अमेरिका ने आतंकवाद के खतरे को समझा
मोदी की अमेरिका यात्रा के पहले पड़ाव यानी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात में इशारे मिले हैं कि मजहबी कट्टरपंथ पर अमेरिका भी मोदी के मंत्र को समझना चाहता है.
नई दिल्ली:
अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से जितनी उम्मीदें भारतीयों को हैं उतनी ही उम्मीदें अमेरिकी जनता को भी हैं क्योंकि मोदी ने मजहबी कट्टरपंथ को लेकर जिस तरह अपना रुख साफ किया उसने दुनिया के सामने साफ कर दिया कि आतंकवाद से लड़ने से ज्यादा जरूरी है कि आतंक की जड़ यानी मजहबी कट्टरपंथ को पनपने से रोका जाए . SCO के मंच से मोदी ने कहा था कि पूरी दुनिया को संयुक्त रुप से मजहबी कट्टरपंथ की रोकथाम करनी चाहिए . मोदी की ये बात अमेरिका के संदर्भ में इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अमेरिका ने आतंकवाद से लंबी लड़ाई तो लड़ी है लेकिन अमेरिकी सरकार और सिस्टम कभी मजहबी कट्टरपंथ को लेकर संजीदा नहीं रहा .
9/11 के हमलों से ही अमेरिका ने आतंकवाद के खतरे को समझा था और फिर अमेरिका ने वो जंग शुरु की जिसे दुनिया ने वॉर ऑन टेरर का नाम दिया . आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अमेरिकी फौज लड़ती रहीं लेकिन आतंकवाद को पूरी तरह कभी खत्म नहीं किया जा सका . इस संघर्ष का आगाज 16 सितंबर 2001 को जॉर्ज बुश जूनियर ने किया था . बुश के हुक्म पर अमेरिकी फौज ने अफगानिस्तान का रुख किया था लेकिन इस जंग में बुश सरकार ने उसी पाकिस्तान का सहारा लिया जहां के कट्टरपंथी मदरसों से तालिबान जैसा खतरनाक आतंकी संगठन खड़ा किया गया था .
जॉर्ज बुश जूनियर के बाद बराक ओबामा ने भी आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान को अपने साथ बनाए रखा. ओबामा प्रशासन ने तो पाकिस्तान को नॉन नाटो सहयोगी का दर्जा दिया था .आतंक के खिलाफ इस जंग में पाकिस्तान को भी पीड़ित माना गया और आर्थिक मदद की गई लेकिन पाकिस्तान ने इस अमेरिकी मदद का इस्तेमाल तालिबान और कट्टरपंथी मदरसों को आगे बढ़ाने के लिए किया. ट्रंप ने भले ही पाकिस्तान को आर्थिक मदद का रास्ते पर अंकुश लगाया लेकिन ट्रंप भी कभी पाकिस्तान में पनपते मजहबी कट्टरपंथ को लेकर बड़ा कदम नहीं उठा पाए .
मोदी की अमेरिका यात्रा के पहले पड़ाव यानी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात में इशारे मिले हैं कि मजहबी कट्टरपंथ पर अमेरिका भी मोदी के मंत्र को समझना चाहता है. इस मुलाकात में कमला हैरिस ने खुद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठाया . कमला हैरिस से पहले अमेरिका के सेक्रेट्री ऑफ स्टेट एंथनी ब्लिंकेन भी कह चुके हैं अगर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाई गई तो पाकिस्तान से अमेरिका अपने संबंधों की समीक्षा करने पर मजबूर हो जाएगा.
भारत लगातार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाता रहा है और मोदी की अमेरिका यात्रा शायद इस मंत्र को सुपरपावर अमेरिका तक पहुंचाने में कामयाब हो जाए . अमेरिका में भी मजहबी कट्टरपंथ को लेकर एक बड़ा तबका सख्त रुख अपनाने का मत बना चुका है. इस सोच की वजह है फ्रांस और ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों में कट्टरपंथ के खिलाफ उठाए गए कड़े कदम. शिक्षक पेरी की हत्या के बाद फ्रांस की संसद ने पेरी एक्ट पारित किया जिसमें कट्टरपंथी विचारों से लेकर कट्टरपंथ से प्रेरित सामाजिक रहन-सहन तक को प्रतिबंधित कर दिया गया.
ब्रिटेन में भी इंटरनेट पर कट्टरपंथी सामग्री की निगरानी के लिए ठोस तंत्र तैयार कर दिया गया है. भारत का रुख हमेशा साफ रहा है और अगर अमेरिका ने मजहबी कट्टरपंथ पर सख्त कदम उठाने की पहल की तो ये अंततराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद के खिलाफ भारतीय इच्छाशक्ति की विजय कही जाएगी.
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