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Social media changing power Photograph: (Social Media)
नेपाल की ही तर्ज पर फ्रांस में करीब एक लाख प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे. प्रदर्शन की बड़ी वजह मुल्क में राजनितिक अस्थिरता और बेहाल जनता. बजट में कटौती के बाद मैक्रों के इस्तीफे की मांग के साथ प्रदर्शनकारियों को सड़क पर उतरना पड़ा. मैक्रों भले दिसंबर 2027 तक अपना कार्यकाल पूरा करने का दम भर रहे हों लेकिन उन्हीं के देश में एक साल में 4 प्रधानमंत्रियों को पद छोड़ना पड़ा है. जानकार भले फ्रांस की तुलना नेपाल से करना बेमानी बता रहे हों लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि फ्रांस में जनता का गुस्सा पनप रहा है.
कई बड़े घोटालों से जनता का भरोसा टूट गया
नेपाल में बेरोजगारी, महंगाई, सोशल मीडिया बैन, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के चलते राजनीतिक नुमाइंदों के खिलाफ बुरे हालात दिखे. बीते सालों में हुए कई बड़े घोटालों से जनता का भरोसा टूट गया. बीते 15 सालों में नेपाल में बेरोजगारी दर 4 फीसदी से बढ़कर 22 फीसदी को पार कर चुकी हैं. रोजी रोटी के लिए 2000 नेपाली हर रोज घर छोड़ने को मजबूर हैं. मुल्क के 75 फीसदी घरों का खर्चा विदेशों से आने वाले remittances से चलता है. बीते 10 साल में मुल्क पर कर्जा 22 फीसदी से बढ़कर 45 फीसदी पहुँच चुका है. मुल्क उधारी पर टिक गया है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट करप्शन के मुद्दे पर चेताती रही है. ऊपर से सोशल मीडिया पर लगे बैन को युवाओं ने अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना. नतीजा - पूरा देश अराजकता की गिरफ्त में है. मुल्क की कानून-व्यवस्था सेना के हाथ में है. और अब सवाल 3 करोड़ आबादी वाले एक देश के राजनीतिक भविष्य का है.
48% आबादी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव
फ्रांस से लेकर नेपाल में युवाओं की नाराजगी जाहिर करने में एक बात कॉमन है - सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स. नेपाल की 55% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. 48% आबादी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव है. ये आंकड़े उस देश के हैं जिसकी 65% आबादी 35 साल सेे कम है. इसी युवा आबादी या कहिये Gen-Z ने नेपाल सरकार का दम तोड़ दिया. वैसे नेपाल में तख्तापलट या फ्रांस में सड़कों पर नाराजगी कोई पहला मामला नहीं है, जिसके पीछे सोशल मीडिया ने अहम् भूमिका निभाई हो. पिछले 15 साल में कई देशों में सोशल मीडिया में ऐसा बगावती सुर उठा कि सरकारें जनता के सामने नतमस्तक हो गई. बड़ी बड़ी तानाशाही सरकारें सोशल मीडिया के आवेग में बह गई. जुलाई 2022 में श्रीलंका में सोशल मीडिया की ताकत दिखी थी. आर्थिक तंगी समेत कई मुद्दों को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ बड़ा प्रोटेस्ट हुआ. प्रदर्शन करने वाले लोग संसद भवन और राष्ट्रपति हाउस में घुस गए. राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा. पिछले साल यानी 2024 में बांग्ला देश के तख्तापलट में भी सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई थी. बांग्लादेश में भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और आरक्षण नीति पर छात्रों के हिंसक प्रदर्शन में हुई पुलिस फायरिंग में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. नतीजा न सिर्फ शेख हसीना की सरकार गिरी बल्कि उन्हें मुल्क छोड़कर भागना पड़ा. उस छात्र आंदोलन को 'दूसरा स्वतंत्रता संग्राम तक कहा गया.
सोशल मीडिया पर छाई वो क्रांति जिसने भूचाल ला दिया
वैसे करीब 15 साल पहले सोशल मीडिया ने सबसे पहले सत्ता के खिलाफ अपनी ताकत का एहसास करवाया था, जिसे 'अरब स्प्रिंग' कहा जाता है. सोशल मीडिया पर छाई वो क्रांति जिसने भूचाल ला दिया था. अरब स्प्रिंग की शुरुआत ट्यूनीशिया से हुई थी. धीरे धीरे अरब वर्ल्ड के कई देशों को अपनी जद में ले लिया. ट्यूनीशिया से उठी विद्रोह की आग में मिस्र, जॉर्डन, लीबिया और सीरिया झुलसे. कई तानाशाही सरकारों का अंत हुआ तो कुछ ने विद्रोह को कुचलकर अपना साम्राज्य बचा लिया. 2011 में ट्यूनीशिया में अल अबिदीन बेन अली का 23 साल का शासन खत्म हो गया. 2011 में ही मिस्र में होस्नी मुबारक सत्ता से बेदखल हुए. लीबिया में मुअम्मर अली गद्दाफी की हत्या हो गयी. 2012 में यमन से अली अब्दुल्ला सालेह सत्ता से बेदखल कर दिए गए. बीतते वक़्त के साथ 2010 के मुकाबले आज सोशल मीडिया ज्यादा ताकवतर है. पहले श्रीलंका, फिर बांग्ला देश और अब नेपाल हाल के सालों में इसके ताजा उदाहरण हैं.
दुनिया में 550 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं
आज पूरी दुनिया की आबादी का करीब 68% यानी करीब 550 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 525 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं यानी पूरी दुनिया की आबादी का करीब 64 फीसदी. दुनिया में 15 से 24 साल के तो 80% लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं. 2024 की एक रिपोर्ट ने बताया कि दुनिया की 65% महिलाएं इंटरनेट इस्तेमाल करती हैं तो वहीं दुनिया के 70% पुरूष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है सोशल मीडिया की ही बदौलत पूरी दुनिया आपस में जुड़ चुकी है. कनेक्टिविटी का दायरा बड़ा है तो कारोबार का फैलाव भी. द बिजनेस रिसर्च कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया का मार्केट साइज 2024 में बढ़कर 185 अरब डॉलर से ज्यादा का हो चुका है. इसके 2029 तक बढ़कर 341.7 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है. जाहिर है अरब स्प्रिंग से लेकर नेपाल तक सत्ता बदलने की तस्वीरें साबित करती हैं कि मौजूदा वक़्त में सोशल मीडिया जनता के हाथों में एक बड़ी ताकत है. अगला नंबर किसी भी मुल्क या हुक्मरान का हो सकता है.
About the author : अनुराग दीक्षित, न्यूज़ नेशन में सीनियर एडिटर (Senior Editor) और एंकर (Anchor) के रूप में कार्यरत हैं। 20 वर्षों के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अनुभव के साथ देश के प्रतिष्ठित हिंदी अख़बारों में नियमित लिखते रहे हैं।