Coronavirus (Covid-19) के कहर के बीच दीवार बन गई है यह चीज, लाशों के ढेर लग जाते अगर यह न होता तो
चीन से फैलने वाले कोरोना वायरस ने अब पूरी दुनिया में एक महामारी का रूप ले लिया है. यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ-साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है.
नई दिल्ली:
जरा सोचिए कि अगर हमारे पास प्लास्टिक से बनी कोई वस्तु मौजूद नहीं होती, तो क्या हम सभी कोविड-19 (Covid-19) के घातक हमले से जिंदा बच पाते? आज तक कोरोना वायरस (Corona Virus) से जिंदगी बचाने वाली कोई भी दवा उपलब्ध नहीं हो पाई है. एक बार इस्तेमाल में लाए जाने वाले डिस्पोजेबल मास्क, दस्ताने, गॉगल्स, पूरे शरीर को ढकने वाले सूट और गाउन फिलहाल इंसानों की जिंदगी बचाने वाले रक्षक साबित हो रहे हैं. ये सारी चीजें प्लास्टिक से बनी हैं और ध्यान रहे कि प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए खतरा बताया गया लेकिन यह वस्तु मुश्किल समय में अरबों लोगों की जान की रक्षक साबित हुई है.
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चीन से फैलने वाले कोरोना वायरस ने अब पूरी दुनिया में एक महामारी का रूप ले लिया है. यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ-साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है. संयुक्त राष्ट्र की खबर के अनुसार, अकेले कोरोना वायरस की वजह से फरवरी के महीने में वैश्विक निर्यात में 50 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.
भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी, 2020 को सामने आया, जिसकी शुरूआत चीन से हुई थी. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 16 अप्रैल, 2020 तक देश में इसके कुल 13387 मरीजों तथा 437 मरीजों की मौत की पुष्टि की है. फिलहाल भारत में कोविड-19 के उपचार एवं रोकथाम के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले एसयूपी गियर्स की मांग काफी बढ़ गई है. कोविड-19 से लड़ने के लिए शारीरिक सुरक्षा हेतु इन गियर्स की अहमियत बहुत ज्यादा है.
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इस गियर्स में डिस्पोजेबल मास्क, दस्ताने, गाउन, गॉगल्स आदि शामिल हैं. डब्ल्यूएचओ के आकलन के अनुसार, इस महामारी पर पूरी तरह काबू पाए जाने तक, कोविड-19 से बचाव के लिए हर महीने तकरीबन 8.9 करोड़ मेडिकल मास्क, शारीरिक जांच हेतु 7.6 करोड़ दस्ताने और 16 लाख गॉगल्स की जरूरत होगी. डब्ल्यूएचओ ने 47 प्रभावित देशों में इन सुरक्षा उपकरणों के लगभग पांच लाख सेट की आपूर्ति की है, लेकिन यह आपूर्ति भी बड़ी तेजी से खत्म हो रही है.
पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर्स, यानी कि व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं होने की वजह से चीन के नागरिकों ने पहले ही वैकल्पिक सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जिसमें पानी की प्लास्टिक वाली जार, प्लास्टिक की शीट, प्लास्टिक के लॉन्ड्री बैग्स, आदि शामिल हैं.
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आप चाहे इस पर यकीन करें या नहीं, लेकिन ये सभी पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर्स भी प्लास्टिक से बने होते हैं- और ध्यान रहे कि इस वस्तु की बहुत ज्यादा आलोचना की गई है, जिनका केवल एक बार इस्तेमाल किया जाता है, यानी कि वे सभी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक हैं. और अब वायरस के किसी भी तरह से फैलने से बचाव के लिए उच्च तापमान पर व्यवस्थित तरीके से इनका निपटान करना होगा.
पिछले कई दशकों से, चिकित्सा जगत में प्लास्टिक ही सबसे ज्यादा सुविधाजनक और उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री रही है, और इस वायरस को नियंत्रित करने और इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाने के लिहाज से एक बार फिर यह इंसानों की सहायता के लिए सबसे आगे खड़ा है.
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प्लास्टिक के इस्तेमाल के बगैर तो आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले डिस्पोजेबल सिरिंज से लेकर बेहद परिष्कृत एमआरआई स्कैनर के हिस्सों का निर्माण प्लास्टिक से ही होता है. प्लास्टिक की अवरोधक क्षमता काफी अधिक होती है, साथ ही बेहद कम लागत, हल्के वजन, और ज्यादा टिकाऊ होने की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है. इसके लचीलेपन, जंग-रोधी क्षमता जैसे गुणों की वजह से प्रोस्थेटिक्स उद्योग में क्रांति आई है, और अब पारंपरिक सामग्रियों की जगह इनका इस्तेमाल होता है.
मास्क, कैप्स और गाउन जैसे सुरक्षात्मक कपड़ों का निर्माण, आमतौर पर पॉली प्रोपलीन सामग्री से बने पॉली ओलेफिनिक से किया जाता है, जिनकी बुनाई नहीं की जाती है. इस तरह की महामारी के दौरान संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य सेवाकर्मियों द्वारा इन कपड़ों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह बेहद मुलायम और त्वचा के अनुकूल होने के साथ-साथ बैक्टीरिया और वायरस को फैलने से रोकता है, साथ ही इसमें अच्छे अवरोधक गुण होते हैं. इन सभी को सिर्फ एक बार उपयोग के लिए डिजाइन किया जाता है.
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पॉली काबोर्नेट रेजिन से बने गॉगल्स, कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज करने वाले अस्पतालों के लिए बेहद कारगर हैं. आईवी बैग्स एवं टयूबिंग, आईवी कैनुला और आईवी फ्लूड के संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले डिस्पोजेबल सिरिंज तक के सभी उपकरणों का निर्माण मेडिकल ग्रेड प्लास्टिक से किया जाता है, ताकि रक्त प्रवाह में किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सके. सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले आईवी बैग्स और इन्फ्यूजन सेट का निर्माण पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) से किया जाता है.
अब तक, उपयोगिता और किफायत की ²ष्टि से मेडिकल ग्रेड प्लास्टिक की इन सभी किस्मों का कोई भी विकल्प उपलब्ध नहीं' है. कपड़े के बने एप्रन और सूट जैसी पारंपरिक सामग्रियों के इस्तेमाल के मामले में, हर बार उपयोग के बाद इन सामग्रियों को विसंक्रमित करना बेहद जरूरी है, जिसमें संसाधन एवं समय नष्ट होता है. साथ ही, इनके इस्तेमाल में गलत तरीके से विसंक्रमित किए जाने का जोखिम हमेशा मौजूद रहता है, और इस तरह आगे संक्रमण फैलने की संभावना बनी रहती है.
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स्वच्छ भारत मिशन के जरिए सरकार तथा विनियामक निकायों को कचरे के सही तरीके से निपटान और पुनर्चक्रण को युद्धस्तर पर लागू करना चाहिए, ताकि हम समय रहते इस तरह की महामारी को फैलने से रोक सकें और कोविड-19 जैसी स्थितियों में संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित कर सकें. सबसे अहम बात यह है कि रोकथाम के उद्देश्य के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, साथ ही कोरोना वायरस से अधिक असरदार तरीके से लड़ने के लिए हमें प्लास्टिक के निपटान हेतु विश्व स्तर पर स्वीकृत मानकों का पालन करना चाहिए.
अब समय आ गया है कि सरकार के साथ-साथ विनियामक निकायों, पर्यावरणविदों और नागरिकों को भी प्लास्टिक, वह भी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक की अपरिमित उपयोगिता को पहचानना चाहिए, और इन्हें प्रतिबंधित करने वाली गतिविधियों एवं विचारों से किनारा कर लेना चाहिए.
(डीडी काले, पॉलिमर प्रौद्योगिकी के पूर्व-प्रोफेसर और पॉलिमर इंजीनियरिंग, यूडीसीटी, मुंबई के विभागाध्यक्ष हैं. यह लेख उनके निजी विचारों पर आधारित है.)
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