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पेटा ने कहा, पोंगल प्रकृति को धन्यवाद देने का पर्व, कष्ट देने का नहीं

पेटा ने कहा है कि पोंगल प्रकृति का धन्यवाद करने के लिये इस उत्सव को मनाया जाता है और ये बैलों और मनुष्यों की मौत से पूरा नहीं किया जा सकता है।

Updated on: 13 Jan 2017, 12:18 PM

नई दिल्ली:

पोंगल के दौरान इस साल जल्लीकट्टू के आयोजन को लेकर बढ़ रहे विवाद के बीच जानवारों के खिलाफ होने वाले अत्याचार का विरोध करने वाली संस्था पेटा ने कहा है कि प्रकृति का धन्यवाद करने के लिये इस उत्सव को मनाया जाता है और ये बैलों और मनुष्यों की मौत से पूरा नहीं किया जा सकता है।

पेटा की यह टिप्पणी उस वक्त आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने पोंगल से पहले जल्लीकट्टू पर फैसला सुनाने की मांग ठुकरा दी।

तमिलनाडु सरकार ने इससे पहले केंद्र सरकार को लिखकर अनुरोझ किया था कि जल्लीकट्टू आयोजित करने में आ रहे कानूनी अड़चनों को दूर करने के लिये अध्यदेश लेकर आए।

राज्य सरकार का कहना था कि पोगल त्योहार में बैलों की लड़ाई के अलावा भी कई परंपराएं और अर्थ हैं जैसे पूजा, गाना, भगवान को नई फसल आदि अर्पित करना शामिल है।

पेटा के पशु मामलों के निदेशक इंदियम मनिलाल वल्लियेत ने कहा, "इस त्योहार का मतलब प्रकृति को धन्यव्द कहना और जीवन का सम्मान करना है जो बैलों को परेशान करने उन्हें और मनुष्यों को घायल करने और उनकी मौत से नहगीं पाया जा सकता है।"

भारत में कानूनी तौर पर कुत्ते की लड़ाई, मुर्गे की लड़ाई, बैलों की लड़ाई, बैलों की दौड़, और दूसरे कई जानवरों को नुमाइश या खेल के लिये इस्तेमाल किया जाना प्रतिबंधित है।

तमिलनाडु के कई सास्कृतिक और सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस प्रतिबंध का विरोध कर रहे हैं।

राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी डीएमके ने भी राज्यव्यापी आंदोलन कर रही है।