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Indian Culture : ये कहां आ गए हम?

चेहरे पर अनुभवों की सिलवटें जब झुर्रियों के रूप में उभर आती हैं, तब जीवन काफी बदल जाता है और यहीं से शुरुआत होती है जिंदगी के उस पड़ाव की, जहां आपके साथ कितने हाथ होंगे यह तय नहीं होता.

Updated on: 07 Jul 2022, 09:23 PM

नई दिल्ली:

चेहरे पर अनुभवों की सिलवटें जब झुर्रियों के रूप में उभर आती हैं, तब जीवन काफी बदल जाता है और यहीं से शुरुआत होती है जिंदगी के उस पड़ाव की, जहां आपके साथ कितने हाथ होंगे यह तय नहीं होता. माता-पिता भगवान का दूसरा रूप होते हैं. जीवन के हर सुख-दुख में हर कोई आपका साथ छोड़ देता है, लेकिन ये मां बाप ही होते हैं जो अपने बच्चों की हर तकलीफ को खुद ढाल बनकर अपने ऊपर ले लेते हैं, जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा, जिन्होंने हर वक्त अपनी ममता का आंचल उड़ाया आज शायद अपनी उम्र के इस पड़ाव पर खुद को अकेला पा रहे हैं.

माता-पिता अपने बच्चों का पालन कर लेते हैं, लेकिन शायद दुनिया में आज ऐसे बच्चों की तादाद बढ़ रही है, जो बुजुर्ग होते हुए अपने माता-पिता को खुद की तरक्की का रोड़ा मानते हैं और फिर उनका नया घर होता है ओल्ड एज होम. आखिर क्यों ओल्ड एज होम बढ़ रहे हैं? क्या हम आधुनिकता की दौड़ में अपनों को बोझ समझ रहे हैं? क्या हमारे संस्कार या हमारी इंसानियत खत्म होती जा रही है? क्या तरक्की और एकाकी जीवन शैली इसके पीछे का मुख्य कारण है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब आज अपनों के बीच जाने के इच्छुक यह बूढ़ी आंखें ढूंढ रही है. 

आज न जाने कितने मां-बाप अपने बच्चों का इंतजार इन वृद्ध आश्रम में कर रहे हैं जो यह कह कर गए थे कि वो जल्दी लौटेंगे, लेकिन वह दिन आज तक नहीं आया. क्या इसे हम आधुनिकता कहेंगे? जहां हमारी जड़ें पीछे छूट रही हैं, जिन्होंने हमें अपना पूरा जीवन दे दिया क्या उनके लिए हमारे पास कुछ पल भी नहीं? सही मायनों में हमारे बुजुर्ग ही हमारे भविष्य की नींव है और हमें इसी नींव को कमजोर नहीं पड़ने देना है. अगर आज हम अपनी जड़ों को कमज़ोर करेंगे तो आने वाले समय में हमें भी इस तरह उखाड़ कर फेंक दिया जाएगा.