logo-image

भारत ने दोहराया जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य में बाधा है NSG की सदस्यता न होना

भारत ने विश्व समुदाय को साफ तौर पर बता दिया है जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा उसका  न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एन एस जी )में शामिल नहीं होना है और चीन लगातार इस महत्वपूर्ण समूह की सदस्यता हासिल करने में रोड़ा अटका रहा है.

Updated on: 01 Nov 2021, 07:46 PM

नई दिल्ली:

भारत ने विश्व समुदाय को साफ तौर पर बता दिया है जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा उसका  न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एन एस जी )में शामिल नहीं होना है और चीन लगातार इस महत्वपूर्ण समूह की सदस्यता हासिल करने में रोड़ा अटका रहा है. भारत ने कहा है कि पश्चिमी देश जिस तरह के एक्शन की भारत से उम्मीद कर रहे है  उसके लिए ये जरूरी है कि भारत एन एस जी में शामिल हो और उसे वह सभी तकनीक मिले जो उसके वैकल्पिक ईंधन की जरूरतों को पूरा कर सके. 

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जी-20 समिट के दौरान कहा कि न्यूक्लियर सप्लाई समेत कई अन्य मसलों पर करवाई करने के लिए भारत को  एन एस जी की सदस्यता जरूरी है।  भारत ने कहा कि एक न्यूक्लियर देश के रूप में जिम्मेदार व्यवहार के चलते उसे एनएसजी की सदस्यता मिलनी चाहिए. भारत की तरफ से यह बात ‘कॉमन बट डिफ्रेंशियेटेड रिस्पॉन्सिबिलिटीज एंड रिस्पेक्टिव कैपेबिलिटीज (CBDR-RC)’ के सिद्धांतों के मांग के साथ उठाई गई है । श्री गोयल ने  कहा कि हमारी तकनीक को कोयला से न्यूक्लियर में बदलने के लिए हमें न्यूक्लियर प्लांट स्थापित करने होंगे और इसके लिए बड़े स्तर पर पूंजी की जरूरत पड़ सकती है. हमारे विकास की अनिवार्य रूप से भविष्य और मौजूदा जरूरत को बदलने के लिए दोनों की जरूरत होगी.’ उन्होंने कहा, ‘न्यूक्लियर सप्लाई और ऊर्जा की कीमतों से जुड़ी अन्य चिंताओं के लिए हमें  न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप  का सदस्य बनने की जरूरत है.’

अब ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर एन एस जी की सदस्यता इतनी जरूरी क्यों है और कौन इसमें रोड़ा अटका रहा है. 

भारत के द्वारा 1974 किये गए परमाणु परिक्षण के बाद “न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप” (NSG) का गठन किया गया था. NSG में 48 देशों को रखा जाता है, जो परमाणु हथियार और परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार को संचालित करता है. इस ग्रुप में मौजूद सभी देश एक दुसरे से परमाणु में लगने वाले सामान  का आयात निर्यात कर सकते है, उन्हें किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी. लेकिन ग्रुप ये सुनिश्चित करता है कि ये समान मानव हित के लिए उपयोग में लाया जाये, न कि किसी हथियार या मिसाइल के लिए. ग्रुप के मेम्बर इस परमाणु सप्लाई का उपयोग अपने देश की सेना के लिए भी नहीं कर सकते है.

एन एस जी के इस 48 देशों के इस समूह में 5 परमाणु हथियार संपन्न देश हैं. बाकि 43 देश परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty एनपीटी) पर हस्ताक्षर  करने वाले देश है. यह अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार था, 2008 में यह निष्कर्ष निकाला गया कि एनएसजी के सदस्य के रूप में भारत के आवेदन को मान्यता दी जाये. गौरतलब है कि  एनएसजी ग्रुप में मौजूद अगर कोई भी देश किसी देश की सदस्यता का विरोध करता है, तो उसे इसमें शामिल नहीं किया जा सकता.

भारत को एनएसजी की सदस्यता क्यों जरूरी है

अभी भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में यूरेनियम उपलब्ध नहीं है. भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर की संख्या बढ़ाने के लिए हमारे लिए नियमित रूप से यूरेनियम का आयात करना जरूरी है . अभी एनएसजी का मेम्बर न होने की वजह से, भारत बहुत से परमाणु उत्पादों का आयात नहीं कर पाता है. अभी सिर्फ ऑस्ट्रेलिया व कनाडा के पास ये अधिकार है कि वह गैर एनएसजी मेम्बर देशों को  यूरेनियम की आपूर्ति कर सकता है . अगली पीढ़ी के रिएक्टरों के प्रौद्योगिकी के लिए यूरेनियम अधिक मात्रा में चाहिए, इसके लिए रूस  और  फ्रांस से भी बात की गई थी लेकिन एनएसजी ग्रुप द्वारा उन्हें ये अधिकार प्रदत्त नहीं है. 

एनएसजी सदस्यता से भारत को होने वाले फायदे

-एनएसजी का हिस्सा बनने के बाद भारत को दुसरे  देशों की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त हो पायेगी जिससे स्वदेश प्रौद्योगिकी विकसित होगी.
-परमाणु बिजली घरों में बिजली का उत्पादन आसान व अधिक मात्रा में होगा. हालाँकि सदस्य  बनने के बाद भारत को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि वह इस उर्जा का उपयोग अच्छे व स्वच्छ स्त्रोत के लिए करेगा.
-यूरेनियम का नियमित आयात होने लगेगा.
-एनएसजी मेम्बर को न्यूक्लियर रिएक्टर निर्यात किये जा सकते है. नवीनतम प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ, भारत परमाणु ऊर्जा उपकरणों के उत्पादन का व्यवसायीकरण कर पायेगा. इससे आर्थिक व रणनीतिक लाभ होगा. भारत अन्य विकासशील देशों को परमाणु रिएक्टर और अन्य तकनीकों का निर्यात कर पायेगा और िस्सेस आर्थिक स्तिथि मजबूत होगी. 
-मिसाइल, उपग्रह का निर्माण आसान हो जायेगा. साथ ही भारत खुद इसे निर्मित करके अंतरिक्ष में छोड़ भी सकता है. उपग्रह छोड़ने की आजादी अभी तक भारत के पास नहीं है.
-स्वदेशी परमाणु बिजली संयंत्र बनने से भारत का  उद्योग और प्रौद्योगिकी संबंधित विकास मुमकिन हो पायेगा. 
-परमाणु ऊर्जा के स्वदेशीकरण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान को बल मिलेगा। 

चीन क्यों कर रहा है है विरोध 

भारत को एनएसजी की सदस्यता मिलने  से पाकिस्तान का इस समूह में आना नामुमकिन हो जायेगा. यही वजह है कि उसका तथाकथित भरोसेमंद दोस्त चीन भारत की जगह पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा है. चीन बोल रहा है भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, जिससे इस समूह का सदस्य नहीं बन सकता है . चीन दरअसल सत्ता का खेल -खेल रहा है, वो चाहता है भारत एन एस जी से बाहर रहे, और विकसित तकनीक  के प्रयोग से महरूम रह जाये 
.
एनएसजी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन करने वाले देश –

2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका  यात्रा  के दौरान बराक ओबामा से आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी की  वो भारत की  एनएसजी सदस्यता का समर्थन करते है. इसकी अभी औपचारिकताएं पूरी नहीं हुई है. इसके अलावा आज ही एनएसजी के मुख्य देश मेक्सिको और स्विट्जरलैंड ने भी भारत का समर्थन किया है 

अमेरिका की पहल पर भारत एक अन्य प्रभावशाली गुट मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम  (MTCR) का भी सदस्य हो गया है।  इन समूहों में शामिल होकर भारत का नाम और प्रभावशाली देशों में शुमार हो जायेगा और दुनिया उसके ताकत का लोहा मानेगी।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार ये कोशिश है कि भारत जल्द से जल्द  एन एस जी का सदस्य बन जाये।  अगर ऐसा हो पता है तो मोदी जी का यह कार्य इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो जायेगा