घाटी और अलगाववाद- एक युग का अंत

राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को अपनी लहर को घाटी में भुनाना था तो फारुख अब्दुल्ला को कांग्रेस के पुराने साथी और अपने राजनीतिक शत्रु मुफ्ती मोहम्मगद सईद को हाशिए पर धकेलना था.

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Kuldeep Singh
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farooq abdullah and rajiv gandhi

फारुख अबदुल्ला और राजीव गांधी( Photo Credit : फेसबुक)

साल था 1987 बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक बार फिर से साथी हो गए थे. राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को अपनी लहर को घाटी में भुनाना था तो फारुख अब्दुल्ला को कांग्रेस के पुराने साथी और अपने राजनीतिक शत्रु मुफ्ती मोहम्मगद सईद को हाशिए पर धकेलना था. अपने अपने हितों को साधते कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की नई जुगलबंदी ने घाटी की जहमूरियत में नई- इबारत लिख दी.  सत्ता के पक्ष में जनसमर्थन साबित करने के लिए सरकारी मशीनरी का कथित दुरुपयोग हुआ और इस कदर हुआ कि श्रीनगर के अमीराकदल से चुनाव लड़ने वाले मोहम्मद युसुफ शाह ने चुनाव हारने के बाद भारतीय लोकतंत्र का ही बहिष्कार कर दिया औऱ पाकिस्तान की सरपरस्ती में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का सरगना सैयद सलाहुद्दीन बना.

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हार के कारण तनाव फैलने लगा तो पुलिस ने युसुफ शाह और उसके एजेंट यासीन मलिक को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को बीस महीनों तक बिना केस के जेल में रहना पड़ा. सत्ता के इस कथित षडयंत्र नें दोनों को आतंक के रास्ते पर धकेला जहां से एक  हिज्बुल मुजाहिद्दीन का सरगना बना तो दूसरा ( यासिन मलिक ) आगे चलकर घाटी के लिए अलगाववादी चेहरा बना . आज यासीन 1990 में भारतीय वायु सेना के चार कर्मियों की हत्या मामले में मामलों का सामना कर रहा है और तिहाड़ जेल में बंद है

इन सब कहानियों के नेपथ्य में एक बड़ी तस्वीर आकार ले रही थी और वो थी सय्यद अली शाह गिलानी की. एक वक्त ऐसा भी था जब भारतीय लोकतंत्र तले गिलानी साल 1972, 1977 और 1987 में जम्मू कश्मीर के सोपोर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे थे. अपने राजनीतिक जीवन में तीसरी बार विधायक बने गिलानी ने 1989 में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और वजह बनी 1987 के विधानसभा चुनावों की वही तस्वीर जिसकी वजह से  

👉यूसुफ शाह- आतंकवादी सैयद सलाहुद्दीन बना
👉यासीन मलिक बूथ एजेंट से आतंकवादी और फिर अलगाववादी चेहरा बना
👉सैयद अली शाह गिलानी - 3 बार का विधायक फिर कभी चुनावी मैदान में नहीं उतरा

वक़्त के साथ अपनी सोच को न बदलने की कीमत चुकाई गिलानी ने

गिलानी के जीवन के हालात तो यह हो गए थे की उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा खासकर 1987 के बाद का जेल या फिर नज़रबन्दी में ही गुज़ारा साल 2010 के बाद से 01 सितंबर 2021 तक के वक़्त में से तकरीबन 12 साल उन्हें कैद में रहना पड़ा था

सैयद अली शाह गिलानी टेरर फंडिंग केस में एनआईए जांच की जद में भी रहे. गिलानी की गिनती पाकिस्तान समर्थक नेताओं में होती थी. उन्हें 2020 में पाकिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था. हुर्रियत के स्थानीय नेताओं ने 14 अगस्त 2020 को गिलानी के लिए निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान राष्ट्रपति से प्राप्त किया था.

बेमानी होता अलगाववाद
05 अगस्त 2019 को सत्ता में बैठी bjp ने अपने सालों से अधूरे वायदे को अकल्पनीय तरीके से पूरा कर दिया. वादा "धारा 370 को खत्म करने का" जो कि जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार देता था. एक निशान,एक विधान की समथर्क भाजपा ने जम्मू कश्मीर के राज्य के अस्तित्व को ही बदल दिया और पूरा जम्मू कश्मीर दो केन्द्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया गया.

सुरक्षित होती घाटी की ज़िंदगी
केंद्र सरकार के इस फैसले का घाटी के नेताओं ने विरोध तो बहुत किया लेकिन आम जनता को "देर आये दुरुस्त आये" वाली कहावत यहीं से समझ आ गई. सीमा पार से अलगाववादियों की मदद कम हुई, घाटी में पथरबाज़ी कई घटनाएं कम हो गईं
अलगाववाद की बात करते और खुद को कश्मीरियों का हितेषी बताने वाले नेता जेल गए तो घाटी को अशांत करने के लिए आने वाला पाकिस्तानी पैसा भी बंद हो गया. 

अब दल झील की बर्फ भी पिघलने लगी है. घाटी के लिए कहा जाता है कि दल झील की बर्फ पिघलती नहीं , लेकिन 2019 से पहले का एक दौर था जब तमाम सरकारें थीं एक अलग पुलिस बल थी, बस कुछ नहीं था तो एक आम कश्मीरी और भारतीय का एक साथ होना, आज हर कश्मीरी शान से भारतीय है, वही लाल चौक तिरंगे की छाया में चहकता है, हर कश्मीरी युवा सेना और पुलिस में देश सेवा के लिए भर्ती होने चाहता है. मैं यह तो नहीं कहता कि हर कश्मीरी सम्पन्न हो गया है लेकिन 5 अगस्त 2019 के बाद से डल झील में काफी पानी बह चुका है. 

(पंकज कुमार न्यूज नेशन के असाइनमेंट डेस्क पर कार्यरत हैं)

Source : PANKAJ KUMAR JASROTIA

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