Temple Of Melody: अजर-अमर हो गईं स्वर कोकिला लताजी
मोहम्मद रफी साहब, मुकेशजी और किशोरदा में सर्वश्रेष्ठ कौन... इस पर बहस हो सकती है, लेकिन महिला पार्श्व गायन में श्रेष्ठ कौन, तो निर्विवाद रूप से वह स्थान अकेले लताजी का ही है. यानी 'टैंपल ऑफ मैलोडी' की एकमात्र देवी.
highlights
- रफी, मुकेश और किशोर साहब में कौन श्रेष्ठ... सवाल उठ सकता है
- महिला पार्श्व गायन में सर्वश्रेष्ठ की हकदार एक ही हैं... लताजी
- हर जॉनर-मूड के लिए अपने जैसे लगने वाले गाए 30 हजार गाने
नई दिल्ली:
इस देश के एक प्रख्यात फिल्म समीक्षक हैं सुभाष के झा. उन्होंने एक बार परस्पर बातचीत में 'नाइटएंगल ऑफ इंडिया' यानी 'स्वर कोकिला' लता मंगेशकर के लिए तीन शब्दों का बेहतरीन संयोजन प्रयोग किया था. वह था 'टैंपल ऑफ मैलोडी'. आज जब पूरा देश सुर साम्राज्ञी के इस तरह जाने से शोकाकुल है, तो बातचीत में इस्तेमाल किया गया विशेषण याद आ गया. गौर करें अगर आप दुःखी हैं तो लताजी ने ऐसे गाने गाए, जो आपको अपने लगते थे. अगर आप खुश हैं तो ऐसे भी गाने उन्होंने हम सभी के लिए गाए. हर तरह का जॉनर हर स्थिति के लिए, वह भी जो आपको शास्त्रीय वाद्य यंत्र सितार के 'सिम्पैथेटिक कॉर्ड' की तरह झकझोर कर रख दे. कुछ ऐसी ही बात 'गजल सम्राट' जगजीत सिंह के लिए भी कही जा सकती है. संयोग देखिए जगजीत साहब और लताजी ने एक साथ 'सज़दा' एल्बम भी किया. अगर उक्त बातों के लिहाज से देखें तो मोहम्मद रफी साहब, मुकेशजी और किशोरदा में सर्वश्रेष्ठ कौन... इस पर बहस हो सकती है, लेकिन महिला पार्श्व गायन में श्रेष्ठ कौन, तो निर्विवाद रूप से वह स्थान अकेले लताजी का ही है. यानी 'टैंपल ऑफ मैलोडी' की एकमात्र देवी. यहां बाकी महिला गायकों को बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि सभी सार्वजनिक मंचों से लताजी को 'ऑसम... नॉट कम्पेयरेबल' कहती आई हैं.
लताजी ने 'ओपन पिच' पर खूब फेंकी सुर की 'बॉलें'
जॉनर की बात करें तो सचिन तेंदुलकर की भाषा में 'ओपन पिच'. लताजी ने सिर्फ हिंदी में ही नहीं, बल्कि 36 अलग-अलग भाषाओं की फिल्मों में भी अपनी आवाज दी. भारत ही नहीं बांग्लादेश और श्रीलंका में अपनी शैली से लाखों प्रशंसक बनाए. कम बड़ी बात है कि उनके इस तरह जाने से पाकिस्तान में इमरान सरकार के मंत्री फवाद चौधरी तक की आंखों में आंसू छलक आए. बांग्लादेश से भी ऐसी ही शोकाकुल आवाजें सुनाई पड़ी. ऐसी थी हमारी 'टैंपल ऑफ मैलोडी', जिन्होंने तकरीबन 30 हजार गाने गाए. मधुबाला, मीना कुमारी से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक को अपने गानों से उनके प्रशंसकों के लिए कीमती तोहफा दिया. लताजी ने सात दशकों से अधिक की अपनी 'सुर सरस्वती साधना' में ऐसी गायन शैली को विकसित किया, जो कल... आज और कल भी... लोगों के कानों में गूंजती रहेगी.
यह भी पढ़ेंः लताजी के पिता दीनानाथ मंगेशकर से भी था सावरकर का नजदीकी रिश्ता
शायद बचपने की परवरिश ने दी खलिश भरी आवाज
शायद लताजी की आवाज में ऐसी खलिश उनके अपने निजी जीवन से आई. यहां यह कतई नहीं भूलना नहीं चाहिए कि लता दीदी का जन्म 28 सितंबर 1929 को पंडित दीनानाथ मंगेशकर और शेवंती हरिदास लाड के घर हुआ था, जो खुद एक शास्त्रीय गायक बतौर स्थापित थे. यानी बचपने से ही लताजी सुरों के साये तले ही सांस लेते बड़ी हुईं. जाहिर है संगीतकार पिता ने बेहद नाजुक उम्र से उन्हें सुरों का अभ्यास करने का सबक याद दिलाना शुरू कर दिया था. यह अलग बात है कि 1942 में पिता के असामयिक निधन ने बतौर बड़ी संतान परिवार का बोझ भी लताजी के नाजुक कंधों पर ला दिया. वह अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं, जिनका नाम उषा, मीना, आशा और हृदयनाथ था. यह सब भी बाद में गायक और संगीतकार हुए. यही नहीं 1930 के दशक में लता दीदी ने अपने पिता के लिखे मराठी नाटकों में अभिनय किया, जाहिर है इऩमें वह गाती भी थी. खैर पिता की मौत के बाद अपने दीनानाथजी के दोस्त मास्टर विनायक के कहने पर पारिवारिक निर्वहन के लिए 'बड़ी मां' में अभिनय करने के लिए मुंबई आ गईं. जाहिर है अभिनय तो नसीब में नहीं था, लेकिन उन्हीं दिनों के दौरान यहीं पर उस्ताद अमान अली खान से हिंदुस्तानी संगीत सीखा. यह रास्ता शायद उन्हें ज्यादा रास आया, कालांतर में इस रियाज की बदौलत उन्होंने कई बड़े-स्थापित संगीतकारों के साथ काम किया.
13 साल की उम्र से शुरू किया सुरों का परवाज़
महज 13 साल की उम्र में अपने कैरियर के बड़े ब्रेक वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म 'किटी हसाल' के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया. इसके बाद आधुनिक दौर में लताजी ने अपने गायन में लोरी, प्रेम गीत, एकल और युगल, शास्त्रीय और व्यावसायिक अनेक भाषाओं में अनगिनत गाने गाकर अपने स्वर की अमिट छाप छोड़ी. हर जॉनर के गायन की एक अभूतपूर्व शैली ने उन्हें हर उसी अभिनेत्री के अनुरूप ढाला, जिस पर इसे स्क्रीन पर शूट किया गया. गौरतलब है कि महज 20 साल की उम्र में लताजी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लीड हिरोइन के लिए पसंदीदा आवाज बन गई थीं. मधुबाला स्टारर फिल्म 'महल' में उन्होंने अपने करियर का एक ब्रेक्थ्रू गाना 'आएगा आने वाला' गाया और फिल्म 'बरसात' में उन्होंने तीन अलग-अलग अभिनेत्रियों के लिए नौ गाने गाए थे. यही नहीं, लताजी ने उन दिनों में अनिल विश्वास, नौशाद अली, मदन मोहन, एसडी बर्मन, सी रामचंद्र, खय्याम सहित बेहतरीन उल्लेखनीय संगीतकारों के लिए गाने गाए.
यह भी पढ़ेंः सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का 92 की उम्र में निधन, बहन उषा ने की पुष्टि
जब रो दिए पंडित नेहरू
भूलना नहीं चाहिए कि 1960 के दशक में उनके गाने 'ऐ मेरे वतन के लोगो'.को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे. इसके पहले भी स्वर कोकिला अपनी आवाज से 1945 में पार्श्व गायन के साथ शुरू होने वाले संघर्ष में नौशाद अली के लिए 'उठाये जा उनके सितम' (अंदाज-1949) नेदिलों को छूने वाली आवाज के रूप में पहचान दिला दी थी. लताजी की आवाज अलग-अलग दौर की शीर्ष नायिकाओं के अलावा खलनायिकाओं पर भी खूब फबी. कह सकते हैं कि उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत के 'स्वर्ण युग' के रूप में पहचाने जाने वाले पांच दशकों में नायिकाओं और संगीत-निर्देशकों की लगातार बढ़ती आकांक्षाओं के साथ पूर्ण न्याय किया.
कुछ यादगार गाने, जो आज भी चस्पा हैं
उस दौर की विभिन्न प्रमुख नायिकाओं पर फिल्माए गए उनके मशहूर गीतों में शामिल हैं... हवा में उड़ता जाए (बरसात), चले जाना नहीं नैन मिलाके (बड़ी बहन), राजा की आएगी बारात (आह), मन डोले मेरा तन डोले (नागिन), रसिक बलमा (चोरी चोरी), नगरी नगरी... द्वारे-द्वारे (मदर इंडिया), आजा रे परदेसी (मधुमति), उनको ये शिकायत है की हम (अदालत), तेरे सुर और मेरे गीत (गूंज उठी शहनाई), प्यार किया तो डरना क्या (मुगल-ए-आजम), मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये, अजीब दास्तां है ये (दिल अपना और प्रीत परायी), ओ सजना, बरखा बहार आई (परख), तेरा मेरा प्यार अमर (असली नकली), अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम (हम दोनो), दो हंसों का जोड़ा (गंगा जमुना), ज्योति कलश छलके. (भाभी की चूड़ियां), तेरे प्यार में दिलदार (मेरे महबूब'), आजा आई बहार (राजकुमार), मैं क्या करू राम, मुझे बूढ़ा मिल गया (संगम), लग जा गले से (वो कौन थी), कांटो से खींच के ये आंचल (गाइड), ये समा, समा है ये प्यार का (जब जब फूल खिले), तू जहां, जहां चलेगा, नैनों में बदरा छाए (मेरा साया), रहे ना रहे हम (ममता), नील गगन की छाँव में (आम्रपाली). यह तो हुए कल के अफसाने... थोड़ा कल की बात करें तो 1970 और 1980 के दौर में गाए गए उनके मधुर गीतों में बाबुल प्यारे (जॉनी मेरा नाम), चलते, चलते, इन्ही लोगों ने, मौसम है आशिकाना, ठाडे रहियो (पाकिजा), हुस्न हाजिर है (लैला मजनू), दिल तो है दिल (मुकद्दर का सिकंदर), सत्यम शिवम सुंदरम (सत्यम शिवम सुंदरम), जाने क्यूं मुझे (एग्रीमेंट), मेरे नसीब में (नसीब), तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया (कुदरत), दिखाई दिए यूं (बाजार), ऐ दिल-ए-नादान (रजिया सुल्तान), सुन साहिबा सुन (राम तेरी गंगा मैली)... कतई कोई अंत नहीं.
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Sita Navami 2024: साल 2024 में कब मनाई जाएगी सीता नवमी? इस मूहूर्त में पूजा करने से घर में आएगी सुख-समृद्धि!
-
Kuber Upay: अक्षय तृतीया पर करें कुबेर के ये उपाय, धन से भरी रहेगी तिजोरी
-
Maa Laxmi Upay: सुबह इस समय खोल देने चाहिए घर के सारे खिड़की दरवाजे, देवी लक्ष्मी का होता है आगमन
-
Gifting Gold: क्या पत्नी को सोने के गहने गिफ्ट करने से होती है तरक्की, जानें क्या कहता है शास्त्र