क्या ग़लत किया है तबलीग़ जमात वालों ने,कोरोना के फैलाव के लिए क्या यही लोग ज़िम्मेदार हैं? क्या इनका क़ुसूर सिर्फ़ इतना भर है कि इन्होंने लॉकडाउन के उस दिशा निर्देश का पालन किया,जिसमें कहा गया है कि जो जहां है वहीं रहे? क्या निज़ामुद्दीन में फंसे विदेश से आये सभी लोगों को पैदल ही अपने देश निकल लेना चाहिए था,जैसे दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर लोग घरों के लिए निकल पड़े थे?
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लॉकडाउन के बाद से ही तबलीग़ जमात मरकज़ के ज़िम्मेदार ख़ुद ही मरकज़ को शटडाउन की तैयारी कर रहे थे,क्या ऐसा करना ग़लत था? 24 से लॉकडाउन लागू है, 23 मार्च को ही 1500 से ज़्यादा लोगों को मरकज़ से हटा दिया गया,क्या ये कोरोना को लेकर इनका उदासीन रवैय्या दिखाता है? 24 तारीख़ को जैसे ही लॉकडाउन लागू हुआ,मरकज़ से लोगों को शिफ़्ट करने के लिए एसडीएम से वेहिकल पास की मांग भी की,जो मिला नहीं,क्या ये भी इनकी ही ग़लती है?
विदेश से आये जो भी मेहमान तबलीग़ जमात मरकज़ में ठहरे हुए थे, वो कोई घुसपैठिये नहीं थे,बल्कि वैलिड वीज़ा और पासपोर्ट पर आए थे,भारत सरकार के सभी नियमों का पालन करते हुए रह रहे थे,फिर लॉकडाउन के बाद ये कहां जाते,क्या सरकार को इनकी सुध नहीं लेनी चाहिए थी? तबलीग़ जमात के लोग चाहे वो भारत के हों या दूसरे मुल्क से भारत आये लोग, सभी मुसलमानों के बीच रहकर इस्लाम और दीन की बातें करते हैं,क्या ऐसा करना हमारे देश में क़ानूनन जुर्म है?
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ये लोग अक्सर उन मस्जिदों में रुकते हैं,जहां इन्हें रुकने की इजाज़त दी जाती है,ये अपना पैसा ख़र्च करते हैं,बाक़ी संगठनों की तरह चंदा वसूली नहीं करते,महीने में 3 दिन और साल में 40 दिन घरों से दूर जाकर लोगों से मिलते हैं, क्या मस्जिद में ठहरना और अपना पैसा ख़र्च कर लोगों को अच्छी बातें बताना जुर्म है? हमें गर्व होना चाहिए कि दुनिया में 52 इस्लामिक देश है,लेकिन तबलीग़ जमात का केंद्र भारत है,इस गर्व पर शर्म क्यों?
पूरी दुनिया से लोग भारत आते हैं, ये लोग किसी ताज पैलेस होटल में नहीं ठहरते,न ही ताज महल देखने आते हैं, ये गांव ,गली,मोहल्ले,कच्ची पक्की पगडंडी का सफ़र तय करते हैं,ग़रीब अमीर सबसे मिलते हैं,और जब अपने देश वापस लौटते हैं तो भारत की ख़ुबसूरत सर्वधर्म समभाव वाली छवि लेकर लौटते हैं, क्या इन्हें निशाना बनाकर हम इनके सामने देश की इस छवि को दाग़दार नहीं बना रहे? कोरोना को लेकर एहतियात बरतने की ज़िम्मेदारी क्या सिर्फ़ तबलीग़ जमात वालों की ही है?
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जो लोग कोरोना के नाम पर तबलीग़ जमात पर सवाल खड़े कर रहे हैं,दरअसल ऐसे ज़्यादातर लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं,कुछ एक धर्म विशेष से नफ़रत करने की अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं, कुछ ख़ुद को ज्ञानी साबित करने के लिए इन्हें बेवक़ूफ़ लिख रहे हैं. कोरोना की आड़ में तबलीग़ जमात पर लिखने,बोलने वाले,सभी गिफ़्ट ब्रिगेड पत्रकारों,लश्कर ए नोएडा के चाटुकारों,और ख़ुद को प्रोग्रेसिव साबित करने की होड़ में लगे बिरादरान ए वतन से पूछना चाहूंगा,ब्रिटेन के पीएम,स्पेन की राजकुमारी,कई हॉलीवुड ऐक्टर,और इजरायल के पीएम,क्या इन सभी में कोरोना का वायरस निज़ामुद्दीन मरकज़ से ही पहुंचा है?
और आख़िर में एक बात और,जिस तरह से भारत में लॉकडाउन हुआ है,उसके बाद लोग किस डर और दर्द में जी रहे हैं,ये हमने दिल्ली नोएडा बॉर्डर पर देखा है, ये सभी अपने देश के थे, निज़ामुद्दीन में जो बेचारे विदेशी फंस गए उनके दर्द का भी एहसास कीजिये,इन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है,न कि एफआईआर की. अगर एफआईआर सही है तो,कीजिये उन हज़ारों लोगों पर भी जो लॉकडाउन के आदेश के बावजूद दिल्ली बार्डर से लेकर देश के अलग अलग हिस्सों में चलते जा रहे हैं,क्या इनके ख़िलाफ़ एफआईआर कर पाएंगे आप?
जो लोग भी सवाल उठा रहे हैं,वो निश्चित तौर पर कोरोना को लेकर गम्भीर होंगे,लेकिन आपकी गम्भीरता तब तक अधूरी है,जब तक आप सरकार से ये नहीं पूछते की एयरपोर्ट सील करने में देरी क्यों हुई,वेंटिलेटर कहाँ है,लोग पलायन क्यों कर रहे हैं और हां आपकी जानकारी के लिए बता दूं, जिस निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर हाय तौबा मचा है,उस मरकज़ और हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन के बीच सिर्फ़ एक दीवार का फ़ासला है. अब आप इस फ़ासले को देखकर ख़ुद फ़ैसला कीजिये कि कहीं निज़ामुद्दीन मरकज़ के बहाने एजेंडा तो सेट नहीं किया जा रहा,या कोरोना के ख़िलाफ़ सरकारों की युद्धस्तर तैयारी की ख़ामियों पर पर्दा डालने की कोशिश तो नहीं की जा रही.
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Source : Sajid Ashraf