आजादी से काफी पहले जिन्ना ने डाली थी धार्मिक आधार पर बंटवारे की नींव

साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम के वजूद में आने से ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो चुकी थीं

साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम के वजूद में आने से ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो चुकी थीं

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Sushil Kumar
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Muhammad Ali Jinnah

before-independence-jinnah-laid-the-foundation-of-religious( Photo Credit : गूगल)

मौजूदा दौर में देश में कश्मीर को लेकर सुगबुगहटों का दौर जारी है. हालांकि हमारे देश में कश्मीर को लेकर हमेशा ही चुनौतियां बनी रही हैं. हर कोई जानता है कि आजादी के साथ ही कश्मीर पर घमासान मचना शुरू हो गया था, लेकिन शायद कम लोगों को पता हो कि आजादी से काफी पहले ही मजहब के आधार पर मुल्क में ऐसे हालातों की नींव डाल दी थी, जिसके चलते कश्मीर का मुद्दा आज भी देश के सामने बड़ी चुनौती है! साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम के वजूद में आने से ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो चुकी थीं. इसके करीब दस साल बाद 1945 में डॉ. तेज बहादुर सप्रू ने सभी राजनीतिक दलों को साथ मिलाकर संविधान का खाका बनाने की पहल की.

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'हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और प्रिंसीस्तान चाहते थे जिन्ना और अंग्रेज'

उधर दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की नई सरकार ने कैबिनेट मिशन को भारत भेजा, लेकिन जिन्ना की नाराजगी बरकरार रही. दरअसल मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए अलग संविधान सभा जिन्ना की माँग थी. रियासतों को लेकर भी जिन्ना की राय अलग थी. इस सबके चलते ही कैबिनेट मिशन में तीन तस्वीर सामने आईं — हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और प्रिंसीस्तान! दो संविधान सभा को लेकर बात आगे भी बढ़ी.

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बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब, NWFR, बंगाल और असम के लिए मुस्लिम संविधान सभा जबकि बाकी बचे हिस्से के लिए हिन्दू संविधान सभा बनाने का मसौदा भी तैयार हुआ, लेकिन इसे लेकर बाकी राजनीतिक धड़ों का विरोध जारी रहा, जिसके चलते कैबिनेट मिशन और जिन्ना के इरादे सफल नहीं हो सके.

'आजादी से 31 साल पहले ही शुरू हो चुकी थीं मुल्क को बांटने की कोशिशें'

वैसे इससे काफी पहले साल 1916 से ही अंग्रेजों ने अल्पसंख्यकों के राजनीतिक हकों की बात शुरू की. 'सेपरेट इलैक्टोरेट' का अधिकार दिया गया. करीब 30 साल बाद साल 1946 में एक संविधान सभा बनाने को लेकर जिन्ना ने नाराजगी जताई. डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी. बात सिर्फ धमकी तक ही नहीं रूकी. 16 अगस्त 1946 से मुल्क में हिंसा शुरू हुई. बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत काफी ज्यादा.

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इस बीच मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार का तो हिस्सा बनी लेकिन संविधान सभा को लेकर जिन्ना का विरोध जारी रहा. विरोध और उससे पैदा हुई हिंसा के चलते ही ना सिर्फ अंग्रेजों ने अपने तय समय से पहले आजादी का एलान किया बल्कि दो हिस्सों में बंटवारा कर हमेशा के लिए दंश भी दे दिया और इसी के साथ पाकिस्तान के नापाक इरादों के चलते कश्मीर को लेकर विवाद की शुरूआत भी हुई.

वैसे इसी के साथ इस दलील को भी जगह मिली कि तभी समय रहते पाकिस्तान के बंटवारे और कश्मीर विवाद को बेहतर ढंग से नहीं सुलझाया गया, जिसके चलते ये मुद्दा मानों अंतहीन बन गया और उस पर होने वाली सियासत भी!

(लेखक - अनुराग दीक्षित, न्यूज़ नेशन में एंकर हैं)

HIGHLIGHTS

  • जम्मू-कश्मीर में सेना की तैनाती से उथल-पुथल
  • जिन्ना ने डाली थी बंटवारे की नींव
  • मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो चुकी थीं
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