देश आजाद है, पर हमारी ‘शक्ति’ अब भी पराधीन है

वर्षों से भारत एक पुरुष-प्रधान देश की तरह स्थापित रहा है। यहां महिलाओं की व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा उसे पिता या पति की पहचान से ही जाना जाता रहा है

वर्षों से भारत एक पुरुष-प्रधान देश की तरह स्थापित रहा है। यहां महिलाओं की व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा उसे पिता या पति की पहचान से ही जाना जाता रहा है

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Mohit Sharma
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Shakti

Shakti( Photo Credit : सांकेतिक ​तस्वीर)

वर्षों से भारत एक पुरुष-प्रधान देश की तरह स्थापित रहा है। यहां महिलाओं की व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा उसे पिता या पति की पहचान से ही जाना जाता रहा है। बेटियों को दहेज की वजह से बोझ समझा गया और बेटों को परिवार का पोषण करने वाला चिराग,भारत वर्षों से पुरुष-प्रधान देश रहा है. भारतवर्ष विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश माना जाता है। भारतीय संस्कृति में माता, या मां का दर्जा भगवान से भी ऊपर समझा जाता है।  महिलाएं अपने जीवन काल में कई रिश्तों को संभालकर एक डोर में पिरोए हुए चलती हैं। औरत के एक नहीं, अनेक रूप हैं।  उसी प्रकार जैसे मां दुर्गा के कई रूप हैं। कभी वह जननी है, तो कभी अन्नपूर्णा, कभी वह घर की लक्ष्मी है तो कभी शक्ति और सरस्वती। जिसका उदाहरण इसी माह में पड़ने वाला नवरात्रि है जिसमे देवी/शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाएगी। महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के नौ स्वरूपो शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी। मान्यता के अनुसार व्रत तोड़ने के पूर्व कन्याओ को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा भी प्रदान किया जाएगा,तभी यज्ञ पूर्ण मानी जायेगी।

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जिस देश में औरत देवी-रूप में पूजी जाती हो, उस देश में तो उसका बहुत सम्मान होना चाहिए। लेकिन क्या सच्चाई इससे मेल खाती है? आइए जानते हैं तथ्य क्या कहते हैं- भारत में सेक्स रेशियो यानी प्रति 100 लड़कियों में लड़कों की संख्या 107- 111 तक आ पहुंची हैं।इसका मतलब है कि यहां फीमेल फोइटिसाइड यानी भ्रूण हत्या के केस काफी बढ़ गए हैं।  मगर ऐसा क्यों?

वर्षों से भारत एक पुरुष-प्रधान देश की तरह स्थापित रहा है। यहां महिलाओं की व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा उसे पिता या पति की पहचान से ही जाना जाता रहा है। बेटियों को दहेज की वजह से बोझ समझा गया और बेटों को परिवार का पोषण करने वाला चिराग। बेटियां चारदिवारी के अन्दर ही रह गईं और बेटों को पढ़ाया लिखाया गया जिस से वह अपना भविष्य उज्जवल कर सकें और परिवार की जरूरतें पूरी कर सकें। एक ही घर में बेटों का दर्जा अलग और बेटियों का दर्जा भिन्न होता, या ये कहें कि लड़कों की तुलना में निम्न ही होता।  एक ऐसे देश में जहां विद्या की देवी सरस्वती है, और न जाने कितनी विदुषियां इतिहास के पन्नों में इंगित हैं, उस देश में लड़कियों का पढ़ना-लिखना और अच्छे पदों पर रहना सभी की आंखों को खटकता रहा। हम ऐसे समाज को बढ़ावा देते गए जहां बेटों की सौ भूल माफ़, मगर बेटियों की एक गलती भी हलक से नीचे नहीं उतर पाती। औरतों के जीवन से जुड़े हर फैसले में उनसे ज्यादा किसी पुरुष रिश्तेदार के विचार शामिल होते है जिसका नतीजा यह हुआ कि महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा और प्रताड़ना वक़्त के साथ कई गुना बढ़ गयी।

एक ओर हमारा देश एक स्वतंत्र गणराज्य है, और दूसरी ओर महिलाएं अभी भी पराधीन हैं। हालांकि विचारधारा में बदलाव और नए दौर के साथ कई ऐसी स्त्रियां आईं जिन्होंने महिला सशक्तीकरण के बारे में जागरुकता फैलाई और उनकी कोशिशों से आज के हालात पहले से काफी बेहतर हैं।सरकार की तरफ से 'बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ' जैसी कई योजनाएं चलाई गईं जिस से बेटियों के भरण पोषण और शिक्षा की व्यवस्था की जा सके। ऐसी ही एक योजना का नाम है-'लाडली लक्ष्मी योजना' जिसका लाभ कई बालिकाओं को मिल रहा है। गौरतलब है कि कई पढ़े लिखे लोगों की मानसिकता आज के ज़माने में भी यही है कि बेटियों को उतना ही पढाओ जितने में वह घर की और बच्चों की सही देखभाल कर पाएं और अपने करियर को बनाने का अवसर सिर्फ मर्दों को दिया जाता रहा है। ऐसे लोगों से मेरे कुछ सवाल हैं! - वो ज़रा सोचें और बताएं की क्या हमारी बेटियों ने जीवन के हर पहलू और विकास की हर चोटी तक पहुंच कर नहीं दिखाया? क्या घर और बाहर दोनों के काम उसी ऊर्जा के साथ नहीं संभाले? क्या हर वर्ग, हर छेत्र में लड़कियों ने अपना लोहा नहीं मनवाया?

तो फिर क्यों आज भी महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है। एक ही नौकरी में लड़कों को अधिक और लड़कियों को कम तनख्वाह क्यों दी जाती है? क्यों आज भी उसके सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, और शैक्षिक विकास में उसे अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ता है?

महिलाओं को सशक्त बनाना सिर्फ सरकार का ही दायित्व नहीं है अपितु हम सभी का भी यह कर्तव्य बनता है किन महिलाओं को उनका पूरा हक और सम्मान मिलना चाहिए हमें प्रण करना चाहिए कि इस नवरात्रि से हम अपने आसपास की महिलाओं और बेटियों कभी वैसे ही सम्मान करेंगे जैसे अपने घर की महिलाओं का करते हैं । एक महिला अगर सशक्त है तो वह पूरे परिवार को उत्थान की ओर ले जाती है। और यदि परिवार का विकास हुआ तो गांव , जिले, प्रदेश और देश के विकास का सपना जो हम देखते हैं वह अवश्य ही परिपूर्ण होगा। इस नवरात्रि पर समाज के सभी वर्गों,जातियों,संप्रदायों को आगे आकर देश में भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा समेत कई कुरीतियों को समाप्त करने के लिए संकल्प लेना होगा जिससे हमारी मातृशक्ति इस सदी में स्वाधीन हो सके।क्योंकि पिता अगर आकाश है तो माता, धरती और दोनों का समान रूप से विकास पूरे परिवार,समाज को प्रगति की ओर अग्रसर करता है। 

Source : Brijesh Mishra

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