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केदार घाटी में कचरा, आपदा को न्यौता?

क्या आप किसी ऐसी जगह जाना चाहेंगे, जहां कूड़े का ढेर हो, जहां प्लास्टिक की बॉटल्स बिखरी हों? शायद नहीं, आप क्या कोई भी किसी ऐसी जगह जाना पसंद नहीं करेगा, जहां साफ-सफाई न हो.

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Deepak Pandey
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केदार घाटी में कचरा, आपदा को न्यौता?( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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क्या आप किसी ऐसी जगह जाना चाहेंगे, जहां कूड़े का ढेर हो, जहां प्लास्टिक की बॉटल्स बिखरी हों? शायद नहीं, आप क्या कोई भी किसी ऐसी जगह जाना पसंद नहीं करेगा, जहां साफ-सफाई न हो, लेकिन हम लोगों में से कितने लोग ऐसे हैं जो किसी जगह जाने के बाद वहां की सफाई का ख्याल भी रखते हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि बाबा केदार की नगरी में श्रद्धालुओं की तरफ से सफाई व्यवस्था में सहयोग नहीं किया जा रहा है और इससे बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. 

6 मई को जबसे बाबा केदारनाथ के कपाट खुले हैं तबसे अब तक यहां 2 लाख से अधिक लोग केदारधाम आ चुके हैं. बाबा केदार का दर्शन कर श्रद्धालु अपने संग पुण्य की गठरी तो लेते गए लेकिन अपने कचरे की गठरी यही देवभूमि में छोड़ गए.  जिस पवित्र और पावन पर्वत पर भगवान केदार विराजे हैं, धार्मिक दृष्टि से उस जगह को गंदा करना निंदनीय है ही लेकिन केदार का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, केदार क्षेत्र के हरे-भरे बुग्याल, पेड़ पौधे और वनस्पतियां हमारे ईको सिस्टम को भी बनाए रखते हैं. अगर हम अपने साथ पहाड़ पर लाई गई पानी की बोतलें, प्लास्टिक और पैकेट इसी तरह फेंकते गए तो यहां भौगोलिक परिवर्तन होते देर नहीं लगेगी. 2013 की आपदा को कौन भला भूला होगा?

इन कचरों के कारण यहां उगने वाली विशेष घास खराब हो जाती है. जमीन पर घास न होने के कारण भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि घास मिट्टी को रोकने का काम करती है. इतना ही नहीं पहाड़ के ईको सिस्टम को कारगर बनाने वाले विशेष चूहे हिमालय पिका का अस्तित्व भी इन कचरों के कारण खतरे में है. अब प्रशासन ने 19 मई से केदार क्षेत्र में विशेष अभियान चलाया है, जिसमें यात्रियों से अपील की जा रही है कि वो अपने साथ लाने वाली बोतलें और दूसरा प्लास्टिक कचरा अपने साथ ही वापल ले जाएं.

अगली बार आप किसी भी जगह धार्मिक लिहाज से या घूमने के लिहाज से जब जाएं तो वहां की सुंदरता और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखिये.

Source : Ayush suryavanshi

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