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Social Media Day Special( Photo Credit : Representative Picture)
सोशल मीडिया को हमारे जीवन में आए हुए दो दशक से ज्यादा का वक्त हो चुका है. इसने हमें स्कूल के पुराने साथियों से जोड़ा और हमारे निजी जीवन को सबके सामने लाकर सुखद बनाया. बीते वर्षो में सोशल मीडिया का हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में अभूतपूर्व प्रभाव रहा है. वैश्विक स्तर की बात करें तो इंटरनेट यूजर्स रोजाना औसतन 2 घंटे 27 मिनट सोशल प्लेटफॉर्म पर बिता रहे हैं, जिससे डिजिटल युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम बन गया है. खासकर भारत जैसे देश में जहां पर वर्तमान में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 65.8 करोड़ है, जो कि भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 47% है.
यहां तक कि अब जब अभिव्यक्ति ऑनलाइन हो गई है और दुनिया भर में (ज्यादातर) अंग्रेजी बोलने वालों के बीच एक डिजिटल कनेक्ट स्थापित कर रही है, तब हमें स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने के लिए अपनी भाषा यानी मातृभाषा की जरूरत आन पड़ती है. यह सभी को पता है कि लोग अपनी देसी या मूल भाषा में सबसे अच्छी अभिव्यक्ति करते हैं। यूजर्स सोशल मीडिया पर ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं जहां वे अपने संदेश का अंग्रेजी में अनुवाद किए बिना क्षेत्रीय, स्थानीय या राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर एक ही भाषा बोलने वाले व्यक्तियों के साथ जुड़ सकें और अपने भाषाई समुदायों के साथ बातचीत कर सकें. इस तरह से ही यूजर्स का मूल भाषा में ही खोज करने, संवाद करने और अभिव्यक्ति करने का सफर सबसे बेहतरीन बन सकता है.
हालांकि, अपनी वैश्विक पहुंच के बावजूद सोशल मीडिया काफी हद तक उन इंटरनेट यूजर्स के दायरे से बाहर रहा है जो एक या एक से ज्यादा देसी भाषाएं बोलते हैं. इसमें दुनिया की 80% और भारत में 90% आबादी शामिल है जो देसी भाषा बोलती है. ऐसे लोग जो अंग्रेजी में पारंगत नहीं हैं, लेकिन तकनीकी-प्रेमी हैं और खरीदारी या लेन-देन के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, फिर भी इस वजह से ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म से जुड़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि यहां बातचीत और अभिव्यक्ति काफी हद तक अंग्रेजी में होती है. अंग्रेजी दर्शकों के लिए पश्चिम में डिजाइन किए गए प्लेटफॉर्म पर देसी भाषा बोलने वाले यूजर्स अक्सर अलग-थलग महसूस करते हैं.
जनता की भलाई के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल में हर इंटरनेट यूजर को सशक्त बनाना अनिवार्य है, फिर चाहे वे अंग्रेजी बोलते हों या कोई अन्य भाषा. यह विशेष रूप से भारत के लिए एक हकीकत है, जहां हर 10 नए इंटरनेट यूजर्स में से नौ, एक देसी भाषा बोलते हैं. इसलिए, बहुभाषी चर्चा के लिए तैयार किए गए प्लेटफॉर्म समय की मांग हैं.
सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए भाषा पहली प्राथमिकता
डिजिटल रूप से लगातार बदलती दुनिया में भाषा अब बाधा नहीं बन सकती और मनुष्य के रूप में जन्मजात हमें मिली अभिव्यक्ति, केवल अंग्रेजी बोलने वालों का विशेषाधिकार नहीं हो सकती. ढेरों तरह की भाषाओं वाली दुनिया को ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म्स की जरूरत पड़ती है जो प्रत्येक व्यक्ति को उसकी पसंद के किसी भी विषय पर सहूलियत की भाषा में खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यिक्त करने में सक्षम बनाता हो. वैश्विक सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स की अंग्रेजी-केंद्रित डिजाइन के चलते वे यूजर्स जो अभी तक असहाय महसूस कर रहे थे, उन्हें बहुभाषी या अन्य किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का पता लगने पर, समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के साथ सार्थक बातचीत करने के साथ-साथ अलग-अलग भाषा बोलने वाले यूजर्स के साथ जुड़कर सशक्त महसूस करना चाहिए.
देसी भाषा में अभिव्यक्ति को सक्षम बनाना डिजिटल सशक्तिकरण का एक पहलू है. जबकि दो अलग-अलग भाषाओं के लोगों के बीच सहज बातचीत को सुगम बनाना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है. सोशल मीडिया को एक ऐसे चैनल के रूप में विकसित होना चाहिए जो विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक साथ जोड़े, भाषाई खाई को भरे और सभी प्रकार के डिजिटल संवाद को हक दिलाने के लिए संघर्षशील हो.
यह विशेष रूप से भारत में महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न भौगोलिक और भाषाई पृष्ठभूमि वाले लोग पारस्परिक हित के विषयों पर संवाद के लिए एक-दूसरे से जुड़ना चाहते हैं. हो सकता है कि एक ठेठ पंजाबी या गुजराती बोलने वाला क्रिकेट या फिल्मों जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए या एक त्योहार मनाने के लिए या बस ‘जानने’ और ‘जुड़ने’ के लिए एक तमिल या तेलुगू बोलने वाले यूजर के साथ जुड़ना चाहे.
इस तरह, मूल भाषाओं के बीच रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम बनाने, क्रिएटर्स और यूजर्स को अपनी मातृभाषा में कंटेंट बनाने और इस्तेमाल करने की इजाजत देने वाले फीचर्स उत्साह को बढ़ा सकते हैं और डिजिटल सशक्तिकरण को एक नए स्तर पर ले जा सकते हैं. इस तरह के फीचर्स यूजर्स की संतुष्टि के साथ प्लेटफॉर्म पर दिए जाने वाले वक्त को भी बढ़ा सकते हैं.
सभी को जोड़ने के लिए तकनीक
भारत जैसे देश में जहां 22 आधिकारिक भाषाएं और 6,000 से अधिक बोलियां बोली जाती हैं, वहं एक बेहतरीन भाषा-आधारित मंच जो एक व्यापक और बिल्कुल जमीनी अनुभव प्रदान करता है, काफी आगे जाएगा. यानी एक ऐसी डिजिटल दुनिया जहां हर इंटरनेट यूजर स्वतंत्र रूप से खोजने, अभिव्यक्त करने और संवाद करने के लिए सशक्त महसूस करेगा. इंसानी जुबान को डिकोड करने वाली नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) जैसी जबर्दस्त तकनीक द्वारा संचालित ऐसे प्लेटफॉर्म जो बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक समाजों की बारीकियों और स्वभाव को समझते हैं, भारत में तरक्की हासिल करेंगे और ऐसे समाधान पेश करेंगे जिन्हें गैर-अंग्रेजी बोलने वाली दुनिया में कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
भारत जैसे देश में जहां 22 आधिकारिक भाषाएं और 6,000 से अधिक बोलियां बोली जाती हैं, वहं एक बेहतरीन भाषा-आधारित मंच जो एक व्यापक और बिल्कुल जमीनी अनुभव प्रदान करता है, काफी आगे जाएगा. यानी एक ऐसी डिजिटल दुनिया जहां हर इंटरनेट यूजर स्वतंत्र रूप से खोजने, अभिव्यक्त करने और संवाद करने के लिए सशक्त महसूस करेगा. इंसानी जुबान को डिकोड करने वाली नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) जैसी जबर्दस्त तकनीक द्वारा संचालित ऐसे प्लेटफॉर्म जो बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक समाजों की बारीकियों और स्वभाव को समझते हैं, भारत में तरक्की हासिल करेंगे और ऐसे समाधान पेश करेंगे जिन्हें गैर-अंग्रेजी बोलने वाली दुनिया में कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत से बहुभाषी सोशल मीडिया का ‘सभी को एक साथ जोड़ने वाला’ दृष्टिकोण डिजिटल सशक्तिकरण का समर्थन करेगा और तकनीक आधारित इस दशक (टेकेड) में अरबों की आवाज का लोकतंत्रीकरण करेगा.
(लेखक- अप्रमेय राधाकृष्ण, सह-संस्थापक और सीईओ, कू ऐप)
Source : News Nation Bureau