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Sachin Pilot Protest: राजस्थान के रण में फिर खलबली, जानें क्या है पायलट प्रोजेक्ट?

राजस्थान के रण में एक बार खलबली मची हुई है. वजह है कि दो दिग्गजों का आमना-सामना है.

Updated on: 11 Apr 2023, 12:11 PM

highlights

  • राजस्थान के रण में फिर मची है खलबली
  • सचिन ने चुनाव से पहले लॉन्च किया 'पायलट प्रोजेक्ट'
  • सीएम के साथ-साथ कांग्रेस के लिए खड़ी कर सकते हैं मुश्किल

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Sachin Pilot Protest: राजस्थान के रण में एक बार खलबली मची हुई है. वजह है कि दो दिग्गजों का आमना-सामना है. ये दिग्गज अलग-अलग दल के नहीं बल्कि एक ही पार्टी के हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट मतभेदों को लेकर एक बार फिर आमने-सामने हैं. हालांकि ये पहली बार नहीं जब दोनों की बीच तलवारें खिची हैं. पहले भी ये दोनों अपने हितों को लेकर टकरा चुके हैं. हालांकि तब आलाकमान ने मामले को शांत कराया था, लेकिन इस बार गणित कुछ और ही है. चुनाव नजदीक हैं लिहाजा सचिन पायलट एक बार फिर अपनी जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं. वो पिछली बार की गलती को तो दोहराना नहीं चाहते लेकिन किसी भी कीमत पर अपनी जरूरतों को भी भुलाना नहीं चाहते, लिहाजा उन्होंने अनशन की राह अपनाई है. खास बात यह है कि ये अनशन सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार के खिलाफ किया है. अब सवाल उठता है कि अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की लड़ाई कैसी? 

इस सवाल को दबाने के लिए सचिन ने इसे वसुंधराराजे के कार्यकाल का भ्रष्टाचार बताते हुए इसके खिलाफ जंग का ऐलान किया. लेकिन एक बार फिर वो ये भूल गए कि सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में वो क्या कर रहे थे. यानी निशाना सीधे तौर पर अशोक गहलोत और आलाकमान ही हैं. राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सचिन ने अपना पायलट प्रोजेक्ट जिसे वो काफी वक्त से तैयार कर रहे थे उसे लॉन्च कर दिया है. 

क्या है पायलट प्रोजेक्ट?
सचिन पायलट बीते लंबे वक्त से पार्टी में अपने वजूद को तलाशने में जुटे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी युवा नेतृत्व के हाथ में राजस्थान की बागडोर सौंपेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अशोक गहलोत के सिर सीएम का ताज पहनाया गया. सचिन को उपमुख्यमंत्री बनकर संतोष करना पड़ा, लेकिन ये तमगा भी उनके साथ ज्यादा नहीं रहा. यही वजह है कि प्रदेश और राजनीति में अपनी मजबूत स्थिति बनाने के लिए सचिन पायलट के पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है. 7 महीने में प्रदेश के चुनाव होना है. ऐसे में अगर वो अपनी ही पार्टी में अपनी जगह को मजबूत स्थिति में नहीं ला पाते हैं तो उनके पास फिर एक ही विकल्प बचता है और वो है ज्योतिरादित्या सिंधिया, जतीन प्रसाद समेत अन्य बागी नेताओं की तरह पार्टी छोड़ देना और बीजेपी का दामन थाम लेना, लेकिन इसके लिए भी उनके पास ये ही आखिरी वक्त है. 

यही वजह है कि सचिन ने अपने पायलट प्रोजेक्ट को सही समय पर लॉन्च कर दिया है. इससे या तो वो अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व दबाव बनाकर आगामी चुनाव में अपनी मांगों को पूरा कर सकेंगे या फिर समय रहते आलाकमान के इरादों को समझकर पार्टी छोड़ बीजेपी या फिर नई पार्टी का गठन कर सकते हैं. 

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पायलट को मनाने की तैयारी
कांग्रेस नेतृत्व वैसे तो सचिन पायलट के रुख से नाराज है. पार्टी की ओर से एक खत भी जारी किया गया और सचिन पायलट के अनशन को सही नहीं बताया गया है. बावजूद इसके पायलट के मनाने की केंद्रीय नेतृत्व की तैयारी की जा रही है. कांग्रेस के प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा जयपुर पहुंच गए हैं. माना जा रहा है कि वे सचिन पायलट को भ्रष्टाचार वाले मामलों की जांच कराने समेत कुछ अन्य आश्वासन देकर मामला शांत कराने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर वो ऐसा करने में नाकाम होते हैं तो चुनाव से पहले अशोक गहलोत के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी नई मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. 
चुनाव नजदीक है और अंदरुनी कलह के साथ पार्टी नेता किस आधार पर जनता के बीच जाएंगे और किस आधार पर वोट मांगेंगे. 

निर्णय लेने में स्लो है कांग्रेस
कांग्रेस के लिए भी ये वक्त किसी गहन मंथन का है, क्योंकि सचिन पायलट अचानक अनशन पर नहीं बैठे, इसको लेकर पहले ही से ही तैयारी चल रही थी, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से इसको लेकर समय पर कोई कदम नहीं उठाया गया. इस तरह के मामलों में अकसर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व स्लो रिएक्ट करता है जो पार्टी को बड़े नुकसान की तरफ ले जा रहा है. फिर चाहे वो ज्योतिरादित्य का मामला हो, जतीन प्रसाद हों या फिर गुलाम नबी आजाद. हर मामले ने पार्टी का ढुलमुल या फिर धीमा रवैया एक बड़ी कमजोर बनता जा रहा है.