राहुल गांधी क्यों नहीं कर पा रहे हार को स्वीकार, लगातार कर रहे जनादेश का अपमान
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के साथ ही चार पन्नों का एक पत्र भी जारी किया. यह पत्र इस बात का पुख्ता संकेत है कि कांग्रेस पार्टी या फिर राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार से कोई सबक नहीं सीखा.
highlights
- राहुल गांधी ने देश में अकल्पनीय हिंसा का दौर कह करी डराने की कोशिश.
- बीजेपी पर सरकारी मशीनरी और धनबल से चुनाव लड़ने का आरोप मढ़ा.
- संवैधानिक संस्थाओं पर गंभीर खतरे की बात कह किया जनादेश का अपमान.
नई दिल्ली.:
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के साथ ही चार पन्नों का एक पत्र भी जारी किया. यह पत्र इस बात का पुख्ता संकेत है कि कांग्रेस पार्टी या फिर राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार से कोई सबक नहीं सीखा. इस पत्र में उन्होंने जिस तरह से बीजेपी की जीत पर सवालिया निशान खड़े किए हैं, वह एक तरह से जनादेश का अपमान है. उन्होंने संस्थाओं पर हमले की बात कही है, जो एक तरह से परोक्ष आरोप है कि बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संस्थाओं का दुरुपयोग किया. और तो और, इस पत्र में उन्होंने एक तरह से लोगों को डराने का काम किया है. उन्होंने बीजेपी की जीत को देश के लिए अकल्पनीय हिंसा औऱ दर्द के दौर का सूत्रपात करार दिया है. सच तो यह है कि उनका यह पत्र उस सामंती मानसिकता को ही सामने लाता है, जिससे कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा ग्रस्त है. श्रेष्ठि बोध का यह भाव कांग्रेसियों में देश पर लंबे समय तक शासन करने से उपजा है. राहुल गांधी का यह पत्र भी इसी का परिचायक है, जिसमें वह हार को पचा नहीं पा रहे हैं और बीजेपी की जीत को धनबल, सरकारी मशीनरी की देन बता रहे हैं.
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हार से सीख लेने को तैयार नहीं
उन्होंने पत्र की शुरुआत में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए खुद को जिम्मेदार बताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात कही. साथ ही उन्होंने कहा कि इस हार के बाद भविष्य की मजबूती के लिए बेहतर होता कि अन्य लोग भी अपनी जिम्मेदारी समझते. अब इस बात से वह क्या कहना चाहते हैं यह समझ से परे हैं? संभवतः वह भूल रहे हैं कि जिम्मेदारी हमेशा से नेतृत्व की ही होती है. अगर पराजय के लिए कार्यकर्ता जिम्मेदार ठहराए जाएंगे. तो फिर तो हो चुका. इस बात से जाहिर होता है कि वह पराजय के कारणों पर न तो विचार करना चाहते हैं और न ही उनसे सीख लेना चाहते हैं.
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संविधान को खतरे में बता फिर आलापा पुराना राग
इस पत्र में राहुल गांधी ने बीजेपी की जीत पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि मेरी लड़ाई सत्ता के लिए नहीं थी. अपितु बीजेपी के भारत रूपी विचार के खिलाफ थी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी. राहुल गांधी ने एक बार फिर संविधान को खतरे में बताया औऱ कहा कि राष्ट्र के ताने-बाने को नष्ट किया जा रहा है. अब यह समझ नहीं आता कि कांग्रेस के इतिहास में ऐसे कई मामले दर्ज हैं, जहां संविधान की मनचाही व्याख्या कर राजनीतिक हित साधे गए हैं. फिर यह आक्षेप बीजेपी पर क्यों? सबसे बड़ी बात राहुल गांधी ने एक भी उदाहरण नहीं दिया, जो उनके आरोप की पुष्टि करता हो.
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बीजेपी पर सरकारी मशीनरी और धनबल से चुनाव जीतने का लगाया आरोप
लोकसभा में बीजेपी को मिले जनादेश की उन्होंने सिरे से अवहेलना करते हुए जीत को ही संदेहास्पद बना दिया. फ्री प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और पारदर्शी चुनाव आयोग की वकालत करते हुए उन्होंने एक तरह से यह साबित करने की कोशिश की कि बीजेपी ने इन पर कब्जा कर लिया औऱ इनका मनचाहा इस्तेमाल लोकसभा चुनाव में किया. यही नहीं, उन्होंने यह सनसनीखेज आरोप भी लगाया कि बीजेपी ने आर्थिक संसाधनों पर कब्जा कर रखा है, इस कारण निष्पक्ष चुनाव की संभावनाएं ही खत्म हो गई थीं. आखिर राहुल गांधी कहना क्या चाहते हैं? वह कह रहे हैं कि कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव किसी एक राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं, बल्कि समग्र मशीनरी के खिलाफ लड़ा. तो क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी सरकारी मशीनरी बीजेपी को जीत दिलाने में लगी हुई थी! अगर वह यही कहना चाहते हैं तो फिर वह जनादेश का अपमान ही कर रहे हैं.
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आरएसएस ने कब और कहां किया संस्थाओं पर कब्जा
यही नहीं, राहुल गांधी ने एक नया आरोप यह लगाया कि भारतीय की संवैधानिक संस्थाओं पर आरएसएस का कब्जा हो चुका है. लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो गई है. और तो और, देश एक अकल्पनीय हिंसा के दौर में प्रवेश कर रहा है, जिसके खिलाफ कांग्रेस के संघर्ष को जारी रखने की बात उन्होंने कही है. क्या राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि देश के मतदाताओं ने बीजेपी को दोबारा सत्ता सौंप कर अराजकता को चुना है! क्या राहुल गांधी इस तरह के बयानों से देश को डर के साये में झोंक देना चाहते हैं! क्या वह यह कहना चाहते हैं कि देश में जब भी कुछ अच्छा होता है, तो कांग्रेस के शासन में ही होता है! गैर कांग्रेस दलों की सरकारें देश को अच्छा कुछ नहीं दे सकतीं? इस डर को और भयावह बनाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचला जा रहा है.
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ऐसे तो हो चुका कांग्रेस का भला
यह तो हद ही हो गई. राहुल गांधी ने इस तरह का पत्र लिखकर वास्तव में एक तरह से उस श्रेष्ठि बोध की ग्रंथि का परिचय दिया है, जिससे आज अधिसंख्य कांग्रेसी नेता ग्रस्त हैं. बजाय लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के कारणों की तलाश करने के राहुल गांधी यह कहना चाह रहे हैं कि बीजेपी को मिला जनादेश निरंकुशता और धनबल की देन है! अगर ऐसा है तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस रास्ते से भटक गई है. गैर गांधी परिवार के किसी शख्स को पार्टी अध्यक्ष बना देने से कांग्रेस का भला होने वाला नहीं. उसका भला तभी हो सकेगा जब वह जमीनी स्तर पर कांग्रेस की लोकप्रियता में आ रही कमी के कारणों को तलाशेगी. संस्थाओं का भगवाकरण, अक्लपनीय डर और धनबल के आरोप लगाकर कांग्रेस अपने चारों ओर एक ऐसा छद्म आवरण खड़ा कर रही है, जहां सच्चाई की किरण चाह कर भी प्रवेश नहीं कर सकेगी. और हर बार कांग्रेस अध्यक्ष को नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देना पड़ेगा. कांग्रेस बतौर राजनीतिक पार्टी को इससे कुछ फायदा नहीं होगा.
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