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राफेल डील पर नरेंद्र मोदी सरकार को तो मिली क्लीनचिट, लेकिन देश को नहीं

कांग्रेस ने राफेल डील को इतना उठाया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर लगे बोफोर्स के दाग को धोने की कोशिश हुई.

Updated on: 25 Jun 2019, 04:35 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट का फैसला राफेल डील पर आया. कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीनचिट दी. कोर्ट ने सौदे के किसी भी पहलू पर कोई सवाल नहीं उठाया. कोर्ट ने डील पर ही सवाल उठाने से मना कर दिया और यह भी कहा कि यह लड़ाकू विमान देश की रक्षा के लिए काफी जरूरी है. कोर्ट ने साथ ही इस डील के खिलाफ दायर चारों याचिकाओं को खारिज कर दिया. कांग्रेस ने राफेल डील को इतना उठाया कि लगा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर लगे बोफोर्स के दाग को धोने की कोशिश हो रही है. इतना ही नहीं पार्टी ने बोफोर्स की तरह ही राफेल डील को एक चुनावी मुद्दा बना डाला. बीजेपी के विरोधियों, खासकर नरेंद्र मोदी के विरोधियों को यह डील उनपर कालिख पोतने का एक मौका सा दिखा.

कोर्ट के फैसले के बाद यह कहना मुश्किल है कि विपक्ष इस मुद्दे पर कितना माइलेज ले पाया और आगे कितना ले पाएगा. लेकिन हाल के चुनावों में बीजेपी का हार के एक कारणों में यह डील भी रही. देश के कई लोगों को चौकीदार पर भरोसा रहा लेकिन चौकीदार चोर है, वाले राहुल गांधी के बयान से कुछ तो नुकसान बीजेपी को देखने को मिला. लेकिन राहुल गांधी की बात लोगों तक वो असर नहीं कर पाई जितना कांग्रेस पार्टी को उम्मीद दी. मध्य प्रदेश में पार्टी की जीत काफी करीब की रही. राजस्थान में भी पार्टी बहुमत के करीब पहुंची. छत्तीसगढ़ में ही पार्टी ने सही मायने में बड़ी जीत दर्ज की और जीत का श्रेय कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को दिया गया.

देश को आजाद हुए 70 साल से भी ज्यादा हो गए हैं. ऐसे में 55 साल के करीब कांग्रेस पार्टी ने देश में शासन किया और बाकी समय बीजेपी और दूसरे दल सत्ता में रहे. अब याचिकाओं के खारिज होने के साथ ही जिन लोगों को डील पर शक था उनकी बोलती बंद हो गई लेकिन देश में रक्षा सौदे पर सवाल उठाने और हर डील को शक की नजर से देखने की नीयत शायद ही बंद हो. सवाल अब भी यह है कि हमारा देश जो हर बात में दुनिया में अपना स्थान बताने को आतुर रहता है वह आजादी के इतने साल बाद भी अपनी रक्षा जरूरतों के लिए विदेशी सहायता पर ही निर्भर क्यों है.

हाल ही में भारतीय सेना ने इंडिया गेट के पास सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल पूरे होने पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया था. इस प्रदर्शनी में तमाम हथियार भारतीय सेना ने प्रदर्शित किए थे. यहां पर नौसेना की ओर से भी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था. इस गौरवमयी प्रदर्शनी में जो बात चुभने वाली थी वह सिर्फ यह थी कि यहां पर दर्शाए गए सभी हथियार विदेशी ही थे. मात्र इंसास राइफल को छोड़ दिया जाए, तो यहां प्रदर्शित सभी हथियार अमेरिका, रूस, जर्मनी, इस्राइल से खरीदे गए थे. यह काफी दुखद पल रहा. यहां पर दर्शायी गई पिस्टल से लेकर रॉकेट लॉन्चर तक सभी विदेशी, दूरबीन से लेकर बुलेट प्रूफ जैकेट तक सभी विदेशी, बोफोर्स तोप से लेकर टैंक तक सभी विदेशी, सब विदेश से ही निर्मित सामान देश की सेनाएं प्रयोग में ला रही हैं. ऐसा लग रहा था कि हमारा अपना कुछ नहीं है. पूरा उत्साह इसी बात से धराशायी हो जाता है कि सब कुछ विदेशी ही था, केवल हौसला ही हमारा अपना था.

अब जब एक बार फिर विदेश से लड़ाकू विमान खरीदने पर बवाल जारी है, यह पल एक बार फिर गौर करने को मजबूर करता है कि आखिर हम कब तक विदेशी हथियार पर निर्भर रहेंगे. ऐसे में हम किस ताकत की बात करते हैं, क्या अब हमें ऐसे विवादों से बचने के लिए अपने खुद के हथियार तैयार नहीं करने चाहिए. इस ओर कभी किसी सरकार ने जमीनी स्तर पर काम क्यों नहीं किया. जवाब कब मिलेगा पता नहीं, लेकिन अब तक सवाल जहन में घूम रहा है. कारण साफ है जब भी हथियारों की खरीद होगी घोटाले का जिन्न निकलना तय है. 

(लेख में लिखी गई बात लेखक की निजी राय है. यह लेख December 14, 2018 को प्रकाशित किया गया था.)