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क्या भारत की आबादी घटने वाली है ?

पहली बार हिन्दुस्तान की आबादी के घटने के संकेत मिल रहे हैं. पहली बार टोटल फर्टिलिटी रेट यानि प्रजनन दर घटकर 2 पहुंच गई है. अभी तक हिन्दुस्तान में पॉपुलेशन कंट्रोल पर बहस होती थी. लेकिन अब पहली बार लग रहा..

Updated on: 26 Nov 2021, 08:50 PM

highlights

  • आबादी के लिहाज से पहली बार आई अच्छी खबर 
  • पॉपुलेशन कंट्रोल की कोशिश पहली बार रंग लाती दिख रही 
  • फर्टिलिटी रेट यानि प्रजनन दर घटकर 2 पर पहुंच गई है

नई दिल्ली :

पहली बार हिन्दुस्तान की आबादी के घटने के संकेत मिल रहे हैं. पहली बार टोटल फर्टिलिटी रेट यानि प्रजनन दर घटकर 2 पहुंच गई है. अभी तक हिन्दुस्तान में पॉपुलेशन कंट्रोल पर बहस होती थी. लेकिन अब पहली बार लग रहा..हिन्दुस्तान में जनसंख्या के कम होने के संकेत मिलने लगे हैं. पहली बार जनसंख्या नियंत्रण का अभियान रंग ला रहा है. लेकिन जब आबादी घटेगी तो ये तय है कि हिन्दुस्तान की तस्वीर बदलेगी. आपको बता दें कि हिन्दुस्तान को विकासशील से विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा बढ़ती आबादी को बताया जाता रहा है. हिन्दुस्तान की आबादी बहुत ज्यादा है और संसाधन कम....आंकड़े की बात करें तो भारत की आबादी दुनिया की जनसंख्या का 17.5 फीसदी है. भारत का भौगोलिक क्षेत्र दुनिया की ज़मीन का 2.4% है. भारत में दुनिया के कुल जल संसाधनों का 4 फीसदी जल उपलब्ध है. जब आबादी ज्यादा है संसाधन कम तो विकास का लक्ष्य कैसे हासिल होगा हमारी बहस इसी तर्क के ईर्द गिर्द रही है.

हिन्दुस्तान में टोटल फर्टिलिटी रेट यानि TFR 2.2 से घटकर 2 हो गया है ये रिपलेसमेंट लेवल से कम है यानि देश में आबादी का घटना तय है. पॉपुलेशन कंट्रोल की दिशा में ये बड़ी उपलब्धि है. हिन्दुस्तान में लगातार कम होते TFR की बात करें तो 2005-06 में भारत का TFR was 2.7 था. लेकिन 2015-2016 में ये घटकर ये 2.2 हो गया और अब 2019-21 में ये घटकर 2 हो गया है. यानि देश में कम बच्चे ही अच्छे की अहमीयत को लेकर जागरूकता बढ़ी है. लोग फैमिली प्लानिंग पर जोर दे रहे हैं.
देश का औसत प्रजनन दर रिपलेसमेंट लेवल के नीचे जा चुका है वैसे तो सभी राज्यों में टीएफआर कम हुआ है लेकिन कुछ राज्यों का टीएफआर  अभी भी औसत से ज्यादा है. 6 राज्य हैं जिनका टीएफआर देश के औसत से ज्यादा है. इसमे टॉप पर है बिहार है जिसका टीएफआऱ 3 है वहीं मेघायल का 2.9, यूपी का 2.4, झारखंड का 2.3 और मणिपुर का 2.2 है.

पंद्रह सालों में पॉपुलेशन कंट्रोल के लिहाज से टीएफआर को 2 पर ले आना ये बहुत अच्छी खबर है. जानकारों के मुताबिक आंकड़ों से साफ है कि फैमिली प्लानिंग को लेकर जागरूकता,महिला सशक्तिकरण की वजह से बड़ा ब्रेकथ्रू हासिल हुआ है. हैरानी की बात यह है कि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने साल 1952 में परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया था. लेकिन 69 साल बाद काफी कोशिशों के बाद हिन्दुस्तान पॉपुलेशन कंट्रोल के लक्ष्य की तरफ बढ़ता दिख रहा है. आखिर भारत में जनसंख्या नियंत्रण क्यों जरूरी है देश में कितनी आबादी रहती है इसे समझने के लिए इन आंकड़ों पर गौर करते हैं.


आंकड़े की बात करें तो भारत की आबादी दुनिया की जनसंख्या का 17.5 फीसदी है . भारत का भौगोलिक क्षेत्र दुनिया की ज़मीन का 2.4% है .भारत में दुनिया के कुल जल संसाधनों का 4 फीसदी जल उपलब्ध है . जब आबादी ज्यादा है संसाधन कम तो विकास का लक्ष्य कैसे हासिल होगा हमारी बहस इसी तर्क के ईर्द गिर्द रही है .
लेकिन आजाद हिन्दुस्तान में पहली बार आबादी को सीमित करने के मसले पर अच्छी खबर आई है . NATIONAL FAMILY HEALTH SURVEY का डेटा इस ओर इशारा कर रहा है . इस डेटा के मुताबिक हिन्दुस्तान में टोटल फर्टिलिटी रेट यानि TFR 2.2 से घटकर 2 हो गया है ये रिपलेसमेंट लेवल से कम है यानि देश में आबादी का घटना तय है .
पॉपुलेशन कंट्रोल की दिशा में ये बड़ी उपलब्धि है . हिन्दुस्तान में लगातार कम होते TFR की बात करें तो 2005-06 में भारत का TFR was 2.7 था लेकिन 2015-2016 में ये घटकर ये 2.2 हो गया और अब 2019-21 में ये घटकर 2 हो गया है .यानि देश में कम बच्चे ही अच्छे की अहमीयत को लेकर जागरूकता बढ़ी है . लोग फैमिली प्लानिंग पर जोर दे रहे हैं . देश का औसत प्रजनन दर रिपलेसमेंट लेवल के नीचे जा चुका है वैसे तो सभी राज्यों में टीएफआर कम हुआ है लेकिन कुछ राज्यों का टीएफआर  अभी भी औसत से ज्यादा है . 6 राज्य हैं जिनका टीएफआर देश के औसत से ज्यादा है . इसमे टॉप पर है बिहार है जिसका टीएफआऱ 3 है वहीं मेघायल का 2.9, यूपी का 2.4, झारखंड का 2.3 और मणिपुर का 2.2 है . पंद्रह सालों में पॉपुलेशन कंट्रोल के लिहाज से टीएफआर को 2 पर ले आना ये बहुत अच्छी खबर है . जानकारों के मुताबिक आंकड़ों से साफ है कि फैमिली प्लानिंग को लेकर जागरूकता,महिला सशक्तिकरण की वजह से बड़ा ब्रेकथ्रू हासिल हुआ है . हैरानी की बात यह है कि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने साल 1952 में परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया था. लेकिन 69 साल बाद काफी कोशिशों के बाद हिन्दुस्तान पॉपुलेशन कंट्रोल के लक्ष्य की तरफ बढ़ता दिख रहा है . आखिर भारत में जनसंख्या नियंत्रण क्यों जरूरी है देश में कितनी आबादी रहती है इसे समझने के लिए इन आंकड़ों पर गौर करते हैं .
यूपी के हाथरस की आबादी भूटान - मालदीव से ज़्यादा है . बिहार की जनसंख्या मेक्सिको के बराबर है .आंध्र प्रदेश की जनसंख्या जर्मनी के बराबर है . दिल्ली की जनसंख्या बेलारूस के बराबर है .
यानि पॉपुलेशन के लिहाज से हिन्दुस्तान सिर्फ मुल्क नहीं है ये मल्टीनेशन स्टेट है यही वजह है कि यहां पॉपुलेशन कंट्रोल पर जोर दिया जाता रहा .
देश में पहली बार 1960 में जनसंख्या नीति बनाने का सुझाव आया . 1976 में देश की पहली जनसंख्या नीति का एलान हुआ . 1978 में जनता पार्टी सरकार ने संशोधित जनसंख्या नीति का एलान किया . उसके सालों बाद साल 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया, तभी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा हुई और जनसंख्या की स्थिरता पर जोर दिया गया . 2005 में इस आयोग का फिर पुनर्गठन हुआ .स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से  2016 में शुरु किए गए मिशन परिवार विकास का लक्ष्य 2025 तक देश के कुल प्रजनन दर को 2.1 तक लाना था . लेकिन बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए 2021 में ही भारत का प्रजनन दर 2 हो गया है .पॉपुलेशन कंट्रोल को लेकर सिर्फ केन्द्र की तरफ से ही कदम नहीं उठाए गए हैं . राज्य सरकारों ने भी पॉपुलेशन कंट्रोल पर कानून बनाए हैं .

बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और ओडिशा में दो से अधिक बच्चे वालों को पंचायत/ नगर पालिका के चुनाव लड़ने पर रोक है .असम में दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्तियों को सरकारी नौकरी नहीं है .यूपी में जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की तैयारी है .पूरे देश में आबादी का कम होने के आसार शुभ संकेत है पहली बार प्रजनन दर रिप्लेसमेंट लेवल के नीचे आया है जिन दो राज्यों में सबसे कम प्रजनन दर है . वो है जम्मू कश्मीर और पश्चिम बंगाल . 2015-16 में जम्मू कश्मीर का प्रजनन दर 2 था अब वो घटकर 0.6 हो गया है..पश्चिम बंगाल और महराष्ट्र का टीएफआर 1.6 है .वैसे देश में ज्यादा आबादी का एक पहलू डेमोग्राफिक डिविडेंड का भी रहा है यानि यह अर्थव्यवस्था में मानव संसाधन और खास कर युवा आबादी की भूमिका . भारत में 15 साल से लेकर 59 साल के लोगों आबादी लगभग 62 फीसदी है . यानि भारत में काम करने वाले युवा ज्यादा है . इतिहास बताता है कि उन्हीं मुल्कों ने विकास किया है जिन्होंने डेमोग्रेफिक डिविडेंड का इस्तेमाल बेहतर तरीके से किया है . एशिया में चीन हो या फिर जापान  विकास दर के साथ इन देशों के प्रजनन दर में आई गिरावट का दूसरा असर देखने को मिल रहा है . यहां लेबर शॉर्टेज की समस्या हो चुकी है . कुछ देश आबादी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं . इन देशों में
चीन, जापान, रूस, इटली और दक्षिण कोरिया शामिल है .क्या भारत में भी आने वाले दिनों में ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं . जानकारों कहना है कि ऐसे हालात अगले कुछ दशकों तक नहीं आने वाले हैं .