव में ....जब कोई बच्चा रात को रोता है, तो मां कहती है बेटे सो जा.... सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा।
फिल्म: नरसिम्हा
डायलॉग: मुझे पढ़ना आता है... जो शब्दों में लिखा है वो भी.... जो शब्दों में नहीं लिखा है वो भी। -