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मजदूरों का दर्द और सरकार की बेरुखी, पढ़िए धीरेंद्र पुंडीर का ब्लॉग

ऐसे में लॉकडाउन के दौरान कई तस्वीरें सामने आईं जिन्होंने दिल को झकझोर दिया साथ ही जिसने दिखाया मजदूरों का दर्द और सरकार की बेरुखी. इसी मुद्दे पर तस्वीरों के साथ पढ़िए धीरेंद्र पुंडीर का ब्लॉग उनकी कलम से.

Updated on: 15 May 2020, 03:21 PM

नई दिल्ली:

जिस रोजगार के लिए मजदूर ने घर छोड़ा, प्रदेशों की सीमाओं को लांघा. अपना पेट काटकर घर पैसा भेजने के लिए धूप, बरसात, सर्दी की परवाह नहीं की. अब वहीं मजदूर घर लौटने के लिए रोजगार को छोड़कर जा रहा है. कोरोना संकट और लॉकडाउन ने मजदूर को अपनो की याद ऐसी दिला दी कि अब मजदूर अपने बकाया वेतन को छोड़कर भी जाने के लिए तैयार खड़ा है. ऐसे में लॉकडाउन के दौरान कई तस्वीरें सामने आईं जिन्होंने दिल को झकझोर दिया साथ ही जिसने दिखाया मजदूरों का दर्द और सरकार की बेरुखी. इसी मुद्दे पर तस्वीरों के साथ पढ़िए धीरेंद्र पुंडीर का ब्लॉग उनकी कलम से. 

मक्कारी और झूठ में डूबे सरकारी अमले की आंखों में मोतियाबिन्द उतर आया है या कोरोना ने इन गरीब मजदूरों को मिस्टर इंडिया में बदल दिया कि ये सरकारों को नज़र ही नहीं आ रहे. रोज़ गुलाबी घोषणाएं और रोज़ लाखों मजदूरों का सड़कों पर हजारों किलोमीटर दूर तक का मार्च.


इन आंसुओं की कीमत कौन बता सकता है. सरकारों का अहंकार इतना ऊंचा है कि वो ये मान नहीं पा रहीं हैं कि वो मजदूरों को न तो यकीन दिला पाईं न ही भोजन और इसी झूठे अहंकार से वो इन मजदूरों को घर भेजने का इंतजाम नहीं कर रही है. अब मालूम नहीं इन मासूमों में कितने घर का दर देखेंगे.


ये कुछ राहत की तस्वीरें हैं
आखिर यूपी सरकार ने सुध ली उन हजारों मजदूरों की जो पैदल चलकर ही अपने गांव अपने शहर और अपने राज्य की ओर जा रहे थे. गाजियाबाद से हजारों मजदूरों के लिए सैकड़ों बसें लगाई हैं ताकि उनको उनके गांव तक पहुंचाया जा सके यह काफी राहत की खबर है..

तश्वीरें सब कुछ बयां कर रहीं हैं. हर एक तश्वीर ज़िंदा है अपनी कहानियों के साथ. ये बेबस हैं और सरकार मूकदर्शक है.

मुम्बई में प्रवासी मजदूरों पर लाठीचार्ज

मुंबई में मजदूरों को देने के लिए सरकार के पास सिर्फ लाठियों या बेकद्री भर है. कहने के लिए मुंबईकर अपने आप को इस देश में सबसे आला बताते हैं क्योंकि वह अपने आप को सबसे ज्यादा तहज़ीब याफ्ता और सबसे ज्यादा आधुनिक मानते हैं. लेकिन इस बार कोरोना के मामले में महाराष्ट्र सरकार का अलग चेहरा सामने आया.

बैल और इंसान

बैल के साथ इंसान बैलगाड़ी को ढो रहा है एक बार फिर से ये बात दिल को लगी कि असलियत फिल्मी पर्दे से भी ज़्यादा दर्दभरी, मर्मस्पर्शी और दहलाने वाली होती है.दुख से भरी कहानियां सड़कों पर है लेकिन ये तो अलग ही है. इंदौर बाईपास पर आज देखा गया सबसे दुखद दृश्य- महाराष्ट्र से राजस्थान की यात्रा पर निकला एक परिवार जिसका एक बेल रास्ते में खत्म हो गया परिवार को ढोते हुए गाड़ीवान स्वयं बेल की जगह चल रहा था.