MP में दिग्गजों की अग्निपरीक्षा
वैसे तो हार-जीत से पार्टियों की पकड़ और आधार का पता चलना है, लेकिन सही मायने में ये लड़ाई दिग्गजों में ही है. इस बात को पार्टियां भी समझ रही हैं. इसीलिए तो पूरा चुनाव चार-पांच चेहरों के इर्द-गिर्द सिमटा दिख रहा है.
News Delhi :
वैसे तो हार-जीत से पार्टियों की पकड़ और आधार का पता चलना है, लेकिन सही मायने में ये लड़ाई दिग्गजों में ही है. इस बात को पार्टियां भी समझ रही हैं. इसीलिए तो पूरा चुनाव चार-पांच चेहरों के इर्द-गिर्द सिमटा दिख रहा है. या यूं कहें कि सियासी दल भी इन्हीं को भरोसे हैं. बीजेपी को जहां शिवराज का जादू चलने का भरोसा है तो वहीं कांग्रेस को कमलनाथ से उम्मीदें हैं. बड़ा सवाल है कि आखिर इन नेताओं की यूएसपी क्या है? जिसकी वजह से पार्टियों को इनसे इतनी आस है? तो दरअसल शिवराज को सीधे और सरल संवाद के लिए जाना जाता है. सामाजिक और लोकप्रिय योजनाओं से उनकी खास पहचान है. जनहित के लिए सरेआम अधिकारियों की वो क्लास लगाते रहे हैं, इससे जनता के बीच शिवराज की छवि एक बेहतर जननेता की रही है.
वहीं, कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस में सबसे साफ छवि वाला नेता माना जाता है. 15 महीने के शासन में जनहित से जुड़े कई फैसले लिए थे. किसान कर्ज माफी योजना हिट रही थी. इसी वजह से कमलनाथ का ग्राफ बेहतर माना जाता है. शिवराज और कमलनाथ के बाद वीडी शर्मा और दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. चूंकि वीडी शर्मा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. लिहाजा इस नाते हार-जीत से उनके कद पर सीधा प्रभाव पड़ेगा. इसीलिए शिवराज के साथ वो भी प्रचार में सक्रिय हैं. कांग्रेसी खेमे से दिग्विजय सिंह के लिए अपनों को जीत दिलाना साख का सवाल है. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने उनके कहने पर उनके कई समर्थकों को टिकट दिया है. ऐसे में अगर वो नहीं जीतते हैं तो उनकी पकड़ और आधार पर भी सवाल उठेंगे.
इसी तरह सिंधिया को ग्वालियर-चंबल में अपनी पकड़ साबित करनी होगी, क्योंकि अगर उनके गढ़ में कांग्रेस ने घुसपैठ की तो उन पर भी सवाल उठेंगे. मतलब साफ है कि निकाय चुनाव में चेहरों पर दारोमदार है और उन्हीं के सहारे चुनावी नैय्या पार लगाने की तैयारी है. हालांकि कहा जाता है कि कांग्रेस का संगठन बीजेपी से कमजोर है. बीजेपी पिछले कई महीनों से सक्रिय है. ऐसे में बीजेपी को जमीनी स्तर पर किए गए काम का लाभ मिल सकता है. मगर कांग्रेस के सामने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के अलावा विकल्प कम हैं.
वैसे सवाल ये भी है कि आखिर निकाय चुनाव को 2023 से पहले का इम्तिहान क्यों माना जा रहा है? तो दरअसल अब विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है,ऐसे में निकायों के नतीजों को 2023 का ट्रेंड माना जाएगा. इससे ये संकेत मिल जाएगा कि जनता का मूड क्या है? जिसकी जीत होगी,उसके लिए 2023 की राह आसान हो सकती है और रिजल्ट जिसके पक्ष में नहीं रहेंगे. उसके लिए 2023 की रेस मुश्किल हो सकती है. पार्टियों ने जिस पर भरोसा जताया है. अगर उनका जलवा दिखा,तो 2023 के सितारे भी वही रहेंगे. शायद इसीलिए दिग्गज नेताओं ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.
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