आधार और जनधन खाते न होते तो आज इन मजदूरों का क्या होता
लगभग 73 साल बाद इस सरकार ने लगभग 8-10 करोड़ लोगों को बैंकिग सर्विस से जोड़ा, उज्जवला योजना से गैस पहुंचाई
नई दिल्ली:
बिना कागज का राष्ट्र...एक राष्ट्र को ऐसे संकट से जूझना है जो पूरे राष्ट्र को एक साथ नष्ट कर सकता है. लेकिन ये लड़ाई कैसे हो सकती है जब सरकार के पास आंकड़ें झूठे हो, कागजों में ज्यादातर फर्जी आंकड़ें भरे गए हो. लोग खुलेआम सूचनाऐं देने का विरोध कर रहे हो. कितने लोग काम की तलाश में इधर से उधर गए हैं. वो कब घर आते है, उनके बच्चे कहां पढ़ते है कौन से स्कूल में पढ़ते है, क्या फीस है, कितने पास और कितनी दूर स्कूल है. गांव से शहर तक आए है तो वापस कब- कब जाते हैं.
लाखों की भीड़ जब सड़कों पर निकल आई तब किसी के पास ये संख्या नहीं थी कि आखिर ये भीड़ कहां से कितनी है और कहां जाएंगी औऱ जहां जाएंगी तो वहां खाने-पीने औकितनी बड़ी संख्या में किस गांव से निकल कर किस शहर में रहते है. किस साधन का इस्तेमाल करते हैं. किस बैंक में अकाउंट है. बैंक का कौन सा पता है. अगर घर से निकल कर जाते है तो फिर कहां से अकाउंट मेंटैन किया जा सकता है. पैसा कहां से निकालते है. इस तरह के हजारों सवालों ने इस वक्त जवाब दिया है कि किसी सरकार के पास देश के लिए आंकड़ों का क्या महत्व होता है.र ठहरने के लिए क्या इंतजाम होगें. ये मजदूर कब से यहां रह रहे थे और क्या फसल की कटाई के वक्त अपने गांव लौटते थे या इस बार लौट रहे हैं. आधार कार्ड या जनधन अकाउंट न खुलता तो ये पैसा कैसे पहुंचता ( हो सकता है पैसे कितने है इस पर आप विवाद कर सकते है लेकिन जिस को मिल रहा है वो जानता है कि अंग्रेजी में बोलने भर से उसकी मदद नहीं करते ये मानवाधिकारवादी).
यह भी पढ़ें: डॉ. अंबेडकर सिर्फ दलितों के नेता भर नहीं,महान देशभक्त और युगपुरुष भी थे
इस वक्त पूरे देश में सबसे बड़ी समस्या अगर कोई है तो वो वाकई गरीब और मजदूर वर्ग की है लेकिन ये वर्ग कहां और कितना है. गांव में कितनी बड़ी संख्या में लोगों के पास जमीनें है और कितने लोग सदियों से उन जमीनों पर सहायक धंधों से अपनी जिंदगी चला रहे हैं. गांव से शहरों में आऩे वाले लाखों -करोड़ों लोगों के अगर आंकड़े सही से सरकार के पास होते तो वहां तक अगर सुविधा नहीं पहुंचती तो इस सरकार की खाट खड़ी कर देनी चाहिए थी. लेकिन किसी के पास इतने आकंड़े नहीं है. लगभग 73 साल बाद इस सरकार ने लगभग 8-10 करोड़ लोगों को बैंकिग सर्विस से जोड़ा, उज्जवला योजना से गैस पहुंचाई. ( मैं सरकार की तारीफ नहीं उसका काम बता रहा हूं जो इस संकट में कुछ भी मदद कर पा रहा है).
लेकिन अंग्रेजी में पत्रकारिता कर अमेरिका के वेतन हासिल करने के लिए और उच्च सुविधाओं से घिरे हुए घरों से निकले हुए लोगों ने सरकार इनकी गोपनियता उड़ा देगी इस आधार पर आंकड़ों को आने ही नहीं दिया. आप ने किसी भी कोशिश से आपने देश के विरोध का माहौल तैयार किया. मुझे समझ में नहीं आता कि विदेशी भाषा के सहारे देशी आदमी को तैयार कर रहे इन लोगों की गोपनियता और आम आदमी की रोटी तक पहुंच में क्या रिश्ता है. एक क्लब जो तीसरे दर्जे के दिमागों से भरा रहता है उसमें गरीबों के लिए चाहत उतनी ही बढ़ती है जितनी वहां अंग्रेजी दारू की महक बढ़ती है. ऐसे लोगों ने इस वक्त उन लोगों का जीवन वाकई दांव पर लगा दिया जो इस वक्त किसी भी सरकारी कागज में नहीं है.
एक खास समुदाय की ओऱ से आवाज उठाने वालों को किसी भी बात से कोई मतलब नहीं है. उनको मालूम है कि राजनीति तब ही तक है जब तक वो इनको उकसा सकते है. दुनिया के अलग अलग देशों में खत्म हो चुकी परंपराओं को भी यहां जारी रखना है नहीं तो अभिव्यक्ति खत्म होगी. यहां तक बाहर जाकर तमाम नियमों का पालन करने वाले यहां नियम के खिलाफ खड़े हो इसका इंतजाम ये कुछ खास लोग करते है. मैं अभी उनकी चिंताएं देख रहा हूं वो अंग्रेजी में दुखी है कि गरीबों को खाना नहीं मिल रहा है. इस के बारे में आपको सिर्फ करना ये है कि कोरोना को लेकर उऩके ट्वीट आप शुरू से देखऩा शुरू कीजिय. ( वैसे आप किसी भी समस्या पर उनके ट्वीट देख लीजिए तो ऐसा ही होगा) आपको लगेगा कि इस वक्त में इस सरकार का विरोध सबसे जरूरी है. बात सिर्फ किसी आदमी की नहीं है चाहे वो सरकार में हो या विरोध में.
यह भी पढ़ें: कोरोना वायरस के खिलाफ वैश्विक जंग में ग्लोबल लीडर के रूप में उभरे PM मोदी
दरअसल ये देश में एक बड़ी लॉबी है जिसका रिश्ता भाषाई तौर पर सिर्फ तीन परसेंट लोगों से है लेकिन रोजी उसको 93 फीसदी लोगों के दम पर कमानी है। ऐसे में उसने आसान शिकार बनाया खास लोगों को. जो लोग सोचते है कि कि ये मानवाधिकारवादी है तो इस वक्त देखऩा चाहिए कि अगर किसी भी सरकार के पास सही से डाटा उपलब्ध हो तो कितना आसान हो लोगों तक पहुंचना. हो सकता है आप ये भी लिखने लगे कि जितनों के डाटा है उनके पास तो पहुंचे नहीं ये कुतर्कों का सिलसिला है क्योंकि आज भी अगर आम आदमी तक पैसा पहुंचा है तो उन्ही जनधन के एकाउंट के सहारे जो इसी सरकार ने लोगों से कागज लेकर खुलवाये थे. उज्जवला के सलेंडर मिले थे तो इसके लिए भी लिखापढ़ी हुई थी तभी सही लाभार्थियों को मिल पाए थे. लिहाजा इस वक्त जब राष्ट्र एक ऐसी महामारी से जूझ रहा है जो दुनिया भऱ में लाखों लोगों को लील चुकी है तो सरकार के पास अगर सही डाटा होता तो शायद इससे निबटने के लिए योजना बनाना आसान होता.
अब कोई भी यहां ये न समझाएं कि राहुल गांधी ने बताया था और सरकार नहीं चेती. उस वक्त भी कई राज्यों में कांग्रेसी सरकार थी और तब भी अपनी पार्टी के मुख्यमत्रियों को बुलाकर कोई मीटिंग्स नहीं ली थी और न ही कोई ऐसे निर्देश दिए थे जिनको आज देश फॉलो करता. ये ऐसे ही है जैसे आज हर्ष मंदर टाईप लोग अपने ट्वीट के सहारे कोरोना से गरीबों को बचा रहे हैं.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Hanuman Jayanti 2024 Date: हनुमान जयंती पर बनेगा गजलक्ष्मी राजयोग, जानें किन राशियो की होगी आर्थिक उन्नति
-
भारत के इस मंदिर में नहीं मिलती पुरुषों को एंट्री, यहां होते हैं कई तांत्रिक अनुष्ठान
-
Mars Transit in Pisces: 23 अप्रैल 2024 को होगा मीन राशि में मंगल का गोचर, जानें देश और दुनिया पर इसका प्रभाव
-
Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी से पहले जरूर करें 10 बार स्नान, सफलता मिलने में नहीं लगेगा समय