Manipur Violence : भारत के उत्तर-पूर्व में बसा राज्य मणिपुर अचानक ही हिंसा की आग में जल उठा. हिंसक भीड़ ने गांवों पर हमला कर दिया. मकानों-दुकानों में तोड़फोड़ और आग लगा दी गई. हालत ये हो गई कि लोगों ने अपने छोटे-छोटे बच्चों की नींद की गोलियां खिला दीं, ताकि उनकी आवाज सुनकर उपद्रवी धावा न बोल दें. लोग मार-काट के डर से घर-मकान छोड़कर भाग गए. गांव के गांव खाली हो चुके हैं. 10 हजार से अधिक लोगों को रिलीफ कैंप में शरण लेनी पड़ी है. 8 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. पूरे राज्य में 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट बैन कर दिया गया है. सेना और असम राइफल्स के जवान हालात सामान्य बनाने में जुटे हैं. आइए बताते हैं कि पूर्वोत्तर के इस सुरम्य, छोटे से पहाड़ी राज्य में हिंसा की असल वजह क्या है? क्या ये हिंदुओं और ईसाइयों के बीच की लड़ाई है, और ये भी जानेंगे कि मणिपुर हाईकोर्ट का वो कौन-सा आदेश है, जिसके बाद राज्य का सियासी पारा फिर से चढ़ गया है.
पहले मणिपुर को समझ लेते हैं. मणिपुर में 16 जिले हैं. राज्य का भूभाग मुख्य रूप से दो हिस्सों में बंटा है, पहला इंफाल घाटी और दूसरा पहाड़ी जिले. इंफाल घाटी में पांच जिले हैं. इनमें मैतेई समुदाय का बोलबाला है. ये लोग मुख्यतः हिंदू हैं. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय का हिस्सा लगभग 53 फीसदी है. राज्य की लगभग 10 प्रतिशत जमीन पर ये बसे हुए हैं. दूसरी तरफ पहाड़ी जिलों में नगा और कुकी आदिवासियों का वर्चस्व है. राज्य के 90 फीसदी से अधिक पहाड़ी भूभाग पर ये फैले हुए हैं. मणिपुर में लगभग 34 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं, इनमें नगा और कुकी प्रमुख हैं. इसके सदस्य ईसाई होते हैं. हालिया हिंसा इन्हीं मैतेई और कुकी समुदायों के बीच की लड़ाई का नतीजा है.
अब उस घटना की तरफ चलते हैं, जिससे हिंसा की शुरुआत हुई. बुधवार का दिन था. एक छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकता रैली का आह्वान किया था. ये रैली गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति (ST) का दर्जा देने की मांग के विरोध में बुलाई गई थी. हजारों लोग रैली में शामिल हुए. रैली शांतिपूर्ण तरीके से चल रही थी. पुलिस के हवाले से आई खबरें बताती हैं कि चूड़ाचांदपुर जिले में रैली के दौरान कुछ हथियारबंद लोगों ने मैतेई समुदाय के लोगों पर हमला कर दिया. इसकी प्रतिक्रिया हुई. मैतेई समुदाय के लोगों भी टूट पड़े. देखते ही देखते हिंसा की आग ने आसपास के जिलों को भी अपनी चपेट में ले लिया. पूरे राज्य से हिंसक वारदातों की खबरें आने लगीं. पुलिस के अनुसार, लगभग तीन घंटे तक हिंसा का तांडव चलता रहा. तमाम दुकानों और घरों को फूंक दिया गया. लोगों को बाहर निकाल-निकालकर मारा-पीटा गया. इंफाल घाटी में कुकी आदिवासियों के घरों में तोड़फोड़ की गई.
पुलिस ने हालात संभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही. आंसू गैंस के गोले दागे. हवाई फायरिंग की, लेकिन हिंसा नहीं रुकी. इसके बाद सेना और असम राइफल्स को तैनात किया गया. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रैपिड एक्शन फोर्स की पांच कंपनियां मणिपुर भेज दीं. आठ जिलों में कर्फ्यू और इंटरनेट बैन जैसे कदम उठाए गए. सरकार ने हिंसाग्रस्त इलाकों में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए हैं. सेना फ्लैग मार्च कर रही है. मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस हिंसा को दो वर्गों के बीच की गलतफहमी बताते हुए शांति की अपील की है. गृह मंत्री अमित शाह ने सीएम बीरेन सिंह से बात करके हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया है. मशहूर बॉक्सर मैरी कॉम ने भी ट्वीट करके पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से अपील की. उन्होंने लिखा कि मेरा मणिपुर जल रहा है, कृपया इसे बचाने के लिए मदद कीजिए.
अब बताते हैं कि आखिर इस हिंसा के पीछे की असल वजह क्या है. दरअसल मैतेई समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है. यह मांग लगभग 2012 से चली आ रही है. शेड्यूल ट्राइब्स डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर (STDCM) इसकी अगुवाई कर रहा है. इस सिलसिले में 14 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट का एक अहम फैसला आया था. इसमें हाई कोर्ट में राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने की मांग पर चार हफ्तों के अंदर विचार करे और अपनी सिफारिशों को केंद्र सरकार को भेजे. मैतेई को एसटी श्रेणी में आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं, इसे लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं.
मणिपुर के एसटी समुदायों का कहना है कि मैतेई को ओबीसी और एससी का दर्जा पहले से प्राप्त है. राज्य के संसाधनों पर उसका हक पहले से ज्यादा हक है. अब उन्हें एसटी लिस्ट में जोड़ने से इस श्रेणी की आरक्षित नौकरियों और अन्य सुविधाओं में दूसरों का हिस्सा कम हो जाएगा. वहीं मैतेई समुदाय का कहना है कि 1949 में मणिपुर रियासत के भारत में विलय होने से पहले उसे ट्राइब्स ही माना जाता था. विलय के बाद उसकी पहचान खो गई. 1951 में मणिपुर की कुल आबादी में जहां उसका हिस्सा 59 फीसदी था, वहीं 2011 की जनगणना में यह घटकर 44 प्रतिशत रह गया है. म्यांमार, बांग्लादेश के अलावा बाहरी राज्यों के काफी लोग इंफाल घाटी में आकर बस गए हैं, ऐसे में मैतेई को पहाड़ी जिलों में रहने की इजाजत दी जानी चाहिए. उसकी पारंपरिक जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाए रखने के लिए यह दर्जा जरूरी है.
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आरक्षण की इस लड़ाई के अलावा कुकी समुदाय की नाराजगी की एक वजह और बताई जाती है. सीएम बीरेन सिंह की सरकार पहाड़ी इलाकों में आदिवासियों के बहुत से ठिकानों को अवैध बताकर बेदखली अभियान चला रही है. इससे भी उनमें नाराजगी है और वह इसके लिए मैतेई समुदाय के शासन प्रशासन में प्रभुत्व को जिम्मेदार ठहराते हैं. इसके लिए मुख्यमंत्री पर आदिवासी विरोधी एजेंडा चलाने के भी आरोप लगते हैं. यही वजह है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद आदिवासियों ने रैली के जरिए अपनी एकजुटता दिखाने की योजना बनाई थी, लेकिन उससे हिंसा की ऐसी आग लगी कि पूरा राज्य ही जलने लगा.
- मनोज शर्मा की रिपोर्ट