20 सालों में कश्मीरी पंडितों को लेकर सरकारों ने क्या किया? हजारों करोड़ के पैकज का क्या हुआ?
इस बात को दो दशक से ज्यादा हो गए, जब जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2001 में कश्मीरी माइग्रेंट्स को फिर से बसाने का एक्शन प्लान पेश किया था. तबसे लेकर अब तक हजारों करोड़ के पैकेज बने लेकिन आज भी कश्मीरी माइग्रेंट्स अपने घर जाने के इन्तजार में हैं.
News Delhi :
कश्मीर फाइल्स को आये हुए कई दिन हो गए, यह पिछले कई सालों की पहली ऐसी फिल्म थी जिसे लेकर संसद तक में चर्चा हुई. आज भी आए दिन ट्विटर पर कश्मीर ट्रेंड कर रहा होता है. यह जानकारी तो पब्लिक स्पेस में है कि कैसे और किन परिस्थितियों में लाखों कश्मीरियों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था लेकिन सवाल है उसके बाद क्या हुआ? कश्मीरी माइग्रेंट्स को लेकर सरकारों ने 1990 से लेकर अब तक क्या किया और जो कुछ हुआ भी उससे क्या बदला और अभी क्या किया जाना बाकी है? आज की रिपोर्ट में हम तसल्ली से, इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेंगे.
कितने कश्मीरियों को छोड़ना पड़ा था कश्मीर
इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर ने 2010 में एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक 1990 से लेकर बाद के सालों तक, ढाई लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था. हालांकि, जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जो आंकड़ा उपलब्ध कराया गया था उसके मुताबिक़, 44 हजार 684 कश्मीरी पंडित परिवारों के 1 लाख 54 हजार 712 लोगों ने रिलीफ और रिहैबलिटेशन के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन करवाया था. ये आंकड़ा फरवरी 2022 में उपलब्ध करवाया गया था.
2020 में लोकसभा के एक और प्रश्न के जवाब में यह बताया गया था कि 90 के दशक में कुल 64 हजार 951 कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर छोड़ा था. इनमें से 43 हजार 618 परिवार जम्मू में, 19 हजार 338 परिवार दिल्ली में और 1 हजार 995 परिवार देश के अन्य राज्यों में रह रहे थे.
अब लोकसभा के जवाब से जो आंकड़े हमारे हाथ लग रहे हैं, उसे एनलाइज करने पर हमें एक क्लोजर जरूर मिलता है कि कितने कश्मीरी पंडितों ने 90 के दशक में कश्मीर छोड़ा था? दरअसल, जिन 64 हजार 951 कश्मीरी पंडित परिवारों को कश्मीर छोड़ना पड़ा उनमें से सिर्फ 44 हजार 684 कश्मीरी पंडित परिवारों का ही रिलीफ और रिहैबलिटेशन के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन हुआ था. यानी 21 हजार से ज्यादा परिवारों का रजिस्ट्रेशन ही नहीं हो पाया था. जिन 44 हजार 684 कश्मीरी पंडित परिवारों ने रिलीफ और रिहैबलिटेशन के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन करवाया था उनमें डेढ़ लाख से ज्यादा लोग थे. अब सवाल उठता है कि जिन 21 हजार से ज्यादा परिवारों का रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ, उसमें कितने लोग थे?
आम तौर पर यह कहा जाता है कि डेढ़ लाख कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर छोड़ा था, दरअसल यह आंकड़ा तो सिर्फ उनका है जिनका रिलीफ और रिहैबलिटेशन के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन हो गया था. अगर हम उन 21 हजार से ज्यादा परिवारों की बात करें जिनका रिलीफ और रिहैबिलिटेशन के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा है. इसलिए इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की 2010 की रिपोर्ट में जिन ढाई लाख कश्मीरी पंडितों के कश्मीर छोड़ने का दावा किया गया है वह सच के आस-पास है.
कागज पर बनती रही योजनाएं, जमीन पर बेअसर
1990 से ही कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए राज्य और केंद्र सरकार तमाम योजनाएं रोल आउट करती आई हैं. इन स्कीम्स का उद्देश्य कश्मीरी माइग्रेंट्स को कैश असिस्टेंट, हाउसिंग, ट्रांजिट अकोमोडेशन और रोजगार उपलब्ध कराए जाने की रही है. इसके अलावा इन योजनाओं का सबसे ज्यादा फोकस घाटी में उनके वापसी के लिए एक अनुकूल स्थिति तैयार करने की रही है. तमाम योजनाओं के बाद भी आज तक कश्मीरी माइग्रेंट्स की वापसी कश्मीर में नहीं हुई. इसकी क्या वजहें हैं? इसे समझने के लिए हमें उन योजनाओं को क्रोनोलॉजिकल ऑर्डर में समझना होगा जो 1990 से लेकर आजतक रोलआउट की गई हैं.
1990, जब व्यापक राहत योजनाओं की घोषणा की गई
1989-90 वे साल थे जब घाटी में अमानवीयता और बर्बरता की हदें पार कर दी गईं, हाजरों की संख्या में कश्मीरी परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूरत होना पड़ा. इसमें हिंदू, सिख और मुस्लिम भी शामिल थे. ज्यादातर संख्या में कश्मीरी अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया था.
1990 के दशक में माइग्रेंट्स कश्मीरी परिवारों को 250 रुपये और फ्री राशन देने की शुरुआत हुई. ये योजनएं आज भी चल रही हैं लेकिन समय के साथ कैश असिस्टेंस बढ़ता गया. साल 2018 आते-आते कैश असिस्टेंस की रकम बढ़कर, 13 हजार रुपए प्रति परिवार या 3250 रुपए पर हेड हो गई. इसके अलावा राशन की मात्रा भी बढ़ाई गई और 2018 आते-आते हर महीने 9 किलो ड्राई राशन, दो किलो आटा, एक किलो चीनी भी उपलब्ध कराई जाने लगी. जो कश्मीरी माइग्रेंट्स दिल्ली में रह रहे हैं, उनके लिए दिल्ली सरकार भी पर हेड 3250 रुपए देती है लेकिन इसमें से 1 हजार रुपए ही दिल्ली की राज्य सरकार की तरफ से दिया जाता है बाकी केंद्र से मिल रहा है.
1996, स्पेशल पैकेज
1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 6 करोड़ 60 लाख का स्पेशल पैकेज जारी किया। इस पैसे से कैम्पों की सुविधाओं को चाक-चौबंद किया जाना था. इसके तहत कैम्पों में एक रूम का टेंट, टॉयलेट कॉम्प्लेक्स, ड्रेनिंग की व्यवस्था और स्कूल बिल्डिंग शामिल थी.
आज भी कैम्पों से की जाने वाली तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में बदहाली ही नजर आती है, जाहिर है स्पेशल पैकेज के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा डाला गया था.
1997, माइग्रेंट्स की संपत्ति की सुरक्षा के लिए कानून
1997, आते-आते कश्मीरी माइग्रेंट्स की प्रॉपर्टी को बेच दिए जाने के मामले सामने आने लगे थे. इसे रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक एक्ट लाया जिसका नाम था “जम्मू-कश्मीर माइग्रेंट इमूवेबल प्रॉपर्टी प्रिवेंशन, प्रोटेक्शन, एंड रिस्ट्रेंन ऑन डिस्ट्रेस सेल्स एक्ट 1997” इस एक्ट के आने के बाद घाटी में कश्मीरी माइग्रेंट्स के पीछे छूट गई प्रॉपर्टी को सुरक्षा मिली, हालांकि रिपोर्ट ऐसी भी हैं कि कई माइग्रेंट्स की प्रॉपर्टी गलत तरह से बेच ली गई .
2001, कश्मीरी माइग्रेंट्स के वापसी के लिए एक्शन प्लान
इस बात को दो दशक से ज्यादा हो गए, जब जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2001 में कश्मीरी माइग्रेंट्स को लौटने का एक्शन प्लान पेश किया था. इसके लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2589.73 करोड़ रुपए खर्च होने का एस्टीमेट बनाया था. मई 2001 में केंद्र की अटल सरकार ने इसे मंजूरी भी दे दी थी. इसके तहत, हर परिवार को डेढ़ लाख रुपए का रिहैबिलिटेशन ग्रांट, 1 लाख रुपए घर की रिपेरिंग की ग्रांट, तीन लाख रुपए डैमेज हो चुके घर की रिपेरिंग की ग्रांट, 50 हजार रुपए की ग्रांट फर्नीचर और अन्य सामान के लिए, हर वयक्ति को 1 से दो लाख रुपए का इंट्रेस्ट फ्री लोन, जिन परिवारों का एग्रीकल्चरल लॉस हुआ था उन्हें डेढ़ लाख का कम्पनसेशन और एग्रीक्लचर में इन्वेस्ट करने के लिए हर परिवार को डेढ़ लाख का इंट्रेस्ट फ्री लोन दिए जाने का प्रावधान था. एक्शन प्लान को केंद्र ने अप्र्रूव तो कर दिया था लेकिन यह आज तक एक्जीक्यूट नहीं किया गया.
2003 में कश्मीरी पंडितों की समस्या सुलझाने के लिए कमेटी
2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने, कश्मीरी पंडितों की समस्या को एड्रेस करने के लिए एक कमेटी बनाई. इसके अलावा 500 नए टेंट बनाने के लिए 10 करोड़ और 5 करोड़ रुपए टेंटों की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए दिए गए.
2004, प्रधानमंत्री रीकंस्ट्रक्शन प्रोग्राम
2004 में कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए प्रधानमंत्री रीकंस्ट्रक्शन प्रोग्राम की शुरुआत की गई. इसके तहत 5 हजार 248 टू रूम सेट बनाए जाने थे. इसके अलावा इस प्रोग्राम के तहत कम्युनिटी हॉल, हायर सेकेंडरी स्कूल , हेल्थ सेंटर, पानी और बिजली की सप्लाई और पार्क उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान था. इसके लिए 24 हजार करोड़ का बजट एलोकेट किया गया था. गृह मंत्रालय के मुताबिक 5 हजार 242 टू रूम सेट बनाए गए थे.
2008, कॉम्प्रिहेंसिव पैकेज
2008 में केंद्र सरकार ने एक कॉम्प्रिहेंसिव पैकेज जारी किया था, इसका भी मकसद कश्मीरी माइग्रेंट्स को का पुनर्वास ही था. इसके तहत घर खरीदने, रिपेयर करने, या उसके कंस्ट्रक्शन के लिए वित्तीय सहायता, ट्रांजिट एकमोडेशन, कैश रिलीफ, स्टूडेंट स्कालरशिप और 3 हजार राज्य की सरकारी नौकरियां देने का प्रावधान था.
इसके इम्प्लीमेंटेशन के लिए राजस्व मंत्रालय के अध्यक्षता में एक अपेक्स कमेटी भी बनाई गई. यह पैकेज भी 2008 जैसा ही था लेकिन न तो कुछ हुआ और न ही किसी को बसाया गया.
2015 में मोदी सरकार ने जारी किया पैकेज
2015 में मोदी सरकार ने एक और पैकेज जारी किया, इसके तहत 3 हजार कश्मीरी माइग्रेंट्स को राज्य सरकार की नौकरी और 6 हजार नए टेंट्स का कंस्ट्रक्शन किया जाना था. इसके अलावा 29 करोड़ रुपए मेंटिनेंस के लिए जारी किए गए.
2021, शिकायतों को एड्रेस करने के लिए पोर्टल
2021 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक पोर्टल लॉन्च किया जिससे कश्मीरी माइग्रेंट्स के प्रॉपर्टी से जुड़ी शिकायतें सुनी जाएं और उन्हें हल किया जाए.
इन योजनाओं का क्या स्टेटस है
कुल मिलाकर दो अलग-अलग पैकेज के जरिए 6 हजार राज्य सरकार की नौकरियों को देने की बात कही गई थी. लोकसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक़ इसके तहत 22 फरवरी 2020 तक 2905 पद भरे जा चुके थे. इन एम्प्लॉय को एकमोडेट करने के लिए 849 फ़्लैट भी बनाए जा चुके हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी भी सरकार की तरफ से सामने आई कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने 1739 माइग्रेंट्स को नौकरी में अपॉइंट कर लिया है. इसके अलावा 1098 एडिशनल नौकरियां भी दी गई हैं जो 2015 के पैकेज में अनाउंस की गई थी. इसके अलावा सरकार ने यह भी जानकारी दी है कि 2023 तक सभी ट्रांजिट एकमोडेशन को पूरा कर लिया जाएगा.
सालों से कश्मीरी माइग्रेंट्स को लेकर तमाम पैकेज और योजनाएं बनाई गईं, लेकिन हाल जस का तस है, सिर्फ दो स्कीम ही ऐसी रही हैं जिनका फोकस कश्मीरी माइग्रेंट्स के पुनर्वास पर था लेकिन वे भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सकीं, कश्मीरी माइग्रेंट्स की समस्या के कई डाइमेंशन्स हैं जो रहने से लेकर रोजगार सुरक्षा तक फैली हुई है. यह समस्या तब तक सुलझाई नहीं जा सकती जब तक कश्मीरी माइग्रेंट्स का पुनर्वास किया न जाए.
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