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कुपोषण के कलंक को मिटाने 'मामा मुख्यमंत्री' का महाअभियान

जिस कुपोषण के कलंकित करते आंकड़ों के बोझ तले प्रदेश दबता चला जा रहा था. अब उस भार से उबरने की पुरजोर कोशिशें तेज हो चली हैं. जिसे भावनात्मक भागीदारी की भावुक अपील के जरिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मिटाने का प्लान बना चुके हैं.

Updated on: 06 Jun 2022, 08:48 PM

नई दिल्ली:

जिस कुपोषण के कलंकित करते आंकड़ों के बोझ तले प्रदेश दबता चला जा रहा था. अब उस भार से उबरने की पुरजोर कोशिशें तेज हो चली हैं. जिसे भावनात्मक भागीदारी की भावुक अपील के जरिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मिटाने का प्लान बना चुके हैं, ताकि लोग आगे आकर जनभागीदारी के जरिए बच्चों को सेहतमंद बनाने में मदद करें. अपनी सहानुभूति भरी सराहनीय सोच से शिवराज ने आंगनबाड़ी केन्द्रों को गोद लेने की अपील तो पहले ही की थी. जिसका सकारात्मक असर भी देखने को मिला और बड़ी संख्या में लोगों ने आंगनबाड़ी केन्द्रों को गोद भी लिया.

जानकार बताते हैं कि प्रदेश में कुल 97 हजार 135 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जिनके जरिए पोषण कैंपेन चलाया जाता है. मुख्यमंत्री की अपील के बाद इनमें से करीब 80,000 केन्द्रों को गोद लेने की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है, मगर जब उससे भी बात नहीं बनी, तो सीएम शिवराज खुद ठेला लेकर खिलौने और जरूरी सामान जुटाने सड़कों पर निकल पड़े. जिसका ऐसा अप्रत्याशित असर हुआ कि आंगनबाड़ी केन्द्रों के बच्चों के लिए बड़ी संख्या में खिलौनों के साथ जरूरी सामान इकट्ठा हो गया. 

इसे लेकर अब सवाल उठता है कि आखिर इससे फायदा क्या होगा? तो कहा जा रहा है कि आंगनबाड़ी केन्द्रों की व्यवस्था और बेहतर होगी. रेगुलर मॉनिटरिंग होने के साथ-साथ बच्चों को बेहतर खाना, खिलौने और अन्य जरूरत का सामान मिल सकेगा. दूर-दराज के इलाकों में भी बेहतर आंगनबाड़ी संचालित हो सकेंगी. इतना ही नहीं जब आंगनबाड़ियों का संचालन जनभागीदारी से होगा तो सरकारी खजाने पर कुछ बोझ भी कम होगा. 

दरअसल मुख्यमंत्री की अपील के पहले अब तक होता ये रहा कि दूर दराज के इलाकों में आंगनबाड़ी केन्द्रों में खानापूर्ति होती थी, जिससे सरकार के सुपोषण अभियान को ब्रेक लगता था. जिसका जीता जागता उदाहरण कोरोना काल रहा. जब आंगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन बुरी तरह प्रभावित हुआ. जिसने देखते ही देखते कुपोषण के मामले में बढ़ोतरी कर दी.

इसके पीछे कहा ये भी जाता है कि तमाम कोशिशों के बाद भी कुपोषण का कलंक खत्म नहीं हो पा रहा है. खुद नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 5 साल से कम उम्र वर्ग में मौत की दर बढ़ी है. 15 से 19 साल तक की लड़कियों में एनीमिया की दर 5 फीसद तक बढ़ी है. शहरी क्षेत्रों में 4.25 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 5 प्रतीशत की बढ़ोतरी हुई है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री से इतर प्रदेश के बच्चों के मामा कहलाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने अपने भांजे भांजियों की सेहत में सुधार लाने का बीड़ा खुद उठा लिया है.