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अगर इसी तेजी के साथ रुपया गिरता रहा तो देश के हर पेट को भरना मुश्किल होगा

1978 में RBI की ओर से देश में फॉरेन करेंसी की डेली ट्रेडिंग को मंजूरी मिली, इसके बाद से ही रुपए के गिरने का सिलसिला जारी है,

Updated on: 28 Aug 2019, 05:49 PM

नई दिल्‍ली:

1951 में भारत की आबादी 36 करोड़ थी, आज भारत की आबादी 1 अरब 22 करोड़ है और साल 2030 तक चीन को भी जनसंख्या के मामले में हम पीछे छोड़ चुके होंगे, इस बात का जिक्र आज इसलिए करना पड़ रहा है क्यों कि डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता जा रहा है, सोमवार तक रुपया 1 डॉलर के मुकाबले करीब 72 रुपए रहा, अगर इसी तेजी के साथ रुपया गिरता रहा तो देश के हर पेट को भरना सरकार के लिए मुश्किल होगा .

पहले ये समझ लीजिए कि रुपया गिरने के मायने होते क्या हैं ?

इसको ऐसे समझा जा सकता है कि अगर हम अमेरिका के साथ कोई कारोबार कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका के पास 72 हजार रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर है तो डॉलर का भाव 72 रुपये है, अब ये दोनों बराबर की रकम है, यानि अगर अब हमें अमेरिका से भारत में कोई सामान मंगवाना है जो हमारे रुपए के हिसाब से 72 हजार है तो हमें अमेरिका को 1000 डॉलर देने होंगे, इससे दो चीजें होता हैं एक तो हमारे पास अमेरिकी मुद्रा का भंडारण कम हो जाता है, दूसरा अमेरिका के पास हमारी करंसी के साथ डॉलर की तादाद भी बढ़ जाती है .

रुपए के गिरने की वजह क्या होती है ?

वजह नंबर 1 - कच्चे तेल के बढ़ते दाम (भारत को तेल की कीमत डॉलर में चुकानी होती है)
वजह नंबर 2- सकल घरेलू उत्पाद की रफ्तार का कम होना
वजह नंबर 3- रिजर्व बैंक में डॉलर का भंडारण कम होना
वजह नंबर 4- अमेरिका से सामान खरीदना ज्यादा और अमेरिका को सामान बेचने का काम कम होना
वजह नंबर 5- भारत में विदेशी निवेश का कम होना
वजह नंबर 6- इसका कोई सियासी कारण भी हो सकता है

रुपए के गिरने से हमें क्या नुकसान होता है ?

1- कच्चा तेल महंगा होगा तो महंगाई बढ़ेगी
2- माल ढुलाई महंगी होगी
3- खाने पीने की चीजें महंगी होंगी
4- सब्जियां महंगी होंगी
5- हमें हर चीज के लिए ज्यादा डॉलर देने होंगे
6- विदेशों में बच्चों की पढ़ाई महंगी होगी
7- विदेश में घूमना महंगा होगा


अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि रुपए की कीमत कम और ज्यादा कैसे होती है ?

1- ये पूरी तरह से डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है
2- इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का इस पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है
3- इसी लेन देन से रुपए की कीमत कम और ज्यादा होती है

 हर सरकार कहती है कि ये वैश्विक संकट है

इतिहास उठा कर देख लीजिए रुपए के गिरने पर हर सरकार कहती है कि ये वैश्विक संकट है, लेकिन सिर्फ इतना कह देने से जिम्मेदारी से भागा नहीं जा सकता है, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विपक्ष में थे, तब उन्होंने एक ट्वीट किया था, उन्होंने इस ट्वीट में दावा किया था कि आजादी के समय पर यानी 15 अगस्त, 1947 को 1 रुपया 1 डॉलर के बराबर था, हकीकत ये है कि आजादी से लेकर 1966 तक भारतीय रुपये की वैल्यू डॉलर नहीं, बल्कि ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले आंकी जाती थी, इसलिए उनके इस दावे पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है.

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एक बात सच है कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उस पर दूसरे देशों का कोई कर्ज नहीं था, ट्रेड भी ना के बराबर था, इसलिए ये हो सकता है कि रुपया डॉलर के इर्द गिर्द रहा हो लेकिन बराबर हो ये कहना थोड़ा ज्यादा होगा, क्यों कि 1947 में भारत की वृद्धि दर 0.8 फीसदी थी, जिससे ये साबित होता है कि उस समय रुपये का डॉलर के बराबर हो पाना संभव नहीं था .

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आपने बहुत सारे मुख्यमंत्रियों-प्रधानमंत्रियों को इस बात का जिक्र करते देखा होगा कि हम विदेशी निवेश लाने वाले हैं, जानते हैं हमारे नेताओं को ऐसा क्यों करना पड़ता है, क्यों कि अगर विदेशी निवेश आता है तो देश में विदेशी करंसी के भंडारण में इजाफा होता है, इससे ना सिर्फ रुपया मजबूत होता है बल्कि देश की आर्थिक विकास दर भी बढ़ती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उदारीकरण-वैश्वीकरण और निजीकरण का दौर है . 

नरेंद्र मोदी सरकार को रुपए के गिरने पर कटघरे में खड़ा करने से पहले आपका ये जानना भी बेहद जरूरी है कि किसकी सरकार में रुपया कितना गिरा और क्यों गिरा ?

इंदिरा गांधी 

1978 में RBI की ओर से देश में फॉरेन करेंसी की डेली ट्रेडिंग को मंजूरी मिली, इसके बाद से ही रुपए के गिरने का सिलसिला जारी है, इंदिरा गांधी जब सरकार में आईं तो 1 डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 7.9 रुपये थी यानि 1 डॉलर = 7.9 रुपए थे, लेकिन जब उनकी सरकार गई यानि 31 अक्टूबर 1984 तक, रुपए गिरते-गिरते 10 रुपए 34 पैसे तक पहुंच गया था, 31 अक्टूबर 1984 का जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्यों कि इंदिरा गांधी की हत्या इसी दिन हुई थी, इसका मतलब ये कि इंदिरा गांधी की सरकार में रुपया 30.88 फीसदी गिरा था .

राजीव गांधी

इंदिरा के बाद उनके बेटे राजीव गांधी 1984 से दो दिसंबर 1989 तक देश के प्रधानमंत्री रहे, जब राजीव गांधी सत्ता से गए तो 1 डॉलर = 14 रुपए 48 पैसे था.

पीवी नरसिम्हा राव

पीवी नरसिम्हा राव 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे, उनके कार्यकाल में रुपया गिरकर 33.44 के स्तर पर पहुंच गया था, यानि 1 डॉलर = 33.44 रुपए, अब तक पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में ही रुपया सबसे ज्यादा गिरा था .

अटल बिहारी वाजपेयी 

19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री रहे, वाजपेयी के कार्यकाल में 1 डॉलर = 45.33 रुपए था, वाजपेयी सरकार में रुपया सबसे कम गिरा था, क्यों कि वाजपेयी जब सत्ता में आए तो उस समय 1 डॉलर के मुकालबे रुपए की कीमत 42.7 रुपए थी जो उनके सत्ता से जाने के समय तक 45.33 रुपए थी यानि सिर्फ 7.74 फीसदी ही रुपया गिरा .

मनमोहन सिंह

22 मई 2004 से 24 मई 2014 तक मनमोहन सिंह देश प्रधानमंत्री रहे, इन 10 सालों में रुपए में 32 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, मनमोहन सिंह जब देश के प्रधानमंत्री बने तो 1 डॉलर = 45.37 रुपए था लेकिन जब वो सत्ता से गए तो 1 डॉलर = 58.62 रुपए था, वैसे यही वो दौर भी था यानि साल 2008 जब दुनियाभर में आर्थिक मंदी आई थी .

मनमोहन सिंह के बाद साल 2014 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने, जब मोदी सत्ता में आए तब 1 डॉलर = 58.62 रुपए था, अब यानि 26 अगस्त 2019 तक 1 डॉलर = 72 रुपए हो चुका है, ये आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि देश के हालात बहुत अच्छे नहीं है, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण पर कोई ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी हो चला है, वो भी तब जब पड़ोसी मुल्क के साथ युद्ध के हालात हैं और दुनियाभर में कश्मीर सियासत का केंद्र .

(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)