मोहब्बत की ‘पाकीज़ा’ मीना, पत्थरों की दीवानी...

मीना कुमारी ने आंखों में अपनी नज़्म और दिल में दर्द लिए ना जाने कितनी ही बातों को अपनी कलम से सफेद पन्नो पर उतारा है.

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Pradeep Singh
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मीना कुमारी, फिल्म अभिनेत्री( Photo Credit : News Nation)

महजबीन कहूं या साहिबजान जिसने दर्द से खुद को तराशा और उसी दर्द के आगोश में खुद को पाया. मोहब्बत को अपनाया और उसी ने उसको दोराहे पर ला खड़ा कर दिया. दर्द को शायरी, नज़्म और शराब के साथ अपने को सौंप दिया था. बात उस ‘पाकीजा’की मीना कुमारी की जिसे दर्द का मसीहा कह दिया. साहिबजान की लिखी ये कुछ लाइनें आपको इस बात का यकीन दिला देंगे कि कितना कुछ टूटा होगा अदंर ही अदंर जब ये जज़्बात और कशमकश दिल की कलम से पन्नों पर उकेरा होगा. बात एक बार फिर चंदन की उस मंजू की जो ना तो खुशी से जी सकी और ना ही मौत को अपना सकी. मीना कुमारी को सफेद रंग से कुछ ज्यादा ही लगाव था. शायद इसलिए जहां भी जाती सफेद लिबास में ज्यादा दिखती थी. पार्टी और महफिलों से वो अक्सर कतराती थी. खुद को इन सब से दूर ही रखती और अपनी शायरी के साथ अपने आपको तन्हा रखती.

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शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे 
लम्हा-लम्हा खोल रही है 
पत्ता-पत्ता बीन रही है 
एक-एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन 
एक-एक सांस को खोल के, अपने तन 
पर लिपटाती है 
अपने ही तांगों की क़ैदी 
रेशम की यह शायर इक दिन 
अपने ही तागों में घुटकर मर जाएगी. 

साहिबजान को शायरी के साथ एक और चीज का भी शौक था. दिल वालों की दुनिया में प्यार नहीं मिला इसलिए शायद पत्थर दिल हो गयी थी. इसलिए पत्थरों को जमा करने का ये शौक खुद-ब-खुद तौफिक हुआ. उनके घर में बहुत सारे पत्थर थे. अलग-अलग किस्म के पत्थर थे. सफेद,काले,भूरे तो कुछ गोल और कुछ अलग आकृती की तरह दिखने वाले पत्थर. नेहरू की समाधि से लेकर शास्त्री जी की समाधि के पत्थर को भी उन्होंने अपने पास रखा था. कहती थी ये दुनिया जिसमें इंसान बोलते है लेकिन दिल पत्थर के रखते है. इनसे भले तो ये पत्थर है जो कम से कम कुछ बोलते नहीं लेकिन यकीन है कि आपकी बात सुनते है.  

एक किस्सा याद आ रहा है एक बार भरतपुर के नवाब से मिलने पहुंची. खूब बाते हुई, खाना भी हुआ और रुख़सत के वक्त नवाब साहब मीना की पसंद जानते थे इसलिए उन्होंने नजराने में एक अनमोल पत्थर दिया. साहिबजान ने खूब प्यार से देखा और पूछा नबाब साहब आखिर क्या खास है इस पत्थर में? मुस्कुराते हुए नवाब ने कहा वही दर्द जो किसी के बाहर नहीं दिखता लेकिन होता जरूर है. कुछ कलाकर अपने चेहरे से उसे छुपा लेते है. साहिबजान कुछ देर चुप होकर खड़ी रही. थोड़ी देर बाद उस पत्थर को तोड़कर देखा तो उसके अदंर वैसा ही एक और पत्थर था. मीना ने आंखों से सजदा कर उसे अपने घर लेकर रुख़सत हो गयी. मीना कुमारी ने आंखों में अपनी नज़्म और दिल में दर्द लिए ना जाने कितनी ही बातों को अपनी कलम से सफेद पन्नो पर उतारा है. दुनिया मुक्कमल कहा होती है अगर होती तो मीना कुमारी ये तिल तिल कर टूटती कहां. मीना कुमारी का दर्द उनके लिखे में देखा और महसूस किया जा सकता है. मीना कुमारी ने अपने लिए कुछ ये भी लिखा थाः- 
राह देखा करेगा सदियों तक, 
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा  

मीना कुमारी पर लिखने को बहुत कुछ है जो एक साथ लिखना बहुत मुश्किल है. मीना कुमारी को समझना है तो उनकी लिखी शायरी और नज़्म को पढ़ा जा सकता है.

HIGHLIGHTS

  • साहिबजान को शायरी के साथ पत्थरों को इकट्ठा करने का था शौक
  • मीना कुमारी का दर्द उनके लिखे में देखा और महसूस किया जा सकता है
  • मीना कुमारी को सफेद रंग से कुछ ज्यादा ही लगाव था
kamal amrohi Pakeezah film actress meena kumari
      
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