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प्रियंका के मास्टर स्ट्रोक से पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में मात देंगे राहुल गांधी

कल तक जो सारथी था..आज वो योद्धा की भूमिका में खुद रणभूमि में उतर गया है. कल तक कांग्रेस (Congress) की जो मुट्ठी बंद थी वो खुल गई है.

Updated on: 24 Jan 2019, 08:16 AM

नई दिल्‍ली:

कल तक जो सारथी था..आज वो योद्धा की भूमिका में खुद रणभूमि में उतर गया है. कल तक कांग्रेस (Congress) की जो मुट्ठी बंद थी वो खुल गई है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी बहन प्रियंका वाड्रा (Priyanka Gandhi) को पार्टी महासचिव बनाने के साथ ही दे दी है पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान. अब राहुल गांधी और प्रियंका साथ-साथ देंगे पीएम मोदी को उनके ही गढ़ पूर्वी यूपी में चुनौती. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sbha Election 2019) को पानीपत की लड़ाई कहते हैं.

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अब कांग्रेस के इस सबसे बड़े दाव ने भी ये साबित कर दिया है कि बीजेपी और पीएम मोदी ही नहीं विपक्ष भी इस चुनाव को आर या पार की जंग के तौर पर ही देख रहा है. ऐसा दिलचस्प मुकाबला शायद ही पहले किसी चुनाव में देखने को मिला हो. एक ओर खुद पीएम मोदी सवर्ण आरक्षण जैसे ब्रह्मास्त्र चला रहे हैं तो तमाम धुर-विरोधी जानी-दुश्मनी को भुलाकर गठबंधन कर रहे हैं..और कांग्रेस ने तो अपना ट्रंप कार्ड ही चल दिया.

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प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग कई बरस से चल रही थी. कमोबेश हर चुनाव में ये मांग उठती रही, प्रियंका के पोस्टर तक छपते रहे, लेकिन प्रियंका ने खुद को सिर्फ भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी के प्रचार तक ही सीमित रखा. अब 2019 के लोकसभा चुनाव की जंग के सबसे बड़े अखाड़े यूपी में राहुल गांधी, बहन प्रियंका की पावर के साथ ताल ठोंक रहे हैं.  


गठबंधन की काट के लिए प्रियंका का दाव !

यूपी में जब मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन किया और कांग्रेस को गठबंधन से दूर रखा तो सियासी रणनीतिकार कांग्रेस को रेस से बाहर ही समझने लगे थे. हालांकि नज़र सबकी इसी बात पर गड़ी थी कि आखिर राहुल गांधी गठबंधन से अलग रहकर भी इतने बेफिक्र क्यों नज़र आ रहे थे. कांग्रेस की रणनीति को भांपने की कोशिश तो रणनीतिकार कर रहे थे, लेकिन वो रणनीति क्या है इसका अंदाज़ा किसी को नहीं लग रहा था.

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अब प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने के साथ ही कांग्रेस की रणनीति भी साफ हो गई है. प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने का फैसला किसी भी स्तर पर किया जा सकता था. उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश का ज़िम्मा भी दिया जा सकता था, लेकिन राहुल गांधी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ज़िम्मा मध्य प्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया और प्रियंका को खासतौर पर पूर्वी यूपी का ज़िम्मा दिया तो इसके कई अहम पहलू हैं जिनमें एसपी-बीएसपी गठबंधन की काट भी एक बड़ा पहलू है.

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राहुल का मिशन है 2019 के चुनाव में पीएम मोदी को हराना..इसके लिए सबसे बड़े सूबे यूपी में कांग्रेस को चाहिए थी ताकत...लेकिन अपनी कमज़ोर हालत और कई दूसरे सियासी समीकरणों के चलते कांग्रेस एसपी-बीएसपी गठबंधन में शामिल नहीं हो पाई..ऐसे में कांग्रेस को सिर्फ अपनी मज़बूती ही नहीं, इस गठबंधन की काट भी चाहिए थी..अखिलेश और मायावती के गठबंधन ने यूपी में जातीय समीकरण की जबरदस्त गोलबंदी कर दी..इस गोलबंदी का सबसे ज्यादा असर पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही नज़र आने वाला है..यानी मोदी को हराने के लिए अगर वोट विपक्षी दलों को पड़े तो मायावती-अखिलेश का गठबंधन बाज़ी मार सकता है.

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ऐसे में कांग्रेस को मज़बूत करने के लिए राहुल को ज़रूरत थी एक ऐसे करिश्माई चेहरे की, जिसके आगे जातीय समीकरण ध्वस्त हो सकें..प्रियंका के रूप में कांग्रेस उसी करिश्मे की उम्मीद लगाए है. हालांकि खुलेतौर पर राहुल गांधी इस बात से इनकार करते हैं. राहुल का कहना है कि मायावती और अखिलेश भी उनके सहयोगी हैं, जो चुनाव बाद के गठबंधन की गुंजाइश रखने का इशारा है.

पूर्वी यूपी में दिग्गजों के गढ़ में प्रियंका

पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान प्रियंका को देकर कांग्रेस ने गठबंधन के नेताओं की सीटों पर सीधा अटैक करने की रणनीति बनाई है. पूर्वी यूपी में लोकसभा की करीब 25 सीटें आती हैं. इनमें मायावती के गढ़ अंबेडकर नगर और उसके आसपास के अयोध्या, बलरामपुर गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती जैसे क्षेत्र हैं..तो मुलायम सिंह यादव का नया गढ़ बने आज़मगढ़ और उसके आसपास के गाज़ीपुर, जौनपुर, मऊ, बलिया जैसी सीटें आती हैं.

पूर्वी यूपी में सीएम योगी का गढ़ गोरखपुर भी आता है. इसके साथ ही संत कबीरनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया सीटें भी हैं. इन दिग्गजों के साथ ही पूर्वी यूपी में कई और विरोधी दिग्गजों की सीटें भी आती हैं इनमें केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी के सहयोगियों के असर वाली मिर्जापुर, चंदौली, जैसी सीटे हैं. यानी एक प्रियंका के सहारे राहुल गांधी मोदी विरोधी सारे दिग्गजों को एकसाथ चुनौती देना चाहते हैं और सारे विरोधी वोट अपनी झोली में भरने की रणनीति बना रहे हैं.

प्रियंका के सहारे पीएम मोदी को सीधी चुनौती

पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही पीएम मोदी का गढ़ वाराणसी भी है..जिस सियासी नफे-नुकसान को तौल कर मोदी ने 2014 में वाराणसी सीट से लड़ने का फैसला किया था..वही नफे-नुकसान इस बार कांग्रेस ने भी तौल लिए हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश से प्रियंका को उतारकर राहुल गांधी पीएम मोदी को सीधी चुनौती भी दे रहे हैं. कांग्रेस की नज़र में इसके दो फायदे हैं. एक तो पीएम मोदी की सीट को लेकर बीजेपी को अपनी ताकत यहां ज्यादा लगानी पड़ेगी, जिससे दूसरे इलाके में उसकी ताकत कम हो सकती है, जहां कांग्रेस फायदा उठा सकती है...दूसरे राहुल के इस कदम से समर्थकों और विरोधियों दोनों में संदेश जाएगा कि मोदी के विरोध में कांग्रेस पूरी तरह फ्रंट फुट पर है. राहुल गांधी ने इस बात को मीडिया के सामने पुरज़ोर ढंग से रखा भी. इस कूटनीतिक संदेश का फायदा कांग्रेस पूरे देश में ले सकती है.

प्रियंका की छवि को पूरे यूपी में कैश करने की रणनीति

प्रियंका को लेकर मुट्ठी खोलने के बावजूद उनके चुनाव लड़ने का सस्पेंस राहुल गांधी ने अभी भी बरकरार रखा है..अभी राहुल गांधी अमेठी और मां सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ते हैं...यानी ज्यादा आक्रमक होकर कांग्रेस इन दो सीटों के आसपास की सीटों पर असर बढ़ा सकती है..और यहीं से वो सेंट्रल यूपी को कंट्रोल कर सकती है. मध्य यूपी में लोकसभा की करीब 21 सीट हैं. जबकि पश्चिमी यूपी में करीब 28 सीटे हैं. पश्चिमी यूपी के लिए कांग्रेस मुस्लिम दांव आज़मा सकती है. कांग्रेसी रणनीतिकारों का मानना है कि अगर जनता केंद्र में सत्ता बदलने की मानसिकता से वोट करेगी तो मुस्लिम वोट एसपी या बीएसपी जैसे क्षत्रपों को नहीं बल्कि सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को ही मिलेंगे.

युवाओं को लुभाने के लिए प्रियंका-ज्योतिरादित्य का दाव

प्रियंका को मैदान में उतारकर राहुल गांधी ने देश के सबसे बड़े वोटबैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश भी की है. ये वोटबैंक है युवाओं का, जिस पर पीएम मोदी का भी ख़ास ज़ोर रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रचंड बहुमत के पीछे युवा वोटरों का बड़ा हाथ माना जाता है. इसीलिए पूर्वी यूपी में प्रियंका तो पश्चिमी यूपी में युवा ज्योतिरादित्य पर राहुल गांधी ने दाव खेला है. प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेस को एक परोक्ष फायदा भी मिल सकता है.

महिलाओं का जो वोटबैंक धीरे-धीरे पीएम मोदी के पाले में जा रहा था, अब वो कांग्रेस की ओर मुड़ सकता है. प्रियंका की छवि और एक बहन का भाई के साथ राजनीति में उतरना, राजनीति के साफ-सुधरे चरित्र को आगे बढ़ाता है. भाई-बहन की इस जोड़ी के साथ रिश्तों का इमोशनल फैक्टर भी काम कर सकता है. गांधी परिवार के इन दो युवा चेहरों पर देश का युवा भी दाव लगा सकता है. इस लिहाज़ से 2014 में युवाओं के सुपरहीरो बने पीएम मोदी की जगह इस बार भाई-बहन की जोड़ी ले सकती है. राहुल गांधी और प्रियंका की केमिस्ट्री को सियासत और जनता दोनों ही जानती है. अब देखना ये है कि भाई-बहन की ये जोड़ी एक और एक दो नहीं, बल्कि एक और एक ग्यारह बन पाती है या नहीं.

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