logo-image

Women Safety: ट्रोलर्स के रूप में पैदा होते बलात्कारी सोच के लोग

हर दिन की तरह ही मैं आज भी फेसबुक चलाने में व्यस्त थी कि तभी मुझे मेरे दोस्त की एक पोस्ट दिखी. मैंने उस पोस्ट पर लिख हर कमेंट को पढ़ना शुरू किया और यकीं मानिए अंत तक पहुंचते-पहुंचते मैं कांप उठी. पूरा कमेंट बॉक्स अश्लील शब्द और मां-बहन की गालियों स

Updated on: 12 Mar 2020, 04:56 PM

नई दिल्ली:

सोशल मीडिया जहां हर कोई अपनी बात और सोच रखने के लिए स्वतंत्र है लेकिन दूसरी तरफ ही यहां एक बहुत बड़ा वर्ग महिला विरोधी पैदा हो रहे हैं. हर  दिन की तरह ही मैं आज भी फेसबुक चलाने में व्यस्त थी कि तभी मुझे मेरे दोस्त की एक पोस्ट दिखी. मैंने उस पोस्ट पर लिख हर कमेंट को पढ़ना शुरू किया और यकीं मानिए अंत तक पहुंचते-पहुंचते मैं कांप उठी. पूरा कमेंट बॉक्स अश्लील शब्द और मां-बहन की गालियों से भरा हुआ था, पोस्ट एक लड़के ने किया था और गालियां उसके घर की महिलाओं को पड़ रही थी.

और पढ़ें: International Women's Day 2020: 'सफेद' समाज का 'काला' सच बयां करती इन लड़कियों की कहानी

किसी भी मुद्दे पर सबको अपनी-अपनी बात रखने का हक होता है लेकिन किसी की मां-बहन को रेप करने की धमकी देना कहां तक सही होता है. सीधे तौर पर रेप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था लेकिन उसके शब्द यहीं बयां कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि लोग उसके घर की औरतों को पाते ही चील और गिद्ध की तरह नोंचने लगेंगे. मैं सोच रही थी कि वो ये सब कमेंट पढ़ने के बाद कितना चिंतित और बैचैन हो गया होगा. ये सब पढ़ने के बाद उसके घर की महिलाएं कितनी भयभीत हो गई होगी. एक पुरूष जो अपने परिवार की महिलाओं को सोशल मीडिया से दूर रखकर ऐसे लोगों से सावधानी बरत सकता है. लेकिन एक महिला के लिए इस तरह के लोगों से निपटना कितना मुश्किल रहता होगा इसका अंदाजा वहीं महिलाएं लगा सकती है जो कई बार इस तरह की स्थिति से गुजरी होगी.

मैं भी कई बार अपनी बात रखने की वजह से संकीर्ण मर्दवादी सोच का शिकार हुई हूं लेकिन गालियों से सामना मेरा पहली बार तब हुआ जब मैंने एक धार्मिक पोस्ट को शेयर किया. मैं बहुत कम किसी के धर्म में घुसती हूं लेकिन जहां चीजे गलत होती है वहां धर्म से ऊपर उठकर सवाल करना ही पड़ता है. पोस्ट शेयर करने के बाद ही कुछ दोस्तों ने अनफ्रेंड करना शुरू किया तो कुछ अनजान लोगों ने मेरे पुराने फोटोज पर गाली देना.मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा था इसलिए मैंने घबराकर उस कमेंट को डिलीज कर उन्हें ब्लॉक करती गई. इसके अलावा अपने घर-परिवार की फोटोज को पब्लिक से फ्रेंड, खौफ था कि उन्हें मेरी वजह से कोई कुछ न सुना दें. लेकिन मेरा डर इसके बाद भी जारी था क्योंकि मैं जिस प्रोफेशन में हूं उसमें मुझे मेरी प्रोफाइल और कंपनी का नाम पब्लिक रखना पड़ता है.

ये भी पढ़ें: Women Rights: भारत की महिलाएं जान लें ये जरूरी कानूनी अधिकार, इसके बाद नहीं होंगी अन्याय का शिकार

मैं सोचने लगी कहीं किसी की नफरत इतनी तो नहीं बढ़ जाएगी की किसी दिनवो मेरे ऑफिस के बाहर आकर खड़ा हो जाए या फिर मेरी फोटोज के साथ छेड़खानी कर बैठे. इसके साथ ये भी हो सकता है कि मेरी फेक आईडी बनाकर उसके साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दें. एक झटके में मैंने पता नहीं क्या-क्या सोच लिया एक बार को लगा पोस्ट ही डिलीट कर दूं फिर सोचा नहीं पीछे नहीं हटना है गलत नहीं हूं जो ऐसा करुं.

कुछ देर तक मेरे आंखों के सामने उन तमाम औरतों के चेहरे तैरने लगे जो अपनी आजाद सोच और बातें रखने की वजह से अक्सर ट्रोल होती रहती है. इसमें मेरी एक महिला पत्रकार दोस्त,अभिनेत्री स्वरा भास्कर और बरखा दत्त सब सामने नजर आने लगी. इन जैसी बहुत-सी और भी महिलाएं होगी जो अपने काम, बात और लिखने की वजह से गालियों से सम्मानित हुई होगी. ये सभी अपनी ज्वलनशील बातों के लिए जानी जाती है, जो बीमार मर्दवादी सोच के उजागर होने के बाद भी चुप नहीं होती है.

महिलाओं के लिए असल दुनिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया की दुनिया भी खतरनाक बन चुकी है. यहां भी हर कदम पर उन्हें जकड़ने वाले लोग मौजूद होते है. भेड़ियों की तरह तांक लगाए बैठे होते है कि जिस महिला ने भी समाज और रूढ़ीवादी सोच का विरोध कर के अपने मन का किया उन्हें तुरंत नोंचना शुरू कर देंगे. इसका उदाहरण हम दीपिका पादुकोण की घटना से भी समझ सकते है, जेएनयू जाना उन्हें इतना भारी पड़ सकता है कोई सोच भी नहीं सकता था. 

और पढ़ें: जानें अपने अधिकार: महिलाओं के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ हैं ये कानून

जेएनयू जाने के बाद से ही उनकी फिल्म 'छपाक' का विरोध शुरू हो गया और उन्हें देशद्रोही बता दिया गया. इतना ही नहीं उन्हें ट्रोलर्स ने गालियों से भी नवाजना शुरू कर दिया जबकि वो इससे पहले तक सबके लिए एक बेहतरीन अदाकारा थी.मेरा मानना है कि महिलाओं का कोई धर्म और जात नहीं होता है इसलिए उन्हें धर्म का चोला जल्द से जल्द उतार फेंकना चाहिए. जिस धर्म और उसकी बातों को वो ताउम्र ढोती रहती है वहीं आगे चलकर उनकी जकड़न का कारण बनती है. जिस धर्म का हवाल देकर हमारा समाज हमें हर अपने मन के काम के लिए रोकता है एक दिन वो उसी के आड़ में औरतों के लिए जहर उगलता है. उन्हें निगलने की बात करता है, दिन दहाड़े उनके शरीर को नोंचने की बात कहकर शान से अपने आप को धर्म का ठेकेदार कहता है.

हिंदू धर्म में महिलाओं को देवी कहा जाता है लेकिन किसी दिन वो किसी भगवान के उठाए गए कदम को गलत ठहराती है तो उसी दिन से वो कलंकित हो जाती है. पूज्य नहीं बल्कि संभोग की वस्तु बन जाती है, भगवान के कथित भक्त उन्हें भद्दी गालियां देकर अपने भगवान को महान बताते है. वहीं दूसरी तरफ अगर किसी मुस्लिम महिला ने अपनी पसंद के कपड़े और शादी करने का फैसला करती है तो उनके लिए फतवा जारी कर दिया जाता है. बुर्का जैसी सड़ चुकी व्यवस्था का विरोध करने पर जब उन्हें शब्दों से नंगा किया जाता है तो पुरूष कुरान की उन लाइनों को भूल जाते है जिसमें महिलाओं को सम्मान करने की बात लिखी होती है.

इस पितृसत्तात्मक समाज को समझना होगा की धार्मिक ग्रंथों में लिखी गई बातों को मानने की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं के कंधों पर नहीं है. धर्म के ठेकेदार भूल जाते हैं कि जिस भगवान, अल्लाह का वो पक्ष लेकर महिलाओं को गरिया रहे है उन्होंने ने भी औरतों के सम्मान में अपनी जिंदगी बीता दी थी.

और पढ़ें: बेहतरीन अभिनय से फिल्मों में अपनी अलग जगह बनाने वाली कोंकणा सेन की पहचान 'बिन ब्याही मां' तक ही सीमित नहीं

महिलाओं को भी उस समय तो और ज्यादा सोचना होगा जिस समय कथित धर्म को बचाने के लिए उनकी इज्जत को तार-तार कर देनी वाली बातें लिखी जाती है. उन्हें याद रखना होगा कि महिलाओं की एक ही जाति और धर्म होती है और वो है सिर्फ एक महिला होना.

वहीं खतरनाक हो रहे इन ट्रोलर्स के खिलाफ भी जल्द कोई कदम उठाना होगा वरना ये ऐसे ही खुलेआम औरतों को धमकाते रहेंगे और हम ऐसे ही बढ़ते महिला अपराध के ग्राफ पर अफसोस मनाते हुए महिला दिवस पर झूठा गुणगान करते हुए कन्यापूजन करते रहेंगे या फिर सुरक्षा का हवाला देकर उन्हें पूरे कपड़े में ढककर घर की चौखट पर बांध देंगे.