नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)। मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने के अवसर पर हर कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने में जुटा है। इस मौके पर जीआई (भौगोलिक संकेतक) विशेषज्ञ और पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से खास बातचीत में पीएम मोदी के कार्यकाल को बेमिसाल और अद्भुत बताया।
उन्होंने कहा कि इन 11 वर्षों में शिल्प, कला, कृषि और जीआई के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव आया है, जिसका श्रेय पीएम मोदी की दूरदर्शी सोच को जाता है।
डॉ. रजनीकांत ने अपनी यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि 2006-07 में जीआई कानून बनने के बाद काशी से इसकी शुरुआत हुई।
उन्होंने बताया, “हमें अच्छी तरह याद है कि जब हमने यह यात्रा शुरू की, तो काशी में बनारस की मशहूर साड़ी को पहला जीआई दर्जा दिलाने के लिए आवेदन किया गया। दो साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सितंबर 2009 में बनारस की साड़ी को जीआई का दर्जा मिला। इसके बाद काशी से गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के खिलौने, मेटल रिपोज क्राफ्ट, हाथी के अंदर हाथी, सॉफ्ट स्टोन वर्क, और वॉल हैंगिंग जैसे उत्पादों ने भी जीआई की पहचान हासिल की।”
उन्होंने कहा कि शुरुआत में प्रगति धीमी थी, लेकिन 2014 के बाद पीएम मोदी के नेतृत्व में जीआई को मानो पंख लग गए। काशी से न सिर्फ प्रधानमंत्री मिले, बल्कि भारत की विरासत को आगे बढ़ाने का रास्ता भी खुला। पीएम ने आत्मनिर्भर भारत और लोकल से ग्लोबल का नारा दिया, जिसने जीआई को नई ताकत दी। इसका नतीजा यह हुआ कि काशी आज जीआई उत्पादों का हब बन गया है। वर्तमान में काशी क्षेत्र में 32 जीआई उत्पाद हैं, जो किसी एक भू-भाग में दुनिया में सर्वाधिक हैं। इनसे 20 लाख से अधिक लोग लाभान्वित हो रहे हैं और 25,500 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है।
डॉ. रजनीकांत ने बताया कि काशी की विविधता इसकी ताकत है। यहां हैंडलूम और हस्तशिल्प उत्पादों में बनारस की साड़ी, गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के खिलौने, और मेटल रिपोज क्राफ्ट शामिल हैं। खान-पान में ठंडई, लाल पेड़ा, तिरंगा बर्फी, और लाल भरवा मिर्च ने जीआई दर्जा हासिल किया। संगीत के क्षेत्र में शहनाई और भैंस का तबला भी इस सूची में हैं।
उन्होंने चुनार के बलुआ पत्थर (सैंडस्टोन) का जिक्र किया, जिससे बनी अशोक की लाट आज भी सारनाथ के संग्रहालय में मौजूद है। इसे भी जीआई का दर्जा मिला है। भदोही की कालीन, मिर्जापुर की दरी, और ऊंट की हड्डी से बने शिल्प भी इस विरासत का हिस्सा हैं। बनारस का पान, लंगड़ा आम, और लाल भरवा अचार जैसे कृषि उत्पादों की मांग पूरी दुनिया में है।
उन्होंने बताया कि बनारस के आलू के पापड़ का जीआई आवेदन भी प्रक्रिया में है।
डॉ. रजनीकांत ने कहा कि पीएम मोदी की प्रेरणा से काशी का जीआई मॉडल पूरे देश में लागू हुआ।
उन्होंने बताया, “प्रधानमंत्री जी ने हमसे कहा था कि काशी से बाहर निकलकर भारत के अन्य हिस्सों के लिए भी काम कीजिए। हमें गर्व है कि यह मॉडल अब देशभर में फैल रहा है।”
उन्होंने कहा कि आज 26 राज्यों तक यह पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश 77 जीआई उत्पादों के साथ देश में पहले स्थान पर है। मेघालय में पहले सिर्फ 2 जीआई थे, लेकिन अब बड़े पैमाने पर तैयारी चल रही है। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, और केरल जैसे राज्यों में भी यह मॉडल तेजी से बढ़ रहा है।
डॉ. रजनीकांत ने काशी के जीआई मॉडल की खासियत बताई। उन्होंने कहा, “जब हमने बनारस की साड़ी (जंगला, जामदानी, तनछुई, कटवर्क, जामवार) को जीआई दर्जा दिलाया, तो हमारा हौसला बढ़ा। हम इस क्षेत्र में पेशेवर नहीं थे, लेकिन स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय बने जीआई कानून ने हमें रास्ता दिखाया।”
इसके बाद भदोही की कालीन, मिर्जापुर की दरी, और अन्य शिल्प को जीआई की पहचान मिली।
उन्होंने कहा कि खान-पान में ठंडई, लाल पेड़ा, तिरंगा बर्फी, और रबड़ी शामिल हुई। बनारस का पान और लंगड़ा आम पहले ही विश्व प्रसिद्ध हैं। लाल भरवा अचार की मांग भी वैश्विक है।
उन्होंने कहा, “काशी का मॉडल यह है कि प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थानों की विविधताओं को जीआई से जोड़ा जाए, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिले।”
उन्होंने कहा कि यह मॉडल देवभूमि उत्तराखंड, अरुणाचल, अंडमान-निकोबार, छत्तीसगढ़, झारखंड के बस्तर और उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में दोहराया गया। पीएम मोदी ने अपने भाषण में अंडमान-निकोबार के वर्जिन नारियल का जिक्र किया, जिससे वहां के जनजातीय समुदाय को नई पहचान मिली।
डॉ. रजनीकांत ने कहा, “प्रधानमंत्री जी का 11 साल का सफर बेमिसाल है। जब वे नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा पुल बना सकते हैं, तो द्रास, जो दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा स्थान है, वहां से भी जीआई उत्पाद इस विरासत का हिस्सा बनेंगे।”
उन्होंने काशी के जीआई मॉडल को भारत की विरासत को वैश्विक पटल पर ले जाने वाला बताया।
उन्होंने सरकारी प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा, “नाबार्ड, सीडी, एमएसएमई मंत्रालय, टेक्सटाइल मंत्रालय, और कॉमर्स मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं। नतीजा यह है कि 8-10 साल में जीआई उत्पादों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई। हमें लगता है कि 2-3 साल में यह आंकड़ा 500 के करीब पहुंचेगा।”
डॉ. रजनीकांत ने कहा कि काशी का जीआई मॉडल भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाने की दिशा में अहम कदम है। पीएम मोदी के 11 साल के कार्यकाल में काशी की विरासत को भारत की विरासत के रूप में दुनिया तक पहुंचाने का काम हुआ। यह मॉडल आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर परचम लहराएगा। उन्होंने इस उपलब्धि को पीएम की प्रेरणा और सरकारी विभागों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम बताया।
--आईएएनएस
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