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जम्मू-कश्मीर: चुनाव मजबूरी है इसलिए गठबंधन तोड़ना जरूरी है

जम्मू-कश्मीर में बीते तीन सालों में करीब 64 फीसदी ज्यादा आतंकी हमले और 200 से ज्यादा जवानों के मारे जाने के बाद अचानक बीजेपी की अंतरात्मा जागी।

Updated on: 23 Jun 2018, 07:39 PM

highlights

  • बीजेपी-पीडीपी के शासन काल में बीते तीन सालों में राज्य में कुल 744 जाने गईं
  • पत्थरबाजी के दौरान दर्ज किए गए करीब 11 हजार एफआईआर वापस ले लिये गए
  • बीजेपी ने पहले भी पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती को बताई थी पत्थरबाजों की हिमायती

नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर में बीते तीन सालों में करीब 64 फीसदी ज्यादा आतंकी हमले और 200 से ज्यादा जवानों के मारे जाने के बाद अचानक बीजेपी की अंतरात्मा जागी और राज्य की सुरक्षा और मौजूदा हालात को देखते हुए महबूबा सरकार गिरा दी। वैसे भी बीते तीन सालों में बीजेपी की वहां दाल गल नहीं रही थी और उसे न चाहते हुए भी पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर उनकी बेटी महबूबा मफ्ती की हर बात माननी पड़ती थी।

ऐसे में महज 10 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अंतरात्मा का जागना स्वभाविक था। बीजेपी-पीडीपी के शासन काल में बीते तीन सालों में राज्य में कुल 744 जानें गईं जिसमें 471 आतंकी, 201 सुरक्षाकर्मी और 72 आम नागरिक शामिल हैं। मतलब औसतन 2 आतंकी को मारने के लिए हमें 1 जवान खोना पड़ा।

यह अलग बात है जिस पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ बीजेपी बीते तीन सालों से सत्ता चला रही थी वो पत्थरबाजों की हिमायती थी और पत्थरबाजी के दौरान दर्ज किए गए करीब 11 हजार एफआईआर वापस ले लिये गए तब न केंद्र सरकार की अतंरात्मा जागी और न बीजेपी की।

दिलचस्प बात यह है कि इन्हीं पत्थरबाजों की वजह से आतंकी भागने में कामयाब हो जाते थे और फिर मौका देखकर सुरक्षाकर्मियों पर हमला बोलकर उनकी जान ले लेते थे।

चूंकि अब 10 महीने बाद देश में लोकसभा का चुनाव होना है ऐसे में बीजेपी को एक बार फिर से सत्ता में आने के लिए देश के लोगों को राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का मनचाहा पाठ पढ़ाना जरूरी है ताकि दलित और पिछड़ी जाति के लोग बीते चार साल में अपना शोषण भूलकर राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण के जरिए अपने वोटों का खजाना बीजेपी के लिए खोल दें।

हिन्दू समुदाय की तमाम जातियां जो अलग-अलग मुद्दों पर बंटी हुई है वो बीजेपी के राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर अपना वोट नरेंद्र मोदी के नाम कर दें। बाकी कोर कसर पूरा करने के लिए तो राम मंदिर, पाकिस्तान से खतरा जैसे मुद्दे बोनस के रूप में मौजूद ही हैं।

अब थोड़ा पीछे यानी कि रमजान शुरू होने से पहले के समय में चलते हैं जब सेना ने कश्मीर घाटी से आतंकियों के सफाए के लिए ऑपरेशन ऑल आउट चला रखा था।

बीजेपी के पहले के शब्दों में ही पत्थरबाजों की हिमायती रही महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार से रमजान के दौरान एकतरफा सीजफायर यानी कि आसान शब्दों में सेना के आतंकवाद के विरूद्ध हर कार्रवाई को रोकने का आग्रह किया। उन्होंने कहा वह नहीं चाहती की रमजान के पाक महीने में किसी का खून बहे।

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कमाल की बात यह है कि हमारे देश में कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन एक धार्मिक त्योहार के लिए आतंकवाद के खात्मे के लिए चलाये जा रहे इतने महत्वपूर्ण अभियान को रोक दिया जाता है।

सेना इसके लिए तैयार नहीं थी और कारण भी बताया था कि ऐसे में आतंकियों को इससे एकजुट होने और बड़ी मात्रा में हथियार जमा करने का मौका मिल जाएगा। लेकिन केंद्र सरकार के आदेश के आगे सेना को झुकना पड़ा और पूरे रमजान के दौरान एकतरफा सीजफायर का ऐलान कर दिया। इधर सेना ने सीजफायर रोका उधर आतंकियों ने अपने बंदूकों और हथियारों के मुंह खोल दिए।

रमजान के दौरान बॉर्डर से लेकर कश्मीर के आतंरिक हिस्सों में आतंकी हमलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई और कई सुरक्षकर्मियों को सत्ता के इस फैसले की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यहां यह जान लेना जरूरी है कि सेना की आशंका बिल्कुल सही थी और घाटी में हुआ भी कुछ ऐसा ही।

कश्मीर घाटी में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से ही जो हालात बदतर हुए उसको देखते हुए मोदी सरकार के एकतरफा सीजफायर के फैसले पर आम लोगों को ही नहीं बल्कि मोदी और बीजेपी के समर्थकों को भी हैरानी और नाराजगी हुई।

बीजेपी समर्थकों लगा कि जो पीएम मोदी चुनावों से पहले कहा करते थे कि वो एक मारेंगे तो हम उनके 10 सिर काट कर ले आएंगे वो सिर्फ राज्य में सत्ता बनाये रखने और एक गुट को खुश करने के लिए ऐसा फैसला लिया। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को इस बात की भनक लग चुकी थी कि आम लोगों के साथ ही बीजेपी समर्थकों में भी इस फैसले को लेकर नाराजगी है और रोज सेना के जवान मारे जा रहे हैं।

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चूंकि मोदी सरकार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को यह अच्छे से पता है कि वो ज्यादातर हिंदू वोटों की बदौलत ही जीत दर्ज कर सकते हैं और इस देश में करीब 80 फीसदी हिंदू ही हैं ऐसे में उनकी नाराजगी उनके दोबारा सरकार बनाने के सपने को चूर-चूर कर सकती है इसलिए बीजेपी ने शेर को पकड़ने के लिए मेमने की बलि देने में ही भलाई समझी।

यहां शेर का मतलब 2019 चुनाव और मेमने से मतलब चुनाव में फायदा के लिए राज्य सरकारी की बलि देने से है।

अब केंद्र सरकार ने आतंकियों की सफाई के लिए सेना को खुली छूट दे दी है और सुरक्षाकर्मियों के ऑपरेशन को और धार देने के लिए वहां एनएसजी की भी तैनाती कर दी है। दरअसल इसके जरिए बीजेपी नरेंद्र मोदी की छवि जल्द से जल्द और व्यापक तौर पर आतंकवाद के दमन के लिए सख्त कार्रवाई करने वाले प्रधानमंत्री के तौर पर बनाना चाहती है जिसका सीधा फायदा चुनाव में मिल सके।

आतंकियों के खिलाफ इस कार्रवाई को बीजेपी अगले लोकसभा चुनाव में यूपी चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक की तरह भुनाएगी और लोगों को राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर एकजुट करने की कोशिश करेगी।

मोदी सरकार चुनाव में इसे ऐसे भी भुनाने की कोशिश करेगी कि आतंकवाद से निपटने के लिए बीजेपी ने सत्ता की भी कुर्बानी दे दी जो कोई और पार्टी कभी नहीं दे सकती।

पीडीपी से गठबंधन तोड़ने के बाद बीजेपी महासचिव और जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने कहा भी था कि जम्मू-कश्मीर में कुछ इलाकों से भेदभाव और वर्तमान हालात को देखते हुए गठबंधन तोड़ने का फैसला लिया गया है। हालांकि इस गठबंधन को तोड़ने के लिए क्षणिक ट्रिगर का काम महबूबा के सीजफायर को एक महीने और आगे बढ़ाने की मांग थी जिसके लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं हुई।

हालांकि यहां शायद वो यह भूल गए कि 2015 से राज्य में वो भी सत्ता में बने हुए थे तो 64 फीसदी ज्यादा आतंकी हमले बढ़ने के बाद भी उनकी नींद 3 साल बाद क्यों टूटी।

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इसकी दूसरी वजह यह है कि बीजेपी को हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी और पीएम मोदी को कट्टर हिंदू समर्थक और हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर जाना जाता है।

ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी को पीडीपी नेताओं और महबूबा मुफ्ती के साथ मंच शेयर करना पड़ता तो उनके समर्थकों और इन दिनों हिंदू और मुसलमानों के गुट में बंट चुके देश के ज्यादातर लोग उन्हें पसंद नहीं करते क्योंकि यही मोदी 2015 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को पानी पी-पी कर अलगाववादियों का समर्थन वाली और देश के खिलाफ काम करने वाली पार्टी बता चुके थे।

यह अलग बात है कि बाद में बीजेपी ने इसी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली। ऐसे में अगर गठबंधन में बीजेपी बनी रहती तो न तो वो कश्मीर पर सारा क्रेडिट खुद ले पाती और न ही सहज तरीके से अपने वोटरों को एकजुट रख पाती।

सभी विपक्ष दलों के एकजुट होने पर अपने वोट बैंक को बचाए रखने के लिए बीजेपी को बेहद जरूरी है कि राष्ट्रहित और देशभक्ति के नाम पर आसानी से इनका ध्रुवीकरण पार्टी के हित में किया जा सके।

यह भी संभव है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अंतरात्मा एक बार फिर जग जाए और फिर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी गठबंधन कर ले।

राजनीतिक दलों और नेताओं की अंतरात्मा इस देश की जनता के लिए नहीं, हमेशा अपने फायदे के लिए जागती है अगर भरोसा न हो तो इतिहास उठा कर देख लीजिये या फिर गूगल ही कर लीजिए।

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