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विकृति से परे जीवन का नए सिरे से निर्माण: अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस 

कोविड-19 महामारी के कारण दिव्यांग लोगों की जिंदगी पहले से भी अधिक मुश्किल हो गई. पहले ही उनके जीवन में अनेक दुश्वारियां मौजूद थीं, फिर इस महामारी ने उन्हें घर की चारदीवारी में कैद कर दिया. 

Updated on: 03 Dec 2021, 11:33 AM

नई दिल्ली:

किसी भी दिव्यांग व्यक्ति के लिए असली संघर्ष उस समय से ही शुरू होता है, जब वह दुनिया का सामना करना सीखता है और अपनी मुश्किलों और दुश्वारियों के साथ ही जीने का प्रयास करता है. हालांकि कठिनाइयाँ ऐसे दिव्यांग व्यक्तियों के नियमित जीवन का एक हिस्सा हैं, लेकिन हर बीतते दिन के साथ उनके लिए इस तरह का जीवन एक सामान्य बात है. हाल के दौर में कोविड-19 महामारी के कारण दिव्यांग लोगों की जिंदगी पहले से भी अधिक मुश्किल हो गई. पहले ही उनके जीवन में अनेक दुश्वारियां मौजूद थीं, फिर इस महामारी ने उन्हें घर की चारदीवारी में कैद कर दिया. 

ऐसे माहौल में उनमें से कई को सामाजिक, भावनात्मक और यहां तक कि शारीरिक विफलताओं का सामना भी करना पड़ा. इस दौरान अनेक लोगों को वे तमाम चीजें भी हासिल नहीं हो पाईं, जिनसे उन्हें अपना जीवन बदलने में मदद मिलती. ऐसे दौर में इनमें से अनेक लोगों ने हालात के साथ समझौता कर लिया. लेकिन कुछ ऐसे दिव्यांग भी रहे, जिन्होंने अपने परिवारों के साथ नारायण सेवा संस्थान जैसे संस्थानों की मदद भी ली और अपने जीवन में बदलाव लाने का फैसला किया. ये कहानी है ऐसे ही दो लोगों की - नालंदा के 17 साल के विष्णु लोक कुमार और उत्तर प्रदेश के 5 साल के बच्चे अंश की.

नालंदा के 17 वर्षीय विष्णु लोक कुमार का जीवन अपनी उम्र के दूसरे तमाम साधारण लड़कों से अलग था. अपने दोनों पैरों से अशक्त होने के कारण विष्णु को अपने बचपन से ही जबरदस्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले विष्णु के माता-पिता की हैसियत इतनी नहीं थी कि वे विष्णु को सामान्य जीवन देने के लिए इलाज और उनके पैरों का ऑपरेशन कराने का खर्च उठा सकें. एक दिन कुछ लोगों के माध्यम से उन्हें उदयपुर संस्थान में उपलब्ध इलिजारोव तकनीक का पता चला. इलिजारोव तकनीक दिव्यांगों को उनके जीवन को सरल और आसान बनाने और उन्हें सक्षम और सशक्त बनाने के लिए दी जाने वाली एक निशुल्क करेक्टिव सर्जरी है.
 
विष्णु ने उदयपुर परिसर में संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई गई निशुल्क सुधारात्मक सर्जरी कराई. विष्णु ने एक पैर का इलाज किया है और 3 महीने पहले वे पूरी तरह से ठीक हो गए. उन्होंने दूसरे पैर की भी करेक्टिव सर्जरी कराने का फैसला किया है. विष्णु कहते हैं, ‘‘मैंने कभी अपने आप को इतना सशक्त महसूस नहीं किया. बिना किसी सहारे के चलना एक सपने के सच होने जैसा है. मेरी तरह और भी कई लोग होंगे जो ऐसी विकृतियों के कारण पीड़ित रहे होंगे जो सामान्य जीवन जीने में बाधा उत्पन्न करती हैं. मैं ऐसे कई भाइयों और बहनों से आग्रह करता हूं कि वे संस्थान में आएं और संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुधारात्मक सर्जरी करवाएं.’’

एक और प्रेरक कहानी उत्तर प्रदेश के रहने वाले 5 वर्षीय अंश की है. क्षतिग्रस्त हड्डी के कारण जन्म से ही वह एक पैर में विकृति के साथ पैदा हुआ था. कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंश का परिवार महानगरों में मिलने वाले महंगे इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकता था. लेकिन अंश के परिवार के सदस्यों में से एक व्यक्ति ने संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुधारात्मक सर्जरी का लाभ उठाया था, और इस पारिवारिक सदस्य की प्रेरणा से अंश और उसके परिवार ने संस्थान से संपर्क किया. लगभग 3 साल पहले, अंश के माता-पिता रेणु और हरिराम उसे संस्थान ले आए. अंश और उसके माता-पिता से परामर्श करने के बाद डॉक्टरों ने सर्जरी और इलिजारोव उपचार के माध्यम से अंश का ऑपरेशन किया. अब पिछले तीन वर्षों में, उन्होंने अपने बेटे की स्थिति में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा है और वे उसे अपने पैरों पर खड़े देखने का इंतजार कर रहे हैं.

नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा, ‘‘कोविड-19 के कारण विभिन्न राज्यों और पूरे देश में लॉकडाउन के कारण अनेक दिव्यांगों की सर्जरी में देरी हुई. संस्थान में हम सभी के लिए समान अवसरों में और एक ऐसी दुनिया में विश्वास करते हैं, जहां सभी लोग एक ऐसा जीवन जी सकते हैं जो सशक्त हो. हम दिव्यांग व्यक्तियों को स्वतंत्र बनाने के लिए उनकी सुधारात्मक सर्जरी करते हैं. उदयपुर में हमारे परिसर में की जाने वाली निशुल्क सर्जरी ने कई लोगों को एक ऐसा नया जीवन दिया है, जिसका उन्होंने हमेशा सपना देखा है. एनएसएस उदयपुर में कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम और मुफ्त स्कूल सेवाएं प्रदान करता है और साथ ही पूरे देश में कृत्रिम अंगों के लिए निशुल्क माप और वितरण शिविरों का आयोजन भी करता है.