आखिर क्यों शरद पवार ने नरेंद्र मोदी के लिए कहा - अब किसी को अंगुली नहीं पकड़ाऊंगा
2017 तक एक-दूसरे के शान में कसीदे पढ़ने वाले भारतीय राजनीति के दो दिग्गज आज एक-दूसरे के राजनीतिक दुश्मन बन चुके हैं.
highlights
- कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शरद पवार को अपना राजनीतिक गुरू बताया था.
- शरद पवार की एनसीपी ने भी महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए पेश किया था समर्थन.
- आज एक-दूसरे को पानी पी-पी कर कोसने से भी नहीं रहा है कोई गुरेज.
नई दिल्ली:
राजनीति में न तो कोई स्थायी मित्र होता है और ना ही कोई स्थायी दुश्मन. यह कहावत एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर खरी उतरती दिख रही है. ईडी द्वारा मनी लांड्रिंग के केस में तलब किए गए शरद पवार को लेकर कांग्रेस-शिवसेना आज बीजेपी को घेर रही है और उस पर राजनीतिक बदले की भावना से काम करने का बड़ा आरोप लगा रही है. यह अलग बात है कि एक समय खुद नरेंद्र मोदी ने माना था कि उन्हें राजनीति शरद पवार ने अंगुली पकड़ कर सिखाई. तब और आज के हालात दो विपरीत ध्रुव की तरह हो गए हैं.
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ईडी ने घेरा शरद पवार को
गौरतलब है कि महाराष्ट्र स्टेट कॉपरेटिव बैंक में आर्थिक घोटाले को लेकर मुंबई पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है. इसमें शरद पवार के भतीजे अजित पवार का नाम है. इस केस में भी शरद पवार का नाम आ रहा है. हालांकि प्रवर्तन निदेशालय ने शरद पवार के खिलाफ मनी लांड्रिंग का एक अलग से केस दर्ज किया हुआ है. इसी सिलसिले में शरद पवार को आज मुंबई में ईडी के समक्ष पेश होना था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत शिवसेना नेता संजय राउत ने ईडी के इस कदम को बीजेपी की बदले की राजनीति करार दिया है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है. हालांकि बीजेपी इन आरोपों से पल्ला झाड़ रही है.
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बीजेपी को सरकार बनाने में समर्थन देने वाली थी एनसीपी
इस लिहाज से देखें तो नरेंद्र मोदी और शरद पवार के बीच संबंध आज बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं. यह अलग बात है कि ऐसा हमेशा से नहीं था. एक समय ऐसा भी था जब दोनों नेताओं में काफी गहरी छनती थी. हालांकि सार्वजनिक तौर पर इस प्रगाढ़ संबंध का पता लोगों को 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले लगा था. दोनों ने ही एक-दूसरे के गढ़ में एक-दूसरे को राजनीतिक चुनौती दी, लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद भी दोनों के बीच कोई कड़वाहट नहीं आई. यहां तक कि दोनों नेताओं के बीच प्रगाढ़ संबंधों की इससे बड़ी बानगी और क्या हो सकती है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बहुमत से दूर रहने पर एनसीपी ने बीजेपी को बगैर शर्त समर्थन तक देने की घोषणा कर दी थी. यह वह राजनीतिक क्षण था जब शिवसेना बीजेपी को आंखें दिखा रही थी.
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मोदी ने कहा था राजनीति शरद पवार ने सिखाई
इसके बाद 2015 में शरद पवार के जन्मस्थान बारामती में चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीपी सुप्रीमो की तारीफ के पुल बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. वह यहां तक कह गए कि देश को शरद पवार के राजनीतिक अनुभव की जरूरत है. यही नहीं, कृषि विज्ञान केंद्र के उद्घाटन के बाद पीएम मोदी ने शरद पवार के घर पर भोजन भी किया था. इसके एक साल बाद 2016 में पुणे में शरद पवार के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट के कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में शरद पवार को अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक करार दिया. वहां नरेंद्र मोदी ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया था कि गुजरात के दिनों ने शरद पवार ने उनका हाथ पकड़ कर राजनीति सिखाई थी.
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2019 में खुल कर आई कड़वाहट
इस कदर प्रगाढ़ संबंधों में कड़वाहट आनी अप्रैल 2019 में शुरू हुई. लोकसभा चुनाव में शरद पवार ने कहा कि उन्हें नरेंद्र मोदी से डर लगता है. उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी भले ही कहते रहे हों कि उन्होंने मेरी अंगुली पकड़ कर राजनीति सीखी हो, लेकिन अब मुझे बहुत डर लगता है. वजह यह है कि यह आदमी कब क्या कर बैठेगा यह कोई नहीं जानता है. इसके साथ ही शरद पवार ने यह भी कटाक्ष किया था कि अब वे किसी और को अंगुली नहीं पकड़ाएंगे, क्योंकि वह नहीं चाहते कि एक और मोदी हो. इसका जवाब नरेंद्र मोदी ने पवार के गढ़ बारामती में दिया और मतदाताओं से पवार को ही उखाड़ फेंकने का आग्रह कर डाला. वहां नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था कि एनसीपी नेतृत्व तिहाड़ में बंद एक कैदी से डरा हुआ है कि ना जाने उसका बयान पवार बंधुओं के लिए क्या मुसीबत खड़ी कर दे. जाहिर है 2017 तक एक-दूसरे के शान में कसीदे पढ़ने वाले भारतीय राजनीति के दो दिग्गज आज एक-दूसरे के राजनीतिक दुश्मन बन चुके हैं.
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